इसके पूर्ववर्ती अंश पर जाएँ (बृजेश : एक परिचय (भाग-१))
अगले कुछ दिनों तक बृजेश का इसी तरह मिलना और लगभग उसी स्थान पर बैठना एक निर्धारित क्रम सा हो गया | उसकी कोशिश होती थी की तीसरी पंक्ति में जगह मिल जाए, शुरुआत की दो तो हमारी ही होती थीं |बृजेश जब भी आता, एक मधुर मुस्कान उसके चेहरे को और भी आकर्षित बनाती थी और बाकी लोगों से मिले या नहीं, मुझसे “हाय-हेल्लो” ज़रूर बोल के ही जाता था | अमन ने तो नियम ही बना लिया था उस दिन के बाद से की मेरी बगल वाली सीट पर ही बैठना है | पूरा थानेदार है | पूरी निगरानी करता था और इसका कोई मौका नहीं छोड़ता था कि किसी और को मेरे साथ बैठने का चांस भी मिले | इसका फायदा भी था, क्योंकि वो अब आश्वस्त लगता था और बृजेश को लेकर उसके मन में चल रही आशंकाओं को ढीला करने का पर्याप्त समय मिल गया था उसे |
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एक दिन, हम सब क्लास में अपने अपने स्थान पर बैठ चुके थे, और काफी समय होने पर भी प्रोफेसर नहीं आयी थीं | मैं भी अमन और दूसरे साथियों से गप्पें लड़ाने में व्यस्त था कि तभी अमन के चेहरे का हाव-भाव थोड़ा परिवर्तित सा दिखा | माथे पर त्र्योरियाँ चढ़ाए वो मेरे पीछे की तरफ देख रहा था कि तभी किसी ने मुझे पीठ की तरफ से कंधे पर हाथ रख कर स्पर्श किया | मैंने पलट कर देखा तो बृजेश खड़ा था, अपने हाथ में कॉपी और पेन लिए | बृजेश, मुझसे कुछ सवालों के उत्तर समझने में मदद चाहता था जो हमें पिछले सेशन में समझाए गए थे | सवाल थोड़े जटिल थे, और हम में से अधिकाँश उनमें फंसते थे |
“क्या तुम इस सवाल का हल समझने में मेरी मदद कर सकते हो ?”, बृजेश ने सीधा प्रश्न किया मुझसे !
“हाँ – हाँ ! क्यों नहीं, पर मुझे भी देखने दो क्या मुझे यह आता भी है कि नहीं”, मैंने हंसकर उसकी नोटबुक उसके हाथ से लेते हुए कहा | मैं सबसे किनारे की सीट पर बैठा था, और बृजेश मेरे साथ खड़ा था जिसे अमन घूर रहा था | अमन के घूरने से ही मुझे एहसास हुआ कि बृजेश को बैठने को स्थान देना चाहिए |
“आओ न ! बैठो .. .देखते हैं कितना हल कर पाते हैं “, मैंने ज़बरदस्ती थोड़ा परे सरकते हुए अमन को और अन्दर की ओर धकेला ताकि किनारे बृजेश के बैठने लायक थोड़ी जगह बन सके |
चिड-चिड करते हुए भी अमन ने और बाकी सबने थोड़ा-थोड़ा खिसक के बृजेश के लिए जगह बना दी | अब बृजेश से शुरू कर के बृजेश, मैं, अमन और बाकी सब लोग इस क्रम में बैठे थे | हमनें बैठ कर प्रश्न आधा हल किया कि तभी प्रोफेसर क्लास में प्रविष्ट हुईं और लेक्चर शुरू हो गया | बृजेश के पास वापस पीछे जाने की जगह नहीं बची थी क्योंकि इतनी देर में वो किसी और व्यक्ति ने कब्जा कर ली थी | क्लास ख़त्म होने पर मैंने उसे बाकी का हल एक पीरियड के बाद साथ बैठ कर करने को बोला, जिसे वो सहर्ष मान गया | हम दोनों के लिए वो खाली समय था | ऐसे ही बृजेश का और मेरा अक्सर वार्तालाप होने लगा | क्योंकि अमन साथ ही होता था, उसे भी बृजेश एक सामान्य पुरुष ही प्रतीत हुआ | गाँव के रंग में रंगे बृजेश के व्यवहार या वार्तालाप में कहीं भी दिखावटीपन नहीं था | और, सच और समानता किसे अपने ओर आकर्षित नहीं करती? बृजेश कि विनम्रता, सौम्यता, मेहनत और पढाई की लगन से उसने अपने लिए सभी के दिलों में अपने लिए सम्मान पैदा कर लिया था | अमन के दिल में भी इसका असर होना लाज़मी था |
इस तरह धीरे-धीरे बृजेश हमारे दल में शामिल हो गया | अब वो एक अपरिचित चेहरा नहीं था मेरे दल के सदस्यों के लिए | अमन भी धीरे धीरे, बृजेश से सहज होने लगा | बृजेश को लेकर उसके मन में जो आशंकाएं थीं, वो निर्मूल साबित होने लगी थीं |अमन का स्वभाव वैसे भी प्यार का है, और प्यार सिर्फ स्वीकारना जानता है, दुत्कारना नहीं |भय और आशंकाओं के बादल इसे थोड़ी देर को ढक तो सकते हैं, पर बदल नहीं सकते |
वो सेमेस्टर और उसके बाद का सेमेस्टर एक अच्छा सफ़र था क्योंकि अल्फा, बीटा, गामा से लेकर ऐ, बी, सी …तक हमने बहुत कुछ नया जोड़ा-घटाया अपने नोटबुक के पन्नों के साथ साथ अपने दिलों में, अपने दिमाग में | नए दोस्त बने, नए साथी अनजानी राहों के | फिर गर्मियों कि छुट्टियों के बाद अगले सेमेस्टर में फिर से मिलने के लिए हम विदा हुए |बृजेश जो अपनी भुआ के घर पर शहर में आकर रुका था पढाई करने के लिए, जो मेरे घर से थोड़ी ही दूर था | एक दो बार वो मेरे घर भी आया | अकादमिक वर्ष की समाप्ति पर, गर्मियों कि छुट्टियों में बृजेश वापस अपने गाँव चला गया | उसे अपने घर पर कृषि सम्बन्धी कार्यों में अपने पिता की सहायता भी करनी थी |