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लुप्त होती इंसानियत

आज की तेज दौड़ती ज़िंदगी में मानवता की संवेदना लुप्त होती जा रही है, यह बात मुजा कल रास्ते पर जाते हुए महसूस हुयी जब एक संकरे रास्ते पर माल के वजन से लदी हुई रिक्शा का एक पहिया सड़क के एक गड्डे में फंस गया और तुरंत ही वहाँ जाम लग गया | आसपास  और पिछे जाम में खड़े लोग सभी मिलकर उसको धमका रहे  थे की जल्दी आगे चल और वो बेचारा भी अपनी पूरी ताकत से रिक्शा खींचने की कोशिस  कर रहा था परन्तु रिक्शा में माल ज्यादा  होने के कारण वह असफल था और कोई भी जाम में से या आस पास से उसकी सहायता के लिया आगे नहीं आया, परन्तु जल्दी सभी को ज्यादा  थी | मै  जैसे  ही अपने स्कूटर को स्टैंड पर खड़ा करके आगे मदद के लिया जाने लगा तो पीछे वाले ने चिल्लाना शुरू कर दिया कि स्कूटर बीच में खड़ा मत  करो | इसी बीच वो मज़दूर अपनी कोशिस में सफल हो गया और रास्ते का जाम खुल गया  तब मेरा मन में यह विचार आया की आज सभी कितने शून्य हो गया है | आज का मानव मानवता भूल  चूका  है, मदद, भावना, मानवता जैसे  शब्दो  का आज कोई मोल नहीं है तथा आने वाली पीढी को हम सौगात में कुछ अच्छा दे कैसे  जब हमारे  अंदर ही वो नैतिकता, इंसानियत नहीं बची है | 

सभी पढ़ने वालो से आग्रह है की आप अपनी तरफ से सुझाव प्रस्तुत करे की कैसा हम इंसानियत , मानवता और नैतिक मूल्यों को बचा सकते  है ताकि इन अच्छी  बातो को आने वाली नई पीढी को एक अच्छी विरासत दे सके| 



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