वाराणसी: नौकरी रहने तक “देश सेवा” और नौकरी के बाद , नौकरी से बचाया सारा PF लगा के समाज सेवा, ये बेमिसाल काम करने के लिए जो जिगर चाहिए , वो बहुत काम लोगों के पास होता है । मगर ये बेमिसाल काम कर के वाराणसी के जंसा थाना क्षेत्र के रामेश्वर के भग्गुराम मौर्य ने फिर साबित कर दिया कि फौजी सच में बड़े दिलवाले होते हैं ।
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मौर्य ने गांव वालों की सुविधा के लिए अपने पीएफ के पैसों से गांव में डेढ़ किलोमीटर तक की सड़क बनवा डाली जो अब कई बस्तियों को आपस में जोड़ती है. इस काम में भग्गुराम मौर्य के तकरीबन चार लाख रुपये खर्च हुए.
जीवन भर के नौकरी की पूंजी को लगाया
नौकरी से रिटायर होने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए उसकी सबसे बड़ी पूंजी उसके पीएफ का पैसा होता है. वह उस पैसे से अपने और अपने परिवार के ढेर सारे सपने पूरी करने की सोचता है पर मौर्य ने अपने गांव के लोगों को अपने परिवार से ऊपर रखा और सात महीने के अपने अथक प्रयास से अपने सपने को साकार कर इस समाज के लिए एक नायाब मिसाल पेश कर दी.
जो सड़क 50 सालो में नहीं बनी, उसे बनवाकर की गांव वालों की तकलीफ दूर
भग्गुराम मौर्या ने बताया कि गांव में फोर व्हीलर तो दूर साइकिल, मोटरसाइकिल आने तक का रास्ता नहीं था. सड़क नहीं होने पर जरुरत का कोई भी सामान सर पर रख कर लाना पड़ता था. सबकी तकलीफ देखते हुए उन्होंने संकल्प लिया कि जो सड़क 50 सालो में भी नहीं बनी वे उसे बनवाएंगे और एक दिन पूरे गांव वालो की तकलीफ को दूर करेंगे.
इस पूरे काम में भग्गुराम मौर्य को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, इस सड़क पर पैदल भी कोई नहीं चल पाता था पर मौर्य ने अपने प्रयास से उसको एक चौड़ी सड़क बनवा कर दी जिस पर अब फोर व्हीलर और ट्रैक्टर भी आसानी से आ-जा सकते हैं. इससे किसानों को भी मदद मिलेगी और उन्हें अपने काम में आसानी होगी.
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भग्गुराम ने कहा कि मैं सेना के इंजीनियरिंग विभाग में था इसलिए कुछ तकनीकी चीजों जैसे खेती के लिए पानी कहां से जायेगा, पानी के लिए पाइप लाईन कैसे डाली जायेगी इन बातो को मैं खुद समझने लगा था जिससे सिर्फ चार लाख में ही मेरा काम हो गया नहीं तो हो सकता था कि इसमें छः लाख भी खर्च हो सकते थे. अपने इस काम से भग्गुराम मौर्य बेहद संतुष्ट है.
मौर्य ने सुना था कि अन्ना हजारे 1962 में जब सेना से रिटायर हुए थे तो उन्हें 35 हजार रुपये मिले थे जिससे उन्होंने उस समय अपने गांव में पानी के संसाधन पर खर्च कर दिया था अन्ना के उस प्रयास से गांव में सिंचाई की सुविधा का विकास हुआ था. मैं भी गांव के लिए एक छोटा सा ही काम कर सकता था सो मैंने रोड ही बनवा दिया.
भग्गुराम मौर्य तो सब सड़क बनवाना चाहेंगे क्योकि सड़क है, तो विकास है. लेकिन सबसे कठिन काम है अच्छे काम के लिए सबको समझाना. हिरमपुर गांव के लोग भी भग्गुराम मौर्य के इस काम से बेहद खुश नजर आते हैं और सराहना करते हुए उन्हें धन्यवाद देते हुए कहते नहीं थकते कि जिस काम को कोई नहीं कर पाया उसे भग्गुराम मौर्य ने आखिरकार कर ही दिखाया.
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