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अल्मोड़ा , समय : सुबह ६.३०
पूरा घर अगरबत्ती की खुशबू से महक रहा था | “ईजा मैं नहाने जा रहा हूँ ,जरा तौलिया देना” शंख की आवाज सुनते ही फटाफट बिस्तर से उठकर गुसलखाने में घुसते हुए त्रिलोक अपनी माँ से बोला | त्रिलोक चंद जोशी मुंबई में बहुराष्ट्रीय मीडिया कंपनी में नौकरी करता था | अपने इजा-बाबू के कहने पर वह शादी के लिए लड़की देखने कुछ दिनों के लिए घर आया हुआ था| अल्मोड़ा जैसे एक छोटे पहाड़ी कस्बे से निकलकर अगर कोई इतना बड़ा मुकाम हासिल करे तो हर माँ-बाप की छाती गर्व से फूल जायेगी | कुछ यही आलम त्रिलोक के माँ-बाप का भी था | दोनों अपने लड़के का गुणगान करते नहीं थकते थे |
“तिलुआ तेरी धोती रख दी है पलंग में , पूजा करने के बाद नाश्ते के लिए आ जाना”, माँ रसोई में थी सो त्रिलोक के पिता तौलिया थमाते हुए बोले | त्रिलोक के बाबू पड़ोस के गाँव के प्राथमिक स्कूल में प्रधानाचार्य थे और अगले महीने रिटायर होने वाले थे |तडके ही उठ जाना, नहा-धो कर घंटे भर ईश्वर-भक्ति में लीन रहना और फिर दिन के दीगर कार्य शुरू करना यही उनकी दिनचर्या थी | वे चाहते थे की त्रिलोक भी यही संस्कार सीखे लिहाजा उन्होंने १५ वर्ष की आयु में ही उसका उपनयन संस्कार कर दिया था | तब से उसे भी वे अपने साथ ही दिनचर्या आरम्भ करवाते थे | आजकल वह बाहर रहता था इसीलिए घर आने पर उसे पूजा के लिए एक-आध घंटे की छूट मिल जाती थी |
समय : १.३० दोपहर
माघ के महीने की पहली धूप थी | त्रिलोक अपने परिवार के साथ लड़की वालों के घर के आंगन मैं बैठा था | आँगन से दूर बर्फ से ढंकी हिमालय की चोटियाँ साफ़ दिखाई दे रही थी | त्रिलोक की माँ और लड़की की माँ आपस से बतिया रहीं थी|
“अजी हमारा लड़का तो पूरा राम है राम, न कोई एब, न कोई जिद.... देखिये न हमने बस एक बार बुलाया और सीधा चला आया लड़की देखने... और तो और लड़की की तस्वीर भी नहीं मांगी उसने.... वो तो कह रहा था कि आप ही देख आओ...आपने पसंद की है तो अच्छी ही होगी..... लेकिन इसके बाबू ने समझाया कि शादी से पहले लड़का-लड़की की मुलाकात जरुरी हैं.....अरे आजकल ऐसे आज्ञाकारी औलाद मिलती कहा है ज़माने में...... ”त्रिलोक की इजा बोली |
“ठीक कहा बहन जी आपने आजकल तो अच्छी औलाद मिलना पुण्यों का प्रतिफल है... अब हमारी सविता को ही ले लीजिए...हमने उससे कितनी बार कहा तू दिल्ली में नौकरी करती है वहीँ से किसी अपनी जात के किसी लड़के को पसंद कर ले...हम करा देंगे शादी पर इसने तो साफ़ मन कर दिया...बोली आप ही तय करिये..... आप लोग मुझसे बढ़े हैं मेरे लिए अच्छा ही सोचेंगे...बताईये ऐसी संस्कारी लड़कियाँ कहाँ होती हैं आजकल.... ” लड़की की माँ बोली
त्रिलोक आँगन में टहल ही रहा था कि इसी बीच लड़की चाय लेकर आँगन में दाखिल हुई और दोनों ने एक दूसरे को देखा | दोनों के चेहरों पर आंखे प्रश्नवाचक भाव से एक दूसरे की तरफ घूरने लगी हो जैसे आपस में पूछ रही हो कि "तू यहाँ कैसे...?"
जारी है......