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टिकदा(भाग -३ )

 
टिकदा को नैनीताल आये हुए लगभग ३० साल हो गए थे | टिकदा अब ६० बरस का था  |पालीवाल जी स्कूल के प्रिंसिपल बन गए थे और कुछ सालों में उनकी रिटायरमेंट थी | टिकदा अब काफी कमजोर हो चुका था, उसके घुटने भी अब दुखने लगे थे | वह कभी-कभार ही स्कूल परिसर से बाहर जाता था, बाजार भी वह बामुश्किल ही जा पाता था, जाता भी था तो वह भी लंबे रास्ते से | जिंदगी के सारे रंग तो देख लिए थे उसने , माता-पिता की अकाल मृत्यु का दुःख और बच्चों के  साथ बिताए मीठे-मीठे पल सारे अनुभव तो चख लिए थे उसने अब इंतज़ार था तो उसे तो बस अपनी मृत्यु का|

कुछ दिनों बाद शिवदत्त पालीवाल के पुत्र दीपेंद्र का परिवार नैनीताल छुट्टियाँ मनाने आया | परिवार में शिवदत्त पालीवाल का बेटा, बहु और उनका १० वर्ष का बेटा था | वे लोग कुलोमणि के घर पर ही रुके थे, कुलोमणि ने टिकदा को भी उनसे मिलवाया | अपने दोस्त के पुत्र के परिवार को देखकर टिकदा के जर्जर हो चुके शरीर में जैसे नया जोश आ गया था | कमजोर होते हुए भी टिकदा ने उन्हें नैनीताल घुमाने का बीड़ा उठा लिया था | अब वह सुबह उठ कर सीधा कुलोमणि के घर पर जाता और परिवार को लेकर चल पड़ता नैनीताल के हसीन नजारों को दिखाने |

इन कुछ दिनों में टिकदा को शिवदत्त के पोत्र से बड़ा लगाव हो गया था , चंद्रमोहन भी टिकदा में अपने दिवंगत दादाजी की छवि देखता था | जब से चंद्रमोहन ने टिकदा की बांसुरी की तान सुनी थी तब से वह उससे बांसुरी सिखाने की जिद कर रहा था सो टिकदा उसे बांसुरी सिखाने लगा था , दोनों घंटो एक साथ ही रहते थे | स्कूल सभी लोगों ने टिकदा के चेहरे पर इतनी खुशी शायद पहली बार देखी थी |लेकिन चंद्रमोहन की माँ को टिकदा फूटी आंख नहीं सुहाता था उसे चंद्रमोहन का उससे मिलना नागवार लगता था | उसे लगता था की जैसे टिकदा ने चंद्रमोहन पर जैसे कोई जादू कर दिया है | वह कितनी बार कुलोमणि से यह बात कह चुकी थी पर कुलोमणि हमेशा इस बात को बहु की नादानी समझ मजाक में टाल देते थे |

दीपेंद्र की छुट्टियाँ खतम हो रही थी | अगली शाम की गाड़ी से उन्हें शहर के लिए निकलना था | आज टिकदा चंद्रमोहन को अपने साथ पास के गाँव के मंदिर ले गया था | बरसात का मौसम था सो वक्त-बेवक्त पानी बरस पड़ता था | आज भी कुछ ऐसा ही हुआ जिस कारण टिकदा को स्कूल लौटने में काफी देर हो गयी | सब लोग चंद्रमोहन को लेकर बड़े चिंतित थे | दीपेंद्र की पत्नी को तो जैसे इसी मौके की तलाश थी | टिकदा के आते ही  उसने अपनी सारी भड़ास उसपर निकाल दी और उसे बहुत बुरा भला कहा |

अपनी पुत्रवधू के समान स्त्री से इतने कटु वचन सुन टिकदा को गहरा झटका लगा , अपने माता-पिता की मृत्यु की बाद शायद पहली बार टिकदा को इतना बड़ा हृदयाघात लगा था | वह चुपचाप अपनी कमरे में गया, शराब निकालकर पीने लगा और फिर रोते हुए बांसुरी बजाने लगा | बांसुरी सुनते ही चंद्रमोहन अपने घर से निकलकर टिकदा के पास आकार बैठ गया और उससे बातें करने लगा | उसकी मीठी मीठी बातें सुन  टिकदा के चेहरे पर फिर मुस्कान लौट आई, वह उसके मासूम     चेहरे को निहारने लगा  |

“टिकदा, मेरे लिए भी अपनी जैसी बांसुरी लाना हाँ....नी तो में आपसे बोलूँगा नहीं” चंद्रमोहन ने कहा | “ठीक है भउवा लेके आऊंगा तेरे लिए भी अपनी जैसी बांसुरी...लेकिन अभी तू जा यहाँ से...तेरे सोने का टेम हो गया है न” टिकदा ने चंद्रमोहन से कहा | उसके जाने बाद वो भी बिस्तर में लुढ़क गया|

अगले दिन जब टिकदा उठा तो दिन ढल रहा था शायद पिछली रात ज्यादा पीने की वजह से ऐसा हुआ था | बाहर  तेज बारिश हो रही थी | उधर चंद्रमोहन के जाने की तैयारियां हो चुकी थी | अचानक टिकदा को बीती रात  चंद्रमोहन से किया अपना वादा याद आया | उसे बाजार से चंद्रमोहन के लिए एक बांसुरी लानी थी | उसने सोचा की अगर वह मुख्य रास्ते से जाएगा तो शायद वह चंद्रमोहन को वक्त पर बांसुरी न दे पाए | उसके लिए छोटा और खतरनाक रास्ता ही अंतिम विकल्प था | पहाड़ी रास्तों में गिरे चीड़ के टूटे सूखे पत्ते बारिश में भीगकर फिसलन पैदा करते हैं जिससे उनमे चलना बहुत कठिन हो जाता है | इसी कारण वह रास्ता आज और भी खतरनाक हो गया था पर चंद्रमोहन की खातिर टिकदा इस खतरे को उठाने की लिए तैयार था | पर  भगवान को शायद आज कुछ और ही  मंजूर था | नीचे उतरते वक्त टिकदा का पैर फिसला और वह खाई में  गिर कर मर गया ,अपने अंतिम पलों में उसे इस बात का दुःख था की वह अपना वादा पूरा न कर सका पर उसे अपने अपने माँ-बाबू से बरसों बाद मिलने की ख़ुशी भी थी और फिर उसकी आत्मा संसार के बंधनों से मुक्त हो गयी |

गाड़ी जाने का वक्त हो रहा था | एक और जहाँ सभी लोग टिकदा की राह देख रहे थे वही दूसरी ओर मासूम चंद्रमोहन को अपनी बांसुरी का इंतज़ार था जो उसे शायद कभी नहीं मिलने वाली थी |   


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