मिर्जा साहिबा के बारे में तो आप सब ने पढ़ा ही होगा, इस कविता में मैंने ये दर्शाने का प्रयास किया है की यदि मिर्जा साहिबा इस सदी में होते, तो उन्हें उन्हें किन किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता , हास्य में ही सही , पर मैंने सच्चाई प्रकट करने का प्रयास किया है |
कल नींद में एक स्वप्न आया,
मिर्जा फिर से मानव रूप में आया,
पर इस बार साहिबा उसके साथ थी,
दोनों को ही प्रेम से ज्यादा,
नौकरी की तलाश थी |
इस जन्म ना जाति ही कोई बाधा है,
ना परिवार को विरोध है,
बस डिग्री और नौकरी ही,
उनके प्यार में एकमात्र अवरोध है |
मिर्जे को पहले पूरे करने पिता के सपने है,
शादी से पहले, पढाई के कर्जे चुकते करने है |
इस जन्म मिर्जे को ,साहिबा के भाइयो का डर नहीं,
वो तो खुद ३०२ और पुलिस से डरते है,
बस डर है तो, अच्छी नौकरी व तनख्वा का,
पुरे करने ग्रहस्थी के खर्चे है |
बिजली, पानी, भोजन सब धनं से ही मिलता है,
स्वंय तो गुजारा कर भी लूँ ,
पर साहिबा का हार श्रृंगार ,
आज कल हजारो रूपये में मिलता है ,
यही सोच कर मिर्जा बेबस और उदास है,
विवाह से पहले उसे अच्छी नौकरी की तलाश है |
अब साहिबा भी मिर्जे को चुरी नही खिला सकती ,
अब वो बेचारी भी क्या करे ,
ऍम.बी. ऐ की विद्यार्थी है,
कुकिंग नही आ सकती |
अंत में यही कहंता चाहता हूँ कि
भले ही समय बदल गया,
पर परेशानिया कम ना हुई,
समाज तो सुधर गया,
पर आर्थिक मंध्हाली कम ना हुई |
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------------डिम्पल शर्मा ------
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