जरा सोचिए......जी हां वाकई........ये महज टैग नहीं......... बल्कि आज अवाम को इसकी जरूरत है। क्वात्रोकी के खिलाफ केस बंद करने का फैसला कोर्ट का है। इसलिए उस पर कमेंट्स करना बेहतर नहीं। लेकिन मुद्दों पर सवाल खड़ा करने का हक हर भारतीय को है। सवाल सीधा सा है.... 80 करोड़ के घूस का मसला..... जांच के दौरान पच्चीस साल में 250 करोड़ का खर्च..... नतीजा सिफर, ऐसा क्यों? सीबीआई के पूर्व अधिकारी जोगिंदर सिंह ने एक टीवी चैनल पर बेबाक अंदाज में सीबीआई पर सियासी अंकुश की बात कही। हालात बेहतर नहीं, ये कहना बेमायने है। अब तो कहना होगा, कि हालात भयावह है। भारतीय हुक्मरान.....मिस्त्र और लीबिया से सबक लेने को तैयार नहीं। शायद उन्हें भरोसा है, भारतीय जनता के सब्र पर। तभी तो.........दशक दर दशक , घोटालों की फेहरिश्त लंबी होती जा रही है। भ्रष्ट तंत्र नंगा होता जा रहा है। लेकिन शर्मसार कोई नहीं। ना तो हुक्मरान, ना अवाम। लोकतंत्र के पहरुआ होने का दावा करने वाले देश में विपक्ष भी कारगर नहीं। इसके पीछे भी खास वजह है। एक तो जनता की वैचारिक नपुंसकता और दूसरी हमाम में सभी नंगे है सरीखा सच। सोचने की जरूरत वैचारिक नपुंसकता मिटाने के लिए जरूरी है। क्रांति की नींव वैचारिक मंथन से ही पड़ती है। आखिर कब तक भ्रष्टाचार और जांच के साथ जनता के साथ लूट खसोट अंजाम दिया जाएगा? और इसका अंत कैसे होगा ? जरा सोचिए....... आखिर देश आपका है...... सवाल आपका है...........