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इमली बांध बाबा मंदिर

भारत भूमि को प्रांरभ से ही देवभूमि होने का गौरव प्राप्त है। शायद ही कोई ऐसा प्रदेश हो जहां ऋषि-मुनियों की चरणरज न पहुंची हो। समय-समय पर साधु-संतों ने संतप्त मानवता को सत्य शिक्षा व ज्ञान प्रदान कर शीतलता प्रदान की। इसी अनवरत श्रृंखला में उ0प्र0 की राजधानी लखनऊ के ग्रामीण अंचल में स्थित इमली बांध बाबा मंदिर जनपदवासियों के लिए अपार श्रद्वा का केंद्र है। जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर लखनऊ-फैजाबाद मुख्य मार्ग पर पूर्वोत्तर दिशा में ये पवित्र स्थल अवस्थित है। चिनहट ब्लाक के गांव उत्तरधौना के मजरे तारापुरवा में ये मंदिर आता है।

गांव के बुजुर्गों के अनुसार बाबा बैसवारा (सिसोदिया वंषज) ठाकुर थे। बाबा मूल रूप से जनपद रायबरेली (डोडियाखेड़ा) के रहने वाले थे। नवाबी शासन काल में बाबा व ठाकुर बिरादरी के काफी लोग जनपद रायबरेली से राजधानी लखनऊ स्थानातंरित हो गए थे। बाबा के वंशजों ने ही जनपद लखनऊ का गांव उत्तरधौना, पपनामऊ व जनपद बाराबंकी का गांव बस्ती हरौड़ी बसाया था। बाबा जन्म से ठाकुर व कर्म से ब्राहाण थे। इंदिरा नहर पर बांध निर्माण के दौरान कई अड़चनें आ रही थी तब एक स्थानीय ग्रामीण के कहने पर ठेकेदार ने बाबा के स्थान पर मन्नौती मांगी । कहते हैं कि उस दिन के बाद से बांध का कार्य निर्बाध रूप से चला व मन्नत के अनुसार ठेकेदार ने बाबा का चबूतरा व षिव मंदिर का निर्माण करवाया। पूर्व में यहां इमली का बांध बना था व पूरे इलाके में इमली के पेड़ों का घना जंगल था इसलिए मंदिर का नामकरण इमली बांध बाबा मंदिर हो गया। बाबा का वास्तविक नाम क्या था किसी भी बुजुर्ग को इसकी जानकारी नहीं है लेकिन बाबा के चमत्कारों के किस्से यहां-छोटे बड़े सबकी जुबान पर हैं।

मंदिर खुले व विशाल प्रांगण में निर्मित है। चारों ओर फैली हरी वनस्पति सबको अपनी ओर बरबस ही आकर्षित कर लेती है। चबूतरे पर सफेद संगमरमर की शिला पर बाबा का काल्पनिक चित्र अंकित है। बाबा का कोई चित्र उपलब्ध नहीं है किसी भक्त ने अपनी कल्पना से बाबा का चित्र संगमरमर की शिला पर अंकित करवा दिया था। पहले इस स्थान पर इमली का वृक्ष था। वर्तमान में यहां पर बरगद, पीपल व नीम का वृक्ष है। बाबा का चित्र किसी के पास उपलब्ध नहीं है। मंदिर में छोटी-बड़ी सैंकड़ों घण्टियां बंधी हैं जो भक्तों की आस्था व विशस का प्रतीक हैं। बाबा के मंदिर के आगे दायीं ओर सुंदर यज्ञषाला निर्मित है। यज्ञशाला से आगे हनुमान जी, शंकरजी का मंदिर स्थित है। मंदिर श्रृंखला में आगे मां दुर्गा का मंदिर निर्माणाधीन है। भव्य प्राकृतिक वातावरण में घिरा मंदिर खुले विशाल प्रांगण में स्थित है। मंदिर प्रांगण में पेड़-पौधों की भरमार है। जो मंदिर क्षेत्र को अद्भुत सुशमा प्रदान करते हैं। मंदिर के पार्शव में तालाब है जो कि इमली बांध बाबा का तालाब के नाम से प्रसिद्व है। पहले इस तालाब में भरपूर पानी रहता था पवित्र सरोवर में स्नान कर भक्त बाबा के दर्शन करते थे। वर्तमान में तालाब सूख चुका है।

बाबा के मंदिर के सामने शिवाला व हनुमान जी का प्राचीन मंदिर स्थित है। दोनों मंदिर ठेकेदार के बनवाये हुए हैं। मंदिर के साथ पुजारी जी का कमरा बना है। भक्तों व यात्रियों की सुविधा हेतु मंदिर परिसर में रैन बसेरा निर्मित है। मंदिर की कोई प्रबंध समिति नहीं है मंदिर की व्यवस्था आस-पास के गांव की पंचायतें मिलकर सामूहिक रूप से करती हैं।

आस-पास के क्षेत्रों में मंदिर की बड़ी मान्यता है। भक्तों का विश्वास है कि बाबा के दरबार से आज तक कोई निराश नहीं लौटा है। मंदिर की चारों दिशाओं में उत्तरधौना, धांवा, सेमरा, पपनामऊ व अनौराकलां गांव बसे हैं। पूरे जंमार के गांवों में जब भी कोई नई बहू आती है तो वो पहली बार खाना बनाकर बाबा को भोग लगाती है तदुपरांत उसका आगमन पूर्ण माना जाता है। ये परंपरा बरसों से पूरे इलाके में प्रचलित है। ग्रामीणों के अनुसार स्थानीय तारापुरवा के बालक राम व छत्तौना के राधे बाबा ने मन्नत पूरी होने पर अपनी जीभ ही काटकर बाबा पर चढ़ा दी थी। अगली सुबह उनकी जीभ पूर्ववत हो गई। बाबा के दरबार से सैकड़ों निःसंतानों को संतान का फल मिला।

स्थानीय ग्रामीण जानवर के बच्चा व दूध न देने पर बाबा के यहां मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर मंदिर में श्रद्वा से दूध चढ़ाते हैं। प्रथा के अनुसार आस-पास के गांव की लड़कियां अपने बच्चों का मुण्डन बाबा के स्थान पर ही करती हैं। मंदिर की देखभाल बाबा शोभादास व रामसजीवन दास करते हैं। बाबा रामसजीवनदास सतनामी अखाड़े के महान संत बाबा जगजीवन राम जी के चेले हैं।

हर महीने की पूर्णिमा को मंदिर परिसर में भारी मेला लगता है। सप्ताह के प्रत्येक सोम व शुक्रवार को मन्नौती मांगने व भेंट चढ़ाने वालों की लंबी कतारें लगती हैं। आषाढ़ व कार्तिक माह की पूर्णिमा में मंदिर में विषेष पूजा-अर्चना व भण्डारे का प्रबंध होता है। ग्रामीण क्षेत्र में स्थित ये देव स्थल प्रशासन की उपेक्षा के कारण विकसित नहीं हो पाया है। मुख्य मार्ग से लगभग डेढ किलोमीटर की दूरी पर मंदिर स्थित है। मंदिर का संपर्क मार्ग अर्ध निर्मित है। वर्षा ऋतु में पानी भर जाने से भक्तों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ता है।


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