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भ्रष्टाचार के कीचड़ में रथयात्रा का कमल

बीजेपी के सीनियर लीडर लाल कृष्ण आडवाणी एक बार फिर रथ यात्रा का ऐलान किया है। इस बार मुद्दा भ्रष्टाचार है। अन्ना हजारे द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई से जोश में आये आडवाणी ने भी भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए देश भर में जनजागरण और यूपीए सरकार की काली करतूतों का भंडा फोड़ने की पूरी तैयारी में हैं। आडवाणी इससे पूर्व पांच रथ यात्राएं कर पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने का काम कर चुके हैं। अगले साल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर आडवाणी की रथ यात्रा को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। लेकिन कर्नाटक और उत्तराखण्ड में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते बीजेपी को मुख्यमंत्रियों को बदलना पड़ा, वहीं पंजाब में उसके सहयोगी अकाली दल द्वारा दुर्दांत आंतकवादी की फांसी की सजा माफ करवाने की मांग, झारखण्ड में शिबु सोरेन की भ्रष्ट सरकार को समर्थन देकर बीजेपी खुद कटघरे में खड़ी है, ऐसे में आडवाणी की रथयात्रा क्या रंग लाएगी ये तो आने वाला समय ही बताएगा।

राजनीतिक दृष्टि से कांग्रेस की हालत इस समय अत्यधिक नाजुक है। जो कारनामा पूरा विपक्ष मिल कर नहीं कर पाया उस काम को 12 दिन के अनशन में अन्ना ने कर दिखाया। सोनिया की गैरमौजूदगी में राहुल के हाथों में सरकार की कमान थी। लेकिन राहुल और उनके करीबी मंत्रियों ने अन्ना के अनशन को जिस लड़कपन और बचकाने तरीके से निपटा है, उससे देश भर में ये मैसेज गया कि कांग्रेस का हाथ भ्रष्टाचार के साथ है। सिविल सोसायटी के मांगों पर संसद ने सम्मति देकर ऐतिहासिक काम किया है, लेकिन इसका श्रेय भी कांग्रेस के खाते में जाने की बजाय सब दलों में बराबर बंट गया। अन्ना के अनशन ने बैठे-ठाले विपक्ष खास कर बीजेपी को केन्द्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने का सुनहरा अवसर दे दिया है।

वक्त की नजाकत भांपते हुये आडवाणी ने भ्रष्टाचार के विरूद्व अलख जगाने के लिए रथ यात्रा का विकल्प चुनकर सीधे-सीधे कांग्रेस नीत यूपीए सरकार पर हमला बोलने का फाॅर्मूला ढूंढ लिया है। आडवाणी चाहते है कि अन्ना ने अनशन के दौरान कांगे्रेस की जो निगेटिव छवि का निर्माण देश की जनता के बीच हुआ है वो मुद्दा आगामी आम चुनावों तक जनता को याद रहना चाहिए। आडवाणाी ने रथ यात्रा का ऐलान करके एक पत्थर से दो निषाने लगाए हैं। रथ यात्रा से वो कांग्रेस की असलियत देष की जनता को बताकर बीजेपी के जनमत तैयार करेंगे ही वहीं उन्होंने अपनी पार्टी में भी ये मैसेज दे दिया है कि आगामी आम चुनावों में एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए वो सषक्त उम्मीदवार हैं।

असल में बीजेपी पर जब-जब संकट आया है तब आडवाणी ने रथ यात्रा के द्वारा पार्टी की डूबती नैया को पार लगाया है। ये अलग बात है कि फसल आडवाणी ने लगाई और कटाई के समय अटल बिहारी वाजपेयी सामने आ गये। लबोलुआब यह है कि आडवाणी को उनकी मेहनत का फल नहीं मिल पाया। देखा जाए तो पिछले आम चुनावों में पार्टी का जनाधार घटा है। राज्यों में भी बीजेपी की हालत पतली ही है। देष की राजनीतिक राजधानी उत्तर प्रदेष में बीजेपी हाषिये पर खड़ी है। जिन राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं वहां गुटबाजी, अंदरूनी राजनीति और उठा-पटक रूकने का नाम नहीं ले रही है।आडवाणी ने रथ यात्रा का ऐलान तो कर दिया है लेकिन ख्ुाद उनकी पार्टी के पूर्व सांसद नोट फाॅर वोट मामले में तिहाड़ में बंद हैं। कर्नाटक और उत्तराखण्ड में बीजेपी को भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते मुख्यमंत्रियों को बदलना पड़ा। और जिन राज्यों में बीजेपी की गठबंधन की सरकार है वहां भी भ्रष्टाचार की आवाजेें सुनाई देती रहती हैं। पार्टी की सीनियर और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज पर कर्नाटक के खनन माफिया रेड्डी बंधुओं से सांठ गंाठ के आरोप सरेआम लग रहे हैं। जब बीजेपी के दामन पर खुद भ्रष्टाचार के दाग लगे हुए हैं तो आडवाणी किस
मुंह से इसके खिलाफ मुंह खोलेंगे, और कांग्रेस पर निशाने लगाएंगे ये देखना होगा।

आडवाणी को उम्मीद है कि रथ यात्रा के साथ अगर भ्रष्टाचार को जोड़ दिया जाए तो उसका तोड़ किसी के पास नहीं होगा। ऊपरी तौर पर आडवाणी की रथ यात्रा का मकसद साफ-सुथरा और देश हित में लगता है लेकिन असल में रथ यात्रा की आड़ में आडवाणी विशुद्व राजनीति के अलावा कुछ और करेंगे इसकी उम्मीद न के बराबर है। आडवाणी कोई समाज सेवक तो है नहीं जो बिना किसी स्वार्थ के देश और दुनिया को बचाने के लिये रथ यात्रा करे, उनका असली निशाना 2014 के आम चुनाव हैं। अन्ना ने देश भर में जो एंटी कांग्रेस माहौल बनाया है उस पर ऊपर नीचे पलीता लगाने का काम आडवाणी करेंगे।

नब्बे के दशक में जब आडवाणी ने रथ यात्रा निकाली थी तो तब देश में अलग तरह की हवाएं बह रही थी। पिछले दो दशकों में देश की जनता ने अनेक नेताओं की कई काली करतूतों को बहुत नजदीक से देखा और जाना है। जो जनता कभी मंदिर मस्जिद के लिए एक-दूजे का कत्ल करने पर आमादा थी। उसी जनता ने बाबरी मस्जिद के फैंसले के दिन जो समझदारी दिखाई उसकी जितनी तारीफ की जाए वो कम है। पिछले एक दशक में नेताओं की छवि जनता की नजर में बद से बदतर हुई है। राजनीति के हमाम में सभी नंगे है, इस बात का खुलासा हो चुका है। रही सही कसर अन्ना के अनशन ने पूरी कर दी। जन लोकपाल बिल के दौरान हर छोटे बड़े राजनीतिक दल का चेहरा और चरित्र देश की जनता के सामने आ गया। ऐसे माहौल में आडवाणी का भ्रष्टाचार के खिलाफ रथ यात्रा पर निकलना पहले से ही खस्तहाल बीजेपी की हालत को कहीं और खराब न कर दे।

शायद आडवाणी इस मुगालते में हैं कि देश में एंटी कांग्रेस हवा का फायदा भाजपा को मिलेगा। लेकिन वो इस बात को भूल जाते हैं कि जन लोकपाल बिल पर जो स्टैंड कांग्रेस व दूसरे दलों का था, वहीं स्टैंड बीजेपी का भी था। मजबूरी के चलते सरकार और विपक्षी दलों को सिविल सोसायटी की बात मानी थी। ये अलग बात है कि केंद्र में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार है ऐसे में सारे किये धरे का ठीकरा कांग्रेस के माथे ही फूटेगा लेकिन कम या ज्यादा असर सभी राजनीतिक दलों को भुगतना पड़ेगा इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है। जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है वहां कांग्रेसियों और दूसरे राज्यों में जो पार्टियां शासन का सुख भोग रही है, उनके नाक के नीचे पलने और पनपने वाले भ्रष्टाचार के खिलाफ भी जनता का गुस्सा फूटना लाजिमी है। ऐसे में आडवाणी का कांग्रेस की ओर उंगुली उठाने सेे एक उंगुली उनकी ओर भी अपने आप उठ जाएगी। इस रथयात्रा से पूर्व उपप्रधानमंत्री आडवाणी रामजन्मभूमि, जनादेश, स्वर्ण जयंती, भार उदय और भारत सुरक्षा यात्रा निकाल चुके हैं। अन्ना की हुंकार और हठ से जोश में आए आडवाणी ने रथ यात्रा का फैंसला ले तो लिया है लेकिन जिस मकसद से आडवाणी रथ यात्रा पर निकल रहे हैं उसका पूरा हो पाने की संभावना न के बराबर हैं। कहीं ऐसा न हो कि आडवाणी की रथयात्रा उनके राजनीतिक यात्रा के ताबूत में आखिरी कील साबित हो।


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