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चुनाव महाराज! चुनाव!

राजा और आधुनिकता __________________________________________ राजा ने अचानक विद्वानों की आपात मीटिंग आहूत की। राज्य में बचे-खुचे विद्वान भागे-भागे आए। डरे-डरे उपस्थित हुए। सभी के मन में एक ही सवाल था,'आखिर क्यों बुलाए हैं राजा ने!' कुछ समय उपरांत राजा ने मीटिंग का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा,'जैसा कि विदित है मुझे आखेट बहुत पसंद है। परंतु अब मैं चाहता हूँ कि आप सब आखेट शब्द की जगह कोई नया शब्द खोजे या बनाएं! मुझे यह शब्द भाता नहीं! नकारात्मक झलकती है...प्रजा मुझे क्रूर समझती है।' राजा विद्वानों के चेहरों का एक्सप्रेशन देखने के लिए एक पल को रुका। फिर आगे बोला,'यह शब्द मुझे पुरातन,घिसा-पीटा लगता है। मुझे कोई आधुनिक, नया शब्द दें! और हाँ, एक बात और...जब तक मेरी समस्या का समाधान नहीं हो जाता, तब तक आप में से कोई भी राजधानी से जाएगा नहीं!' राजा के मकसद बताते ही विद्वान जुट गए अपने काम में। खूब किताबें खंगालीं गईं। पोथन्ना बाँचे गये। गरमा-गरम बहसें हुईं। कई नए शब्द लिखे गए। फिर काटे गए। खूब गोजा-गाजी हुई। अंततः उनको एक नया शब्द मिला,जिस पर बनते-बनते सबकी सर्वसहमति भी बन गई। विद्वानों की टोली खुशी-खुशी वह शब्द लेकर राजा के सामने उपस्थित हुई। 'तो आपने क्या नया शब्द खोजा!' राजा ने पूछा। 'चुनाव महाराज! चुनाव!' विद्वानों की टोली ने समवेत स्वर में कहा। यह शब्द सुनते ही राजा खुशी से उछल पड़ा। वह उत्साहित होकर बोला,'वाह! हमें भाया यह शब्द। खूब भाया। तो तय रहा आज से हम आखेट पर नहीं चुनाव पर जाया करेंगे!' अनूप मणि त्रिपाठी


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