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योगेंद्र दुबे के मंचिय तेवरों को याद किया कलाकरों और मीडिया मित्रों ने

 -- मंच और मित्रों की मुश्‍किलों को अपनी निजि चुनौती के रूप में लेते थे दुबेज

वरिष्‍ठ रंग कर्मी अनिल शुक्‍ला स्‍व योगेन्‍द्र दुबे के साथ
बिताये समय की याद ताजा की.
आगरा। लोक नाट्य विकास और रंग कला के जिन कार्यों को वह अधूरा छोड़ गए हैं, उन्हें पूरा करने के संकल्प के साथ आगरा के कलाप्रेमियों और पत्रकारों ने वरिष्ठ रंगकर्मी और पत्रकार योगेंद्र दुबे को नम आँखों से श्रद्धांजलि दी। नाट्य संस्था 'रंगलीला' द्वारा 'हरियाली वाटिका' में आयोजित एक बड़ी शोक सभा में मौजूद शहर के अनेक प्रमुख संस्कृतिकर्मियों, साहित्यकारों, लेखकों और पत्रकारों ने भगत, थिएटर और पत्रकारिता के क्षेत्र में श्री दुबे के योगदान को याद किया। शोक सभा की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार विनोद भारद्वाज ने की।

वरिष्ठ साहित्‍यकार एवं नवलोक टाइम्‍स के प्रकाशक रहे डा. अखिलेश श्रोत्रिय ने श्री दुबे की लोक नाट्य 'भगत' की भूमिकाओं पर विस्तार से प्रकाश

डालते हुए कहा कि मैंने उन्हें आधुनिक रंगमंच की भूमिकाओं में भी देखा था लेकिन लोक नाट्य अभिनेता के बतौर जिस तरह उन्होंने अपने अभिनेता का रूपांतरण किया उसका दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। 'अमूमन सूत्रधार की भूमिकाओं में भगत के मंचों पर वह जितनी देर मौजूद रहते थे, दर्शक उनसे हर बार किसी न किसी अनोखे 'जवाब' को पेश करने की उम्मीद बनाये रखता था।

  वरिष्ठ रंगकर्मी मनमोहन भरद्वाज ने श्री दुबे के साथ अपने रंगकर्मीय रिश्तों को साझा करते हुए कहा कि उनके पास अपने सहअभिनेताओं के लिए मंच और पार्श्वमंच की सभी मुश्किलों का जादुई इलाज होता था। उन्‍हों ने कहा किमंच और मित्रों की मुश्‍किलों को अपनी निजि चुनौती के रूप में लेते थे दुबेजी। दिल्ली से आये वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोकीनाथ उपाध्याय और आशु सक्सेना ने कहा कि हमने न सिर्फ़ ख़बरों की 'कॉपी' लिखने की कला उनसे सीखी बल्कि रिपोर्टिंग की बाराखड़ी का ज्ञान भी उन्हीने से लिया। आलोचक नसरीन बेगम, बृजराज सिंह और मधुरिमा शर्मा ने योगेंद्र दुबे के व्यक्तित्व के अनेक पहलुओं की चर्चा की।

मंच से श्री दुबे को श्रद्धांजलि देने वालों में वरिष्ठ ग़ज़लगो अशोक रावत, शायर अमीर अहमद ज़ाफ़री, वरिष्ठ कवि शलभ भारती, इतिहासकार डॉ० आर सी शर्मा, वरिष्ठ रंगकर्मी बसंत रावत, मनोज शर्मा, विनय पतसारिया, राजीव सिंघल, राजीव सक्‍सेना, भुवनेश श्रोत्रिय आदि भी शामिल थे।

खचाखच भरे सभगार में मौजूद लोगों में हिंदी के युवा आलोचक प्रियम अंकित,गिरिजाशंकर शर्मा, शंकरदेव तिवारी,आकाश बबर, डा. अनन्त, नारायण सिंह, हिमानी चतुर्वेदी, हरीश चिमटी, मालती कुशवाहा, रामभारत उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार शरद यादव, अनुपम पांडेय कमलदीप, सुनील साकेत, ख़ावर हाश्मी, अज़हर उमरी, दानिश उमरी, केके शर्मा, जेके शर्मा, राजीव शर्मा, चंद्रशेखर, अनिल दीक्षित, अनिल शर्मा, टोनी फास्टर, रंजीत, सुरेंद्र यादव, नरेश पारस, रवि प्रजापति,  मनीषा शुक्ला, के अलावा श्री दुबे की बेटी (इति), बेटे ( प्रज्ञान) भाई (डॉ विनोद दुबे) व अन्य परिजन तथा शहर के अनेक गणमान्य नागरिक मौजूद थे।

बाहर से आये वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र त्रिपाठी (मेरठ), प्रभात सिंह (बरेली), सुभाष राय, दयाशंकर राय(लखनऊ), विभांशु दिव्याल, प्रकाश श्रीवास्तव  (दिल्ली),  कत्थक नृत्यांगना काजल शर्मा (लन्दन), वरिष्ठ मीडिया कंसल्टेंट पीयूष श्रीवास्तव (नोयडा), लेखिका रानी सरोज गौरिहार, ज्योत्स्ना रघुवंशी, रंगकर्मी सोनम वर्मा (आगरा) बृजमोहन श्रीवास्तव, सांस्कृतिक संस्था 'हम लोग' और 'संकेत' (आगरा) आदि के शोक संदेशों को युवा रंगकर्मी सुश्री मन्नू शर्मा द्वारा पढ़ा गया। इस अवसर पर 'रंगलीला' की ओर से वरिष्ठ रंगकर्मी मनोज सिंह ने एक शोक प्रस्ताव पढ़ा जिसे वहां उपस्थित सभी ने पारित किया। शोक सभा का सञ्चालन वरिष्ठ रंगकर्मी शिवेंद्र मल्होत्रा ने किया।  'रंगलीला' के निर्देशक अनिल शुक्ल ने वहां आये सभी आगंतुकों का धन्यवाद दिया।



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