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मानसून सत्र के आज नौवे दिन भी सदन में मणिपुर मुद्दे पर विपक्ष ने हंगामा किया। स्पीकर ओम बिरला की सीट के पास तक विरोध प्रदर्शन की बैनर और पट्टियां पहुंच गईं। नारेबाजी के बाद स्पीकर ने सदन की कार्यवाही को दोपहर 2 बजे तक स्थगित कर दिया। विपक्ष के सांसद राज्यसभा में ‘प्रधानमंत्री सदन में आओ’ के नारे लगाते रहे । विपक्ष मणिपुर के मुद्दे पर चर्चा कराने की मांग कर रहा है। 2 बजे के बाद कार्यवाही शुरू होने पर केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में दिल्ली सविस बिल पेश कर दिया है। कांग्रेस ने इसका जोरदार विरोध किया है। लोकसभा में दिल्ली सर्विस बिल को लेकर विपक्ष विरोध कर रहा है। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह बिल संघीय सहकारितावाद की अवधारणा का उल्लंघन है। यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ है। वहीं इसका जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि सर्वोच्च अदालत ने साफ किया है कि संसद दिल्ली राज्य के लिए कोई कानून बना सकती है। इसलिए इस बिल को संसद के सामने पेश करने की अनुमति दी जाए। इसके बाद विपक्षी नेताओं ने नारेबाजी शुरू कर दी। सदन में चर्चा के दौरान चर्चा के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा, ‘संविधान ने सदन को शक्ति दी है कि वह दिल्ली के संबंध में कोई भी कानून पारित कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने भी स्पष्ट कर दिया हैकि दिल्ली राज्य के बारे में संसद कोई भी कानून बना सकती है। सभी आपत्तियां राजनीतियां है। कृपया मुझे यह बिल लाने की अनुमति दें।इससे पहले सोमवार को भी केंद्र सरकार लोकसभा में दिल्ली सर्विस बिल पेश करने वाली थी, लेकिन हंगामे के चलते लोकसभा को स्थगित करना पड़ा था इसलिए अब यह आज पेश किया गया। दिल्ली सर्विस बिल के पास हो जाने से दिल्ली के मुख्यमंत्री और राज्य सरकार की शक्तियां काफी हद तक कम हो जाएंगी। दिल्ली में जो भी अधिकारी कार्यरत होंगे, उन पर दिल्ली सरकार का कंट्रोल खत्म होगा और ये शक्तियां उपराज्यपाल के जरिए केंद्र के पास चली जाएंगी। दिल्ली सेवा बिल में नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी बनाने का प्रावधान है। दिल्ली के मुख्यमंत्री इसके अध्यक्ष होंगे। अथॉरिटी में दिल्ली के मुख्य सचिव एक्स ऑफिशियो सदस्य, प्रिसिंपल होम सेक्रेटरी मेंबर सेक्रेटरी होंगे। अथॉरिटी की सिफारिश पर एलजी फैसला करेंगे, लेकिन वे ग्रुप-ए के अधिकारियों के बारे में संबधित दस्तावेज मांग सकते हैं। अगर अथॉरिटी और एलजी की राय अलग-अलग होगी तो एलजी का फैसला ही अंतिम माना जाएगा।
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केंद्र सरकार ने 19 मई को जारी किया था अध्यादेश–
बता दें कि दिल्ली सर्विस बिल 19 मई को जारी किए अध्यादेश की हुबहू कॉपी नहीं है। इसमें तीन प्रमुख संशोधन किए गए हैं। बिल से सेक्शन 3 A को हटा दिया गया है। इसमें दिल्ली विधानसभा को सेवाओं संबंधित कानून बनाने का अधिकार नहीं दिया गया था। इसकी जगह बिल में आर्टिकल 239 AA पर जोर है, जो केंद्र को नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी (NCCSA) बनाने का अधिकार देता है। पहले अथॉरिटी को अपनी गतिविधियों की एनुअल रिपोर्ट दिल्ली विधानसभा और संसद दोनों को देने की बात थी लेकिन अब इस प्रावधान को भी हटा दिया गया है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार 19 मई को एक अध्यादेश लेकर आई थी। इस अध्यादेश के जरिए दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार फिर से उपराज्यपाल को दे दिया गया है। यानी दिल्ली सरकार अगर किसी अधिकारी का ट्रांसफर करना चाहती है, तो उसे उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी होगी। अब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अध्यादेश से जुड़े बिल को संसद में पास कराना है, क्योंकि तभी यह कानून का शक्ल ले पाएगा। 25 जुलाई को इस अध्यादेश को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिली थी। इसे लेकर आप के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि इससे दिल्ली में लोकतंत्र ‘बाबूशाही’ में तब्दील हो जाएगा। चुनी हुई सरकार की सारी शक्तियां छीनकर भाजपा के नियुक्त किए गए एलजी को दे दी जाएंगीं।
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