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उत्तराखंड में इगास पर इस बार भी रहेगी सार्वजनिक छुट्टी, दिवाली के 11 दिन बाद बनाया जाता है यह लोक पर्व

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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस बार भी इगास पर्व (बूढ़ी दिवाली) पर राज्य में अवकाश का एलान किया है। यह दूसरा मौका होगा जब धामी सरकार ने उत्तराखंड के इस लोक पर्व पर छुट्टी की घोषणा की है। सीएम धामी ने स्वयं ट्वीट करते हुए इसकी जानकारी दी है। ‌ उत्तराखंड में दीपावली के 11 दिन बाद लोक पर्व इगास मनाया जाता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि इगास बग्वाल उत्तराखंड वासियों के लिए एक विशेष स्थान रखती है।‌‌ यह हमारी लोक संस्कृति का प्रतीक है। हम सब का प्रयास होना चाहिए कि अपनी सांस्कृतिक विरासत और परंपरा को जीवित रखें। नई पीढ़ी हमारी लोक संस्कृति और पारम्परिक त्योहारों से जुड़ी रहे, ये हमारा उद्देश्य है। दिवाली के 11 दिन बाद पहाड़ में एक ओर दिवाली मनाई जाती है, जिसे इगास कहा जाता है। इस दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते हैं और शाम को भैलो जलाकर देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। पूजा-अर्चना के बाद ढोल-दमाऊं की थाप पर भैलो (भीमल या चीड़ की लकड़ी का गट्ठर) जलाकर घुमाया जाता है और नृत्य किया जाता है। मान्यता है कि भगवान राम के लकां विजय कर अयोध्या पहुंचने की सूचना पहाड़ में 11 दिन बाद मिली थी। इसीलिए दिवाली के 11 दिन बाद इगास (बूढ़ी दिवाली) मनाया जाता है। उत्तराखंड के जौनसार बावर में बूढ़ी दीपावली में पर्यावरण को प्रदूषित नहीं किया जाता। ईको फ्रेंडली दीपावली मनाने का रिवाज पौराणिक काल से है। यहां पर पटाखे, आतिशबाजी का चलन नहीं है। इसीलिए मशालों से गांव को रोशन किया जाता है। रात को सारे पुरुष होला को जलाकर ढोल-दमाऊ रणसिंगे की थाप पर पंचायती आंगन में लोक नृत्य कर खुशियां मनाते हैं। दीपावली के गीत गाते व बजाते हुए वापस अपने अपने घरों को लौट जाते हैं। दिवाली की दूसरी रात अमावस्या की रात होती है, जिसे रतजगा कहा जाता है। गांव के पंचायती आंगन में अलाव जलाकर नाच गाने का आनंद लिया जाता है। पहाड़ में मान्यता है कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीराम के वनवास से अयोध्या लौटने पर लोगों ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। लेकिन, गढ़वाल क्षेत्र में राम के लौटने की सूचना दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली। इसीलिए ग्रामीणों ने खुशी जाहिर करते हुए एकादशी को दीपावली का उत्सव मनाया। दूसरी मान्यता के अनुसार दीपावली के समय गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट, तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी। दीपावली के ठीक ग्यारहवें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी। युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दीपावली मनाई थी। एकादशी के दिन होने के कारण इगास कही गई। पहाड़ की लोक संस्कृति से जुड़े इगास पर्व के दिन घरों की साफ-सफाई के बाद मीठे पकवान बनाए जाते हैं और देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। साथ ही गाय व बैलों की पूजा की जाती है। शाम के वक्त गांव के किसी खाली खेत, खलिहान में नृत्य के भैलो खेला जाता है। भैलो एक प्रकार की मशाल होती है, जिसे नृत्य के दौरान घुमाया जाता है।



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