जीवन मन्त्र
शब्दों के जाल बिछाने वाले
कुछ कर्मो के करतब दिखलाओ
वाणी से मिसरी घोलने वाले
तुम मर्म किसी का क्या जानो
अर्थ का अनर्थ बनाने वाले, कुछ विषधरों को तुम अब पहचानो
है स्पष्ट ,सरल , गूढ़ मन्त्र जीवन का ये
तुम मानो या ना मानो
कुछ निंदा करके क्या पाया
सिर्फ जिन्दा रहके क्या पाया
क्यों उचित को अनुचित में बदला
रिश्तो को विचलित करके क्या पाया
कुछ दम्भ भरा खुद का यूँ
कुछ अहम् हृदय में समाया
ज्ञान का दीपक बुझा दिया कब
देर समझ में ये आया
कब विवेक को छोड़ दिया तूने
कब धैर्य तुझे ना रास आया
लोभ ने छीनी अन्तः ज्योति
मोह में तूं है अंधराया
कब छूटे तुझसे ये धरा
क्या जग को तूं दे पाया
यहाँ जन्म ना तेरी चाह से
मृत्यु तक तूं ये ना समझ पाया