गुरु तेग बहादुर शहीद दिवस के लक्ष्य में सरकारी स्कूल में अवकाश(holyday) था | पहले यह अवकाश 24 नवंबर 2017 को घोषित हुआ और बाद में 23 नवंबर 2017 को घोषित(declared) हो गया | आधुनिक टेक्नोलॉजी और WhatsApp ग्रुप के बदौलत लगभग सभी शिक्षकों को यह मैसेज मिल गया कि अवकाश 1 दिन पहले हैं | मेरी मां जो स्वयं एक शिक्षिका है इत्तेफाक से 1 दिन पहले उन्होंने WhatsAppखोला ही नहीं ( यद्यपि हमारी पीढ़ी के साथ साथ चलने वाली माता जी के विषय में यह आश्चर्यचकित कर देने वाली घटना थी, पर यह घट ही गई और वह सुबह स्कूल को पहुंच गई | उनका विद्यालय ग्रामीण क्षेत्र में पड़ता है |
नवंबर के आखिरी सप्ताह में जब
शहर में ठंड थी | आप स्वतः समझ लें , ग्रामीण क्षेत्र में सुबह कितनी ठंड होती होगी, घना कोहरा छाया रहता है और ऐसे में उनका विद्यालय सड़क पर है | जब माता जी वहां पहुंची | तब उन्हें विद्यालय बंद मिला और बच्चों का झुंड सड़क किनारे खेलते, उछलता -कूदता ,मस्ती करता हुआ मिला | बच्चे इस इंतजार में थे ,कि शायद विद्यालय आज लेट खुलेगा और जब मां ने mobile से अपने साथ के अन्य शिक्षक- शिक्षिकाओं से संपर्क साधा तब पता चला की छुट्टी की सूचना Whatsapp द्वारा सभी शिक्षक -शिक्षिकाओं को मिल चुकी है | अब यहां तक ऐसा क्या था? जो अजीब है? मां जी की भूल!!! नहीं जी...... तकलीफ देता हैं यह कि इन ग्रामीण इलाकों के गरीब बच्चों के पास एंड्रॉयड मोबाइल नहीं था ,तो WhatsApp की सुविधा भी नहीं थी | इनके पास कुछ था तो वह था ... शिक्षा पाने की आकांक्षा .... छोटे-छोटे कक्षा 1-2 में पढ़ने वाले प्राथमिक विद्यालय के बच्चों से लेकर उच्च माध्यमिक विद्यालय कक्षा 8 तक में पढ़ने वाले यह बच्चे ग्रामीण इलाको में दूर-दूर से आते हैं | कुछ 1-2 किलोमीटर से तो कुछ पांच –छः किलोमीटर दूर से आते हैं | बहुतायत की संख्या में बच्चे पैदल आते हैं | घने कुहासे में यह सड़क पार करते हैं तो संभावित दुर्घटना से बिल्कुल अंजान होते हैं और जब यह विद्यालय पहुंचते हैं तो पता चलता है कि विद्यालय तो बंद है | गुरुजी तो छोड़ो दाई - चपरासी भी नहीं पहुंचे होते क्योंकि उन्हें भी मैसेज द्वारा यह सूचना प्राप्त हो चुकी होती है | यह बच्चे कभी-कभी 1 घंटे तक इंतजार करते करते हैं | अब आप बताइए कि इन्हें क्या दी गई छुट्टी का लाभ मिला अगर विद्यालय प्रांगण के बाहर सड़क पर टहलते हुए इन मासूमों के साथ कुछ दुर्घटना हो जाती है तो इसकी जिम्मेदारी क्या प्रशासन उठाएगा ? यह भूल प्रशासन के किस स्तर पर यह भूल हुई है यह तो कहा नहीं जा सकता | तभी एक दूसरे के सिर पर ठीकरा फोड़ते हैं पर शायद यह बात उन्हें समझ में आती तो वे संवेदनशील कहलाते | ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ एक अवकाश की घटना है अगर आप किसी शिक्षक से पूछे तो पता चलेगा कि कैसे अचानक ही स्कूल का समय शासन आदेश द्वारा बदल दिया जाता है ,,,, कैसे अचानक ही अवकाश की तिथि बदल दी जाती है ,,,यद्यपि Whatsapp द्वारा और अखबारों द्वारा यह खबर शिक्षकों को मिल जाती है पर बच्चों का क्या वह बच्चे जो अखबार की पहुंच से दूर रहते हैं | ऐसे ग्रामीणों के बच्चे जो खेतों में मजदूरी करते हैं उनतक खबर कैसे पहुचेगी ? क्या अच्छा ना होता कि गांव के प्रधान की जिम्मेदारी हो कि वह बच्चों तक अवकाश की खबर पहुंचा दे, “अगले दिन छुट्टी है” या कम से कम शासन के ज्ञानीजन इतना तो दो-तीन दिन पहले निश्चित कर ले कि कब छुट्टी घोषित करनी है ताकि शिक्षक पहले से बच्चों को बता पाए ,जो बच्चों को इतनी तकलीफ उठानी पड़ जाए तब तो छुट्टी शब्द ही बेकार है | बालपन में ही छुट्टी का सर्वोत्तम आनंद मिलता है वरना तो छुट्टी की ही छुट्टी हो जाए और फिर काहे की छुट्टी??????
अपने विचार कमेंट करके प्रकट करे ...
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