हिन्दू पुराणों में एक कथा आती है ,जिसके तीन मुख्य पात्र है – धन के देवता कुबेर ,गणेश जी और भगवान् शिव | कुबेर एक बार भगवान् शिव को अपने घर आमंत्रित करते है | कुबेर का वास्तविक उद्देश्य संसार के सामने अपनी अकूत धन संपदा का प्रदर्शन करना होता है सो वह सभी गणमान्य जनों को अपने यंहा भोजन हेतु आमंत्रित करते है | अन्तर्यामी शिव आमंत्रण के पीछे छुपे इस अहंकार भरे उद्देश्य को जान लेते है और अपने परिवार के ओर से अपने पुत्र गणेश को भोजन में शामिल होने के लिए भेजते है |
गणेश के कुबेर के महल पर पहुँचने पर कुबेर अहंकारवश .गणेश जी को उचित आदर नहीं देते | कथा आगे बढती है और देखा यह जाता है , अकूत धन-संपदा के स्वामी कुबेर गणेश जी की भूख शांत नहीं कर पाते उन्हें अपने भोजन से तृप्त नहीं कर पाते |
अन्त्वोगात्वा कुबेर को अपनी भूल का एहसास होता है और उनके गणेश जी से क्षमा माँगने पर और गणेश जी को उचित आदर देकर भोजन कराने पर गणेश जी की भूख शांत होती है |
ये कहानी हमे बताना क्या चाहती है और इस लेख से इसका क्या सम्बन्ध है ? हममे से ज्यादातर यह सोचेंगे की यही शिक्षा मिलती है अहंकार नही करना चाहिए पर यह सिर्फ एक बात हुई पौराणिक कहानियां स्वयं में कई अर्थ समेटे रहती है |
यंहा एक व्यक्ति है कुबेर जिन्हें अपने अतिथि गणेश जी को भोजन करना है पर वह गणेश जी की क्षुदा शांत नहीं कर पाते क्युकी कुबेर गणेश जी को संपूर्ण भोजन नहीं परोसते है | अब यह संपूर्ण भोजन या कम्पलीट मील क्या है ? संपूर्ण भोजन यानी वह भोजन जो आपके स्वास्थ्य की रक्षा करे और उससे बढाने वाला हो , जिसमे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों आते है |
सम्पूर्ण भोजन में सिर्फ protein, vitamins, fat and minerals ही नहीं आते जो की सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ने वाले होते है बल्कि अच्छी भावनाए जैसे प्रेम , प्रशंसा , कृतज्ञता ,क्षमा ,आदर –सत्कार भी आते है जो मानसिक स्वास्थ्य को बढाने वाले होते है | कथा के अंत में जब कुबेर गणेश जी से क्षमा माँगते है और आदर सत्कार से खाना खिलाते है तब गणेश जी की भूख शांत होती है | अब यह बात हुई कथा की, परन्तु हममे से कितने लोग सम्पूर्ण भोजन करते है या अपने परिवार को कराते है ?
वास्तव में हमारी सारी चिंता ,दुनियावालो से शिकायते खाना खाते खिलाते समय ही निकलती है हमें देश की चिंता खाना खाते समय ही होती है ,शेयर मार्किट के उतार चढ़ाव ,facebook ,what’sapp updates सभी के लिए खाने का समय ही महत्वपूर्ण होता है |
ऐसे में सूक्ष्म रूप से हो क्या रहा होता है कि हम स्वयं को मानसिक आहार (प्रेम , शान्ति, कृतज्ञता आदि ) नहीं दे रहे होते ,जो की हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है और जो शरीर को दे रहे होते है उससे भी दूषित कर रहे होते है |
परिणामस्वरूप न खाने में तृप्ति मिलती है ,उल्टा अपच ,acidity अलग हो जाती है |
अब ज़रा इस बात पर भी ध्यान दे कि यदि आप पर अपने परिवार कोभी भोजन कराने की जिम्मेदारी है तब क्या आप उन्हें सम्पूर्ण भोजन करा पा रहे है | आप चाहे स्त्री हो या पुरुष पर यदि आप कमा रहे है तो यह आपकी जिम्मेदारी है की आप उन्हें सम्पूर्ण भोजन दें |
प्रसंशा के दो वाक्य ,उसके लिये जो आपके लिए खाना बना रही है, कृतज्ञता के कुछ शब्द उस शक्ति के लिए जिस पर आप श्रद्धा रखते हो , प्रेम से भरे कुछ बातें उन बच्चो के लिए जो आप पर आश्रित है और आदर से गुथे कुछ बोल उनके लिए जिन्होंने आपको इस लायक बनाया | यदि आप अपने आस पास के लोगो को मानसिक आहार देंगे तो ऐसा नहीं है के आपको कुछ भी ना मिलेगा आपके कहे अपने शब्द आपको भी तृप्त करेंगे |
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