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कुछ दिक्कत हो तो याद कर लेना तुम्हारे पीछे स्वयं मैं हूँ .......

                                                कल्पना कीजिये कि आपको कैसा लगेगा अगर आपके पीछे आपके शहर का कमिश्नर हो ,आपकी हर तरह से सहायता के लिए ? अच्छा लगेगा ,गर्व महसूस होगा या डर लगेगा , दुःख होगा ,महसूस करके बताइये कैसा लगेगा  और अब मान लीजिये  अगर आपके पीछे आपकी सहायता करने के लिए देश के  राष्ट्रपति खड़े हो ? अब कैसा लगेगा ? कुछ ज्यादा ही हो गया ना !
चलिए कल्पना लोक से बाहर निकल कर हमारी दुनिया में कदम रखते है | आइये अब देखते है कि आध्यात्मिक रूप से हमारे पीछे कोई है भी या नहीं !
  हमारे पास और हमारे साथ क्या है और कौन है ? ......
Ø प्रकृति की स्वयं की शक्ति
Ø जो शक्तियां हमारे अन्दर  ,हमारे  चक्रों में समाई है उसका वृहत (बड़ा ) रूप जो की ब्रह्माण्ड में फैला है |
Ø देवी देवता की शक्ति ( हिन्दू  धर्मं में कहा गया है कि हमारे ३३ करोड़ देवी देवता है वास्तव में ३३ करोड़ तरह की तीव्र ऊर्जाएं है जो हमारा ध्यान रखने के लियें है आप  यकीन नही करेंगे पर हमारे ऋषि मुनियों ने ऊर्जा विज्ञान पर बहुत काम किया है | )
Ø हमारे  साथ रहने वाली दिव्य आत्माएं
Ø हमारी  सहायता करने वाली वह आत्माएं जो सूक्ष्म रूप (astral body ) से  साथ रहती है |

Ø हमारी  सहायता करने वाली आत्माएं जो , सहायता के लिए जीवन धारण करती है |
Ø हमारी  शक्तियां जोकि आपकी स्वयं की आत्मा में समाहित है |
                      मतलब हर रूप में , हर पल में ईश्वर साथ है | हमारे पीछे है , अब बताइये  “अब कैसा लग रहा है ?”
कुछ इस तरह से समझे कि अगर हम किसी समस्या को अपना  दुश्मन माने , और उससे मुकाबला करना चाहे  तो हमारी  सहायता के लिए पूरी दैवीय आर्मी रहती है | अब जरा ! हम  समस्या की तरफ देखें तो क्या हमारे  सामने वो  समस्या वाकई में बड़ी है ? हम  , जिसके साथ पूरी दैवीय आर्मी हो , बस ये तब तक हमारी  सहायता नहीं करती जब तक हम  इनकी मदद ना मांगे और   हमें  याद नही रहता की हम  अकेले नही हैं  |
                             यह कुछ इस तरह है कि  प्रभु ने हमे वो शरारती बच्चे सरीखा बनाया है , जिससे उसने कह रखा है , कि जाओ खेलो तब तक खेलो जब तक जी तुम्हारा भर ना जाएँ  फिर आकर मुझमे समा जाना | फिर लौट कर अपने घर आ जाना  | कोई दिक्कत हुई तो मैं  हूँ सम्हालने के लिए | पर जब तक तुम खेलोगे मैं तुम्हारा खेल नहीं  खराब  करूँगा पर हाँ जब तुम थकने लगना तो बता देना मैं हर रूप से तुम्हारे  साथ हूँ   |
         और हमारे साथ दिक्कत पता है , क्या है ? हम बताना ही भूल जाते है या फिर खेलने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि लौटना ही भूल जाते है | जब हम थक जाते है तो खुद को अकेला पाते है आखिर याद जो नहीं रहता , घर लौटने का रास्ता | पर भगवान् कभी नही भूलते ठीक वैसे ही जैसे बच्चे खेलते समय एक बार को अपने माँ बाप को भूल जाएँ या घर लौटना भूल जाएँ  पर माँ बाप कभी नही भूलते वो पूरी जानकारी में रखते है , बच्चा कंहा है ? कितनी दूर गया है ? कब तक लौटेगा | यंहा बात मजेदार ये हो जाती है कि ईश्वर ये नही सोचते , हम कितनी दूर गये होंगे क्योकि हम हमेशा ही उनकी पहुँच में रहते है | कभी सोचा है , ज्यादातर माँ बाप को ही ईश्वर की  संज्ञा क्यों दी गयी और भी तो रिश्ते है दुनियां में ,इसीलिये ताकि हमे याद आये की आधार हमारा कंहा हैं | ये ही एक ऐसा रिश्ता या रोल है जिसमे हम आते ही आते है |
किसी खुदा के बन्दे  ने इसीलिए ऐसा कहा है  
“ उस खुदा के हम शहज़ादे हैं  | “
तो मुस्कुराना सीखिये इस एहसास को  जीना सीखिए कि वो हर पल हमारे साथ है | उसे फर्क नहीं पड़ता की हमारे संस्कार कैसे है ? उसे इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता कि हमने कितने पुण्य कमाँएं है या कितने पाप बटोरे है | क्योंकी वह जानता है की हम खेल रहे है , वह जानता है कि संस्कारों की , पुण्य और पापो की जो धुल हम पर  लगी है , जब हम घर के  अन्दर आयेंगे तो साफ़ हो कर आयेंगे और अगर हम साफ़ नहीं हुए तो प्रकृति हमें नहला धुला कर साफ़ कर देगी | आख़िर माँ शब्द प्रकृति के लिए ही तो बना था और माँ तो ख़याल रखेगी ही | भले हम ख़याल रखे ना रखें पर वो तो रखेगी ही | कभी गुस्सा करेगी तो कभी मनायेगी कभी डाटेंगी तो कभी समझाएगी |
प्रकृति की स्वयं की शक्ति और हमारे अन्दर व्याप्त शक्तियों में अगर अंतर है तो इस बात का कि अगर हमारी शक्तियों को आप पानी की एक बूँद समझे तो वो ऊर्जा का बड़ा भाग प्रकृति की शक्तियों में एक नदी की तरह है और प्रकृति की स्वयं की शक्तियां एक समुद्र की तरह | हमारा पूरा जीवन हमारे अन्दर समाहित शक्तियों के कुछ हिस्से  को जगाने में बीत जाता है वो भी तब जब हमे याद आ जाएँ की हमे उन्हें जगाना है | अगर ये भी नहीं याद आता तो हम जन्म पे जन्म लेते रहते है | बार बार एक ही जैसी समस्या से जूझते रहते है | कई जीवन को छोडिये बल्कि एक ही समस्या से एक ही जीवन में दो चार होते रहते है | अगर आपको दिव्य शक्तियों की सहायता चाहिए , यदि आपको उनसे संपर्क करना है | यदि आपको उस ऊर्जा को , उस परमात्मा को अनुभव करना है तो सबसे पहले इस एहसास की जीयें कि वो हमारे साथ है ये एहसास  ही कई तरह की कुंठा को दूर हटा देगा ये एहसास ही आपको उर्जा से भरता जाएगा | वास्तविकता में भावनाएं या अनुभव आपके मस्तिष्क से जुडी हुई  है , दैवीय शक्तियां भी आपके आज्ञा चक्र और खासतौर से सहस्त्रसार चक्र से सीधे संपर्क करती है | इस एहसास को जीना ,दैवीय शक्तियों को यह बताना है की हमें याद है कि आप हो हमारे लिए | तब वो स्वयं को आपके सामने आपके उर्जा के अनुसार प्रकट करने लगती है |




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