आज मैं आप सभी के समक्ष ऐसी बातें रखना चाहती हूँ, जो बेहद ही संवेदनशील है, जिन पर रखे गए विचार शायद कुछ लोगों को पसंद ना आये। पर मैं अपनी बात इस विषय पर किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति हेतु अपने विचार रख रही हूँ। जिसे आप सभी को समझना और उसके भीतर छिपे विचार की गम्भीरता पर सार्थक कदम सही समय पर उठाना बेहद जरूरी है।
हर माता - पिता के लिए उसकी संतान अमूल्य वरदान होती है , जिसके जीवन को वह अपने हाथों से सजाते व पूर्ण जिम्मेदारी के साथ उनका ख्याल रखते हैं। एक पल भी अपने आप से जुड़ा नहीं होने देते हैं। अपने संतान की छोटी से छोटी जरूरत को पूरा करना अपना उत्तरदायित्व समझते हैं। और उनको बड़ी से बड़ी फरमाईश को पूरा करने में जी जान लगा देते हैं। संतान के आँखों में एक आँसू का कतरा भी आये ऐसा उन्हें गवारा नहीं होता। यहाँ मैं आप सभी से पूछना चाहती हूँ , क्या हम ऐसा व्यवहार करके उनके साथ धोखा नहीं कर रहे जिस संतान का हम पूर्ण रूप से ख्याल रखते हैं। पर क्या हमने इस बात को कभी सोचा कि जिस दिन हम अपनी संतान को छोड़ कर दुनियाँ से रुखसत होंगे उस दिन क्या वही संतान अपना जीवन जीने में समर्थ हो सकेगी , अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा सकेगी ? जिस संतान को हम दुःखों की धूप से बचाकर रखते है, वह क्या हमारे ना रहने पर दुखों और मुश्किलों की धूप से ठण्डी छाँव की तलाश करने में समर्थ हो पायेगी ? कभी नहीं।
हम अपने स्वार्थ और प्रेम में इतने अंधे हो जाते हैं कि अपने बच्चे को जीवन की वास्तविकता से परिचित कराना ही भूल जाते हैं। एक बार सोचिये कि क्या हमारा उत्तरदायित्व नहीं बनता कि हम अपने बच्चे के अस्तित्व की तलाश करने में उनकी मदद करें ? उनको खुद जीवन जीने लायक बनाये। उनको उस काबिल बनने का अवसर प्रदान करें कि वह खुद समर्थ हो सके ताकि जीवन के हर मोड़ पर समझदारी के साथ अपना निर्णय लेने में समर्थ हो सके।
हर माता -पिता को इस बात का विशेष ख्याल रखना चाहिए कि किसी चीज की अधिकता हमारे लिए विष के सामान होती है चाहे वह प्रेम ही क्यों ना हो।क्योकि जल जब सीमा में होता है, तो हमें जीवन देता है, हमारी प्यास बुझाता है, हमारी जीवन जरूरते पूरी करता है। पर वही जल जब अपनी सीमा को लाँघता हुआ, अपना विकराल रूप धारण करता है, तो विनाश का कारण भी बन जाता है। यहाँ मैं बस यही आप सभी से कहना चाहती हूँ कि अपने बच्चे से प्रेम करे पर उनको मजबूत बनने का अवसर भी उन्हें प्रदान करें। उन्हें अपने अस्तित्व की तलाश स्वयं करने दें ताकि वह अपने पैर पर खड़े हो सके- एक सशक्त वृक्ष की तरह, जिसे आंधी तूफान बारिश भिगो तो सके, पर उनके जड़ो को आहत ना कर पाए। अपने बच्चे को प्रेम की छाँव के साथ जिम्मेदारियों की धूप का अहसास करना भी माता - पिता की ही जिम्मे दारी होती है।
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