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छाँव की आस


हम सभी अपने जीवन में बहुत ज्यादा व्यस्त हैं।  हमारे पास जरा सा भी समय नहीं है कि हम अपने बारे में सोचें, अपनी खुशी को जिए , और जब जीवन के आखिरी समय  में  इस भाग-दौड़ में ठहराव आता है तो हमें उसे जीने की, शरीर में  ना तो शक्ति होती है और ना ही सामर्थ्य। अब ऐसे ठहराव का क्या अर्थ है ?  अगर जीवन में  यही ठहराव, जीवन के बीच में आ जाये तो ? आइये, मैं आज आपको एक ऐसी महिला से मिलवाती हूँ।

रिया एक सामान्य घर की खुले विचार वाली पढ़ी लिखी महिला थी। उसकी शादी को तीन वर्ष हो गए थे। घर में सास -ससुर, पति और 2 वर्ष के बेटे सहित उसका  खुशियों भरा संसार था। पर ना जाने ईश्वर को क्या मंजूर था ? एक  वक्त की आंधी ने रिया के खुशियों के घरौंदे को बिखेर कर रख दिया। जब उसे यह पता चला कि एक्सीडेंट में उसके पति की मौत हो गई तो परिवार की जिम्मेदारी अब रिया के कंधे पर आ गई थी। उसने अपने पति के ऑफिस में जॉब के लिए अप्लाई किया। शिक्षित होने की वजह से रिया को जॉब मिल गई। कुछ ही दिनों में रिया ने अपने जिम्मेदारियों को अच्छे से संभाल लिया। 

रिया एक दिन  अपने ऑफिस में  बैठी थी कि एक लड़का ऑफिस में आया और रिया से मुस्कुराते हुए पूछा, "बॉस का केबिन कहाँ  है ?" रिया ने उसे बता दिया। फिर आये दिन उस लड़के का ऑफिस में आना -जाना लगा रहता था। एक दिन जब वह घर से निकल रही थी कि रिया ने देखा की वह लड़का सामने की दुकान पर गोल -गप्पा खा  रहा था। और रिया को देखते ही वह उसे भी गोल -गप्पे खाने की जिद्द करने लगा। रिया ने जैसे ही ना कहने के लिए अपना मुँह खोला , उसने रिया को एक गोल -गप्पा खिला दिया। और उस लड़के के ऐसे व्यवहार से रिया के ना चाहते हुए भी  अचानक होठों पर मुस्कराहट आ गई। 

आज रिया को उस लड़के का नाम पता चला।  उसका नाम पवन था। रिया की पवन से कुछ ही दिनों में अच्छी दोस्ती हो गई। दोनों हम उम्र थे। पवन रिया के जीवन के तपती धूप में ठंडी छाव बन कर आया था। जिसके साथ वह थोड़े समय के लिए अपना सारा गम भूल जाया करती थी। धीरे -धीरे पवन रिया के जीवन में खुशियों के रंग भरने लगा था। एक दिन पवन ने रिया को अपना जीवन साथी बनाने की बात कह दी। रिया ने अपने अतीत को पवन के सामने खोल कर रख दिया। पर पवन का इरादा नहीं बदला। रिया खुश हो या दुखी, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। रिया ने अपने सास -ससुर से अपने और पवन के बारे में बताया। सास ने रिया को समझाया," बेटी ! ये सब ठीक नहीं है। जग में तुम्हारी बदनामी हो जाएगी ,सभी मजाक बनायेगे।" पर रिया के बच्चे और उसके भविष्य को देखते हुए उन लोगो ने रिश्ते के लिए हाँ  कर दिया। पवन को रिया ने  अपने सास -ससुर से मिलवाया। पवन अपने और रिया के रिश्ते से बहुत खुश था। पवन के माता -पिता ने भी  रिया को बहुत पसंद किया , पर जैसे ही रिया के विधवा और  बच्चे की माँ होने का पता चला तो उन लोगो ने शादी से फ़ौरन मना कर दिया। 

अगले दिन , रिया के ऑफिस जाने पर पता चला कि पवन ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया है। रिया  इस घटना ने बहुत ज्यादा दुखी हुई ,क्योकि एक बार बिखर  जाने के बाद उसने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला था। अब रिया के आखों में आंसू भी नहीं बचे थे, जिसे वो बहा कर गम को भुला पाती। उसे अब ये समझ आ गया था कि 'क्या उसे दुबारा जीवन जीने का कोई हक़ नहीं है ?' ये सोचते हुए वह  घर जा ही रही थी कि तभी सामने से पवन आता दिखाई दिया।  उसके हाथ में मीठे का डिब्बा था रिया को देते हुए पवन ने अपनी शादी अगले सप्ताह होने की बात बताई और  रिया से माफ़ी माँगी। रिया ने पवन से कहा," मैं जानती थी कि मुझे दुबारा सपने देखने का अधिकार नहीं है. टूट तो मैं उसी दिन गई थी, जब मेरे पति मुझे अकेला छोड़ कर चले गए थे , बड़ी मुश्किलों से मैंने खुद को संभाला था. पर आज पवन  तुमने मुझे फिर से बिखेर दिया।" ये कहते हुए रिया अपनी मंजिल की तरफ बढ़ गई।

कैसी मानसिकता है समाज की ! जब एक पुरुष अपने पत्नी को खो  देता है, तो सभी सगे सम्बन्धी उसके भविष्य को  उज्जवल बनाने  लिए जुट जाते हैं। पर  एक स्त्री के  पति के देहांत हो जाने पर इसी समाज के लोगो की सोच इतनी रूढ़िवादी कैसे हो जाती है ? आखिर सोच में इतना अंतर क्यों  आ जाता है ? जीवन देने वाले दाता ने हमारे दिलों में एक जैसी भावना दी है, फिर हम एक ही  दृष्टि से न्याय क्यों नहीं कर पाते  हैं । हम अपने घर ,गली ,मुहल्ले व समाज तक को स्वच्छ देखना पसन्द करते हैं। पर हमारे हृदय का क्या ? जो इतने कुविचारों से भरा पड़ा है ,उसे कब निर्मल करेंगे ! 

   


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