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मोबाइल


झुके रहते है यूँ सर हर पल,
लगता है सबका ख़ुदा बदल गया है,

हाथ जोड़े है हर कोई शान से,
प्रार्थना का ये नया ज़रिया निकल गया है,

बातें अब होती कहाँ है आपस से जनाब,
कमरे में हर व्यक्ति चैटिंग से बहल गया है,

जुड़ गए दुनिया से कुछ क्षणों में,
अपनों से मिलने का समय बंट गया है

गिल्ली डंडा खेलना क्या जाने ये पीढ़ी,
बचपन अब सेल्फी स्टिक में जो अटक गया है,

कागज़ की कश्ती नहीं तैरती अब बरसात में,
मोबाइल पर उंगलियां दौड़ाने में जो मन भटक गया है |


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