मैं और करता भी क्या, वफ़ा के सिवा! मुझको मिलता भी क्या, दगा के सिवा! बस्तियाँ जल गई होंगी, बचा क्या धुआँ के सिवा! अब गुनाह कौन गिने, मिले क्या बद्दुआ के सिवा! कहाँ पनाह मिले, बुज़ुर्ग की दुआ के सिवा! दिल के लुटने का सबब, और क्या निगाह के सिवा! ज़ूंनून-ए-तलाश-ए-खुदा, कुछ नही इश्क-ए-बेपनाह के सिवा!