ना विषय बदलेंगे ,ना सरोकार बदलेंगे। यही जो चूमते हैं दर,यही 'सरकार' बदलेंगें ।। वही कुर्सियां होगी , होंगी वही ज़िल्लतें सारी/ नीति वही होगी पर देखना ,कैसे ये नीयत का आधार बदलेंगे।। प्रचंड बहुमत का नशा जब ,छाएगा इनके जेहन में। यही देखना कैसे चुपके से ,सभ्य व्यवहार बदलेंगे।। समन्दर में दूर जब इनकी,सत्ता की नाव पंहुचेगी । बैठे है जो इसमें विश्वासपात्र ,यही पतवार बदलेंगे।। बदलना इतिहास का इतना
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