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मेरे आशियाने की...!!

मेरे आशियाने की ईंटें ,क्यूँ उखड़ रही हैं, जतन से सम्भाला , फिर भी बिखर रही हैं। वक्त है बेरहम या ,मेरी किस्मत का खेल है है बहारे गुलशन ,क्यारी नही निखर रही है। किस पर  करें यकीं ,किस पर हमको नाज़ हो फ़ितरत जो थी जिनकी ,हरदम उधर रही है। मतलब परस्त दुनिया में ,रिश्तों का मोल क्या, फिरी हुई नजर  कभी, किसी की  इधर रही है। *कमलेश*बंट गयी जिंदगी ,दुनिया के आज़ाब में ' अब तो ये न इधर की  ,न उधर की रही है।।

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