हॉल में मैं दिल्ली किताब मेला के एक दौरे पर गया. बहुत बढ़िया लगा यह देख कर की किताब मेले में अभी भी इतने लोग आते हैं. लेकिन कहीं एक कोने में, एक छोटे से स्टाल पर e-reader के प्रचार को देख कर फिर वह द्वन्द जहन में शुरू हुआ की क्या किताबें ख़त्म हो जाएँगी? यह तो वक़्त ही बताएगा पर किताबों से मोहब्बत करने वाले गुलज़ार साहेब लिखेते हैं
`कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
कभी गोदी में लेते थे
कभी घुटनों को अपने रेहल की सूरत बनाकर
नीम सजदे में पढ़ा करते थे, छुते थे जबीं से
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा इंशाल्लाह
मगर वे जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल और
महकते हुए रुक्के
किताबें मांगने, गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उनका क्या होगा
वो शायद नहीं होंगे`