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चाणक्य नीति - 1

चाणक्य नीति 


मनसा चिन्तितं॑ कार्यं वाचा नैव प्रकाशयेत्‌।
मन्त्रेण रक्षयेद्‌ गूढं कार्ये चाऽपि नियोजयेत्‌।।

मन से सोचे हुए कार्य को वाणी द्वारा प्रकट नहीं करना चाहिए, परंतु मननपूर्वक भली प्रकार सोचते हुए र हर उसकी रक्षा करनी गहिए और चुप रहते हुए उस सोची हुई बात को में बदलना चाहिए।



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चाणक्य नीति - 1

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