मैं, हर कविता को, एक प्रेमी की तरह,
अपने साथ मुलाक़ात करने ले जाता हूँ,
अपने शयनकक्ष में, अपने बिस्तर पर...
बड़ी आतुरता सुकून से रसपान करता हूँ,
व्याकुल अतिलोलुप की भाँती तेज़ी से,
उसके चेहरे को छू हथेलियों से थामता हूँ...
शब्दों की दरारों को, गले लगाता हूँ,
भावनाओं की हर स्नेही और उष्ण सांस,
'निर्जन', के कानों को उग्र सुनाई देती है...
बदन की ख़ुशबू जैसे, मंद बहते पन्ने,
गुनाहगार, स्वादिष्ट हस्तलिपि की,
मिठाई को चाटते रसीले पापी होंठ...
कोमल जीवन के, स्वाद से भरपूर,
जो कभी किसी को, पर्याप्त नहीं मिलता,
बेहद सरल, स्पष्ट, शालीनतापूर्वक वर्णित...
अपने साथ मुलाक़ात करने ले जाता हूँ,
अपने शयनकक्ष में, अपने बिस्तर पर...
बड़ी आतुरता सुकून से रसपान करता हूँ,
व्याकुल अतिलोलुप की भाँती तेज़ी से,
उसके चेहरे को छू हथेलियों से थामता हूँ...
शब्दों की दरारों को, गले लगाता हूँ,
भावनाओं की हर स्नेही और उष्ण सांस,
'निर्जन', के कानों को उग्र सुनाई देती है...
बदन की ख़ुशबू जैसे, मंद बहते पन्ने,
गुनाहगार, स्वादिष्ट हस्तलिपि की,
मिठाई को चाटते रसीले पापी होंठ...
कोमल जीवन के, स्वाद से भरपूर,
जो कभी किसी को, पर्याप्त नहीं मिलता,
बेहद सरल, स्पष्ट, शालीनतापूर्वक वर्णित...
#तुषाररस्तोगी #निर्जन #उत्कंठा #हिंदी #कविता #ज़िन्दगी
Related Articles
This post first appeared on तमाशा-à¤-जिंदगी, please read the originial post: here