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संपूर्ण रामायण भाग 12| Ramayan Chapter 12 – लंका विजय

Ramayan Chapter 12 जय श्री राम दोस्तों आज का यह अध्याय सबसे अहम् है, इस अध्याय में श्री राम की लंका पर चढाई, लक्षमण का मूर्छित होना, हनुमान जी का संजीविनी ले कर आना, कुंभकरण वध, मेघनाथ वध और अंत में रावण वध को पढ़ेंगे, और जानेंगे की आखिर श्री राम ने कैसे अपने शौर्य से बुराई के मुँह पर अच्छाई का विजय तिलक लगाया और अपनी प्राणो से प्यारी पत्नी सीता को वापस प्राप्त किया, यह इस पूरी Ramayan की कथा का सबसे लम्बा अध्याय भी है, तो चलिए शुरू करते हैं.

Ramayan Chapter 12

Table of Contents

युद्ध हेतु वानर सेना का प्रस्थान – संपूर्ण रामायण

हनुमान के लंका से वापस लौटने पर राम ने युद्ध के विषय में हनुमान से परामर्श किया। राम ने हनुमान से कहा—“सीता की खोज करके आपने मुझ पर और रघुकुल पर जो कृपा की है, उसे मैं कभी नहीं भुला सकता। मैं सदा आपका आभारी रहूंगा। मैं यह ऋण कभी न उतार पाऊँगा।” इसके बाद राम ने समुद्र पार करने की समस्या पर विचार-विमर्श किया और कहा कि हम रावण जैसे महाबलशाली को किस प्रकार पराजित कर पाएँगे।। सुग्रीव ने राम को धैर्य बँधाते हुए कहा कि विपत्ति के समय साहस के साथ काम लेना चाहिए। परिश्रमी मनुष्यों के लिए कोई-न-कोई मार्ग अवश्य ही निकल आता है।

युद्ध की तैयारियों की जाने लगी। वानर सेना सहस्रों की संख्या में एकत्रित हो गई। राम ने अपने विचार बताये – “आज का दिन बहुत शुभ है। आज उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र है। इसी नक्षत्र में सीता का जन्म हुआ था। युद्ध के लिए आज ही सेना प्रस्थान करेगी।” सुग्रीव की आज्ञा पाते ही सेनापति नल ने वानर सेना को प्रस्थान का आदेश दिया। राम, लक्ष्मण और सुग्रीव की जय-जयकार करते हुए वानर सेना आगे बढ़ी तथा महेंद्र पर्वत पर जाकर रुक गई।

विभीषण का लंका त्यागना – संपूर्ण रामायण

राम की सेना के महेंद्र पर्वत पर पहुँचने की सूचना पाकर लंकावासी अत्यधिक भयभीत हो उठे। हनुमान द्वारा लंका को जला देने के कारण उनका मन पहले से ही भय से व्याप्त था। वे चिन्तित थे कि जिनका दूत इतना 1 वीर और बलशाली है, तो वे स्वयं कितने बलशाली होंगे। लंकावासियों को चिंतित देखकर विभीषण ने रावण को समझाने की कोशिश की- “भ्राता रावण! हमें राम से शत्रुता नहीं करनी चाहिए। इसी में राक्षस जाति का भला है। आप सीता को लौटा दें। वानरों की विशाल सेना युद्ध के लिए समुद्र के उत्तरी किनारे पर डेरा डाले खड़ी है।” विभीषण के मुँह से सीता को लौटाने की बात सुनते ही रावण अत्यधिक क्रोधित हो उठा उसने विभीषण को फटकारा और लंका से चले जाने के लिए कहा। रावण ने सभा भवन में पुत्रों, मंत्रियों और सेनापतियों को बुलाकर उनसे विचार प्रकट करने को कहा किन्तु रावण का विरोध करने का साहस कौन करता? सबने उसकी बात को ठीक बताया। विभीषण ने रावण को एक बार फिर समझाया कि शत्रु की शक्ति को कम नहीं समझना चाहिए। सबका हित इसी में है कि सीता को राम के पास भेज दें। विभीषण की सलाह सुनकर रावण का क्रोध फिर से भड़क उठा। उसने विभीषण पर राम का शुभचिंतक होने का आरोप लगाया और उसे फटकारते हुए कहा कि यदि तुम राम के हितचिंतक हो, तो उसके पास चले जाओ।

अपमान से पीड़ित होकर विभीषण ने लंका को त्यागने का निश्चय कर लिया किन्तु जाते-जाते भी उसने रावण को सावधान करते हुए कहा- “जब व्यक्ति के सिर पर मृत्यु मँडराने लगती है तब उसे किसी की सलाह अच्छी नहीं लगती। मैं जा रहा हूँ। लंका के बुरे दिन आ गए हैं।” यह कहकर विभीषण अपने चार मंत्रियों के साथ लंका त्यागकर आकाशमार्ग से राम से मिलने के लिए चल दिया।

विभीषण को लंका- नरेश बनाने का आश्वासन

विभीषण अपने आकाश यान से वानर सेना के निकट उतरा। उसने दूर से ही अपना और मंत्रियों का परिचय दिया तथा लंका छोड़ने का कारण भी बताया। सुग्रीव ने राम के पास जाकर विभीषण के मंत्रियों सहित शरण माँगने के विषय में बताया। साथ ही शंका प्रकट की कि ये पाँचों रावण के गुप्तचर हो सकते हैं जो शायद हमारा भेद लेने आए हैं। जो व्यक्ति अपने भाई का नहीं हो सका, वह हमारा कैसे हो सकता है?

राम ने सुग्रीव को समझाया – “इस समय इन्हें अपनी ओर मिला लेना ही उचित होगा। वे हमारी शरण में आए हैं। शरणागत की रक्षा करना हमारा धर्म है। यदि रावण भी आकर शरण माँगेगा तो हम उसे भी शरण में ले लेंगे। इसलिए विभीषण और मंत्रियों को सम्मानपूर्वक हमारे पास ले आओ।” हनुमान जाकर विभीषण को ले आए। विभीषण ने आते ही राम के चरणों में गिरकर शरण माँगी। राम ने विभीषण को उठाकर अपने पास बिठा लिया।

राम ने विभीषण से लंका के विषय में पूछा। विभीषण ने लंका और रावण की शक्ति का परिचय देते हुए कहा- “रावण की वीरता के विषय में सभी जानते हैं कि वह महान योद्धा है। उसके पराक्रम से देवता तक कॉप जाते हैं। उसने यमराज तक को बंदी बना लिया था।” इसके पश्चात् विभीषण ने लंका के अन्य योद्धाओं के बल और पराक्रम के विषय में जानकारी देते हुए बताया- “कुंभकर्ण हमारा मंझला भाई है। उसका शरीर अत्यन्त विशाल एवं चट्टान-सा कठोर है। रावण का बड़ा पुत्र मेघनाद बुद्धिमान और महाबलशाली है। इंद्र पर विजय पा लेने के कारण इसे इंद्रजीत भी कहा जाता है। उसकी वीरता से देवता डरकर छिप जाते हैं। रावण का सेनापति प्रहस्त है जो युद्ध कला में अत्यन्त निपुण है। इनके अतिरिक्त लंका के अन्य वीर योद्धाओं में अतिकाय, अंकपन, महोदर आदि के नाम प्रमुख हैं। रावण न केवल बहुत बलशाली है, बल्कि वह महान तपस्वी भी है। वह भगवान शिव का परम भक्त है। उसे शिव और ब्रह्मा से भी अनेक वरदान मिले हुए हैं।”

राम ने विभीषण को आश्वासन दिया कि इन सबको पराजित करके मैं तुम्हें लंका- नरेश बनाऊँगा । विभीषण ने भी राम को पूर्ण सहयोग देने का वचन दिया। तब राम ने लक्ष्मण से समुद्र का जल मँगाकर विभीषण का राजतिलक किया तथा उसे लंका का राजा घोषित कर दिया।

समुद्र पर पुल निर्माण – संपूर्ण रामायण

लंका तक पहुँचने के मार्ग में समुद्र पार करना एक कठिन समस्या थी। राम तीन दिन तक समुद्र के किनारे बैठकर उससे मार्ग देने की प्रार्थना करते रहे। किन्तु समुद्र ने मार्ग न दिया। तब राम ने क्रोध में धनुष पर बाण चढ़ाकर उसे सुखा देने की धमकी दी। राम का क्रोधित रूप देखकर समुद्र भय से काँपते हुए मनुष्य रूप में प्रकट- हुआ और राम से क्षमा माँगी। समुद्र ने राम से कहा कि सुग्रीव के सेनापति नल ने अपने पिता से समुद्र पर पुल बनाने की कला सीखी हुई है। आप उसे पुल बनाने के लिए कहें। आप धनुष पर चढ़ाए बाण को उत्तर दिशा की ओर छोड़ दें। इससे वहाँ बसे अधर्मियों और दुष्टों का अंत हो जाएगा।

समुद्र की सलाह मानकर राम ने बाण को समुद्र की उत्तर दिशा की ओर छोड़ा। इससे उस क्षेत्र के समस्त दुष्टजन मारे गए और वह क्षेत्र रेतीला हो गया। इसके बाद राम ने नल को पुल बनाने का आदेश दिया। नल ने वानरों को समुद्र में राम का नाम लिखकर पत्थर और चट्टानें फेंकने के लिए कहा। इस प्रकार पाँच दिनों में ही पुल बन गया और वानर सेना पुल द्वारा समुद्र के पार पहुँच गई। वहाँ सेना ने सुबेल पर्वत पर डेरा डाल दिया।

शुक और सारण (गुप्तचर) – संपूर्ण रामायण

समुद्र पर पुल बनने की सूचना पाकर रावण आश्चर्यचकित रह गया। उसने इसकी कल्पना भी नहीं की थी। राम ने असंभव कार्य को संभव कर दिया था, इससे रावण के मन में राम के प्रति भय समा गया। उसने राम और उसकी सैन्य शक्ति की जानकारी पाने के लिए अपने मंत्रियों शुक और सारण को बुलाया। वे दोनों गुप्तचर बहुत ही चतुर और मायावी थे। रावण ने उन्हें राम की शक्ति का पता लगाने के लिये भेजा । शुक और सारण वानर का रुप बदलकर राम की छावनी में घुस गए। वे दोनों अलग-अलग स्थानों पर जाकर सूचनाएँ एकत्र करने लगे किन्तु विभीषण उन्हें पहचान गया और पकड़कर राम के पास ले गया। राम के पूछने पर दोनों ने अपने असली नाम और आने का कारण बताया। राम ने मुस्कराते हुए कहा कि यदि अभी कोई और भेद लेना बचा हो तो वह भी ले लो तथा वापस जाकर रावण से कहना कि हम कल लंका पर आक्रमण कर देंगे। उसने जिस शक्ति के आधार पर सीता का अपहरण किया था, अपनी उस शक्ति को वह कल दिखाए। इतना कहकर राम ने उन दोनों को छोड़ दिया।

शुक और सारण राम की सहृदयता और मधुर स्वभाव से प्रभावित होकर रावण के पास पहुँचे। उन्होंने रावण के सामने भी राम की प्रशंसा की। रावण उन्हें महल के ऊपरी भाग में लेकर गया तथा उन्हें राम की सेना के वीरों का परिचय कराने का आदेश दिया। सारण ने नल को दिखाते हुए कहा कि वह सुग्रीव का सेनापति नल है जो कि बार-बार गर्जना कर रहा है। जो वीर जम्हाई ले रहा है, वह बालि का पुत्र अंगद है। रीछों के नेता जामवंत हैं जो बीच में खड़े हैं। वह जो निडर होकर चल रहा है, उससे तो आप परिचित ही हैं। वह लंका को जलाने वाला हनुमान है। हनुमान के साथ धनुष बाण धारण किए हुए राम हैं। राम के दाईं ओर उनका छोटा भाई लक्ष्मण है। लक्ष्मण के बाईं ओर आपके भाई विभीषण बैठे हैं। राम ने विभीषण को लंका का राजा बना दिया है। इनके साथ सुग्रीव बैठा हुआ है।

सारण ने रावण को समझाया, “हे लंकेश! अकेले राम ही लंका पर विजय पाने के लिए काफी है। उनके साथ के योद्धाओं को पराजित करना कठिन है। अभी भी समय है, आप सीता को लौटाकर राम से मित्रता कर लें।” शुक ने भी यही सलाह दी। शुक और सारण की बातें सुनकर रावण ने उन्हें फटकार कर चले जाने के लिए कहा। जब रावण महल में गया उसकी पत्नी मंदोदरी ने भी सीता को लौटाकर युद्ध न करने की सलाह दी किन्तु उसने सीता को न लौटाने की जिद नहीं छोड़ी और सेना को युद्ध के लिए तैयार होने का आदेश दिया।

शांतिदूत (अंगद) – संपूर्ण रामायण

राम ने रणनीति के अनुसार सेना को चार भागों में बाँटा और सवेरा होते ही लंका को चारों ओर से घेर लेने का आदेश दिया। लंका के चारों प्रवेश द्वारों पर आक्रमण करने के लिए दल तैनात किये गए। राम स्वयं सुबेल पर्वत पर चढ़कर लंका की स्थिति को समझने लगे। वानर सेना द्वारा लंका को घेर लिया गया।

राम ने युद्ध को टालने के लिए समझौते की कोशिश करने का निर्णय लिया। उन्होंने अंगद से लंका जाकर रावण को समझाने के लिए कहा कि वह सीता को लौटा दे, अन्यथा अपने संपूर्ण वंश के नाश के लिए तैयार हो जाए। राम की आज्ञा पाकर अंगद ने लंका में प्रवेश किया। रावण की सभा में पहुँचकर उसने अपना परिचय दिया—“मैं आपके मित्र बालि का पुत्र हूँ। इसलिए आपको युद्ध से बचने की सलाह देने आया हूँ। आप माता सीता को लौटा दें, नहीं तो लंका में एक भी व्यक्ति जीवित न बचेगा।”

रावण ने अंगद को अपनी ओर मिलाने का प्रयास करते हुए कहा कि राम ने तुम्हारे पिता का वध कर दिया था और तुम अपने पिता के हत्यारे के पक्ष में चले गए। तुम्हें शर्म आनी चाहिए। तुम मेरे पक्ष में आ जाओ। तुम तो मेरे मित्र के पुत्र हो। मेरे पक्ष में आकर अपने पिता की हत्या का बदला ले लो।” अंगद पर रावण की बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह रावण को धमकाता रहा। रावण ने क्रोध में आकर अंगद को मार देने का आदेश दिया। रावण के सैनिक उसे पकड़ने आए तो उसने उन्हें मार दिया। वह कूदकर राज सभा से बाहर आ गया और आकाश मार्ग से लौट आया।

लंका पर आक्रमण – संपूर्ण रामायण

अंगद के शांति प्रयासों के असफल होने पर राम ने लंका पर आक्रमण का आदेश दे दिया। लंका के उत्तरी द्वार पर राम, लक्ष्मण, सुग्रीव, जामवंत और विभीषण ने आक्रमण कर दिया। रावण ने बदले में अपनी चतुरंगिनी सेना को आक्रमण का आदेश दिया। राक्षस वानर सेना पर तलवारों और शूलों से आक्रमण कर रहे थे तथा वानर उन पर पत्थर और वृक्ष उखाड़कर फेंक रहे थे। दोनों पक्षों में घमासान युद्ध होने लगा। हर तरफ हाथियों के चिंघाड़ने और घोड़ों के हिनहिनाने की आवाजें गूंजने लगीं। अनेक योद्धा युद्ध में मारे गए तथा कई घायल हो गए।

शाम होने पर मेघनाद ने पुनः युद्ध आरम्भ कर दिया। अंगद ने उसका सामना किया तथा उसके रथ को तोड़कर सारथी और घोड़ों को मार डाला। मेघनाद क्रुद्ध होकर अदृश्य हो गया और उसने वानर सेना पर बाणों की झड़ी लगा दी। इससे एक बड़ी संख्या में वानर मरने लगे। तब मेघनाद ने नाग-बाण छोड़ा जिससे राम और लक्ष्मण मूर्च्छित होकर गिर गए। उनके गिरते ही वानर सेना में हाहाकार मच गया। मेघनाद समझा कि राम और लक्ष्मण दोनों मृत्यु को प्राप्त हो गए। मेघनाद ने रावण को विजय की सूचना दी। यह सुनकर रावण ने मेघनाद को गले लगाया।

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