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संपूर्ण रामायण भाग 10| Ramayan Chapter 10 – बालि का वध

Ramayan Chapter 10: जय श्री राम भक्तों आज के इस अध्याय में हम जानेंगे की माता सीता के हरण के बाद कैसे उनकी हनुमानजी से होती है, और किस वजह से श्री राम को छिपकर बाली का वध करना पड़ता है? हम इस अध्याय में पढ़ेंगे।

Ramayan Chapter 10 – बालि का वध

Table of Contents

राम की सुग्रीव से मित्रता

वसंत ऋतु के कारण चारों ओर हरियाली छाई हुई थी। राम सीता को याद करते हुए लक्ष्मण के साथ ऋष्यमूक पर्वत की ओर चल दिए। इस पर्वत पर सुग्रीव अपने बड़े भाई बालि के भय के कारण रहता था। मतग ऋषि द्वारा दिये गये श्राप के कारण बालि वहाँ नहीं आता था। सुग्रीव ने जब पर्वत के ऊपर से दो युवकों को अपनी ओर आते देखा, जिन्होंने धनुष धारण किए हुए थे तो सुग्रीव को भय हुआ कि कहीं ये बालि के गुप्तचर तो नहीं हैं। उसने उन युवकों का परिचय पाने के लिए हनुमान जी को पर्वत से नीचे भेजा। हनुमान रूप बदलकर गये तथा

संस्कृत भाषा में उनका परिचय पूछा। हनुमान जी ने अपना परिचय भी दिया कि मैं किष्किंधा नरेश बालि के छोटे भाई सुग्रीव का सेवक हूँ। सुग्रीव ने ही मुझे आपके पास भेजा है। वह बहुत ही सज्जन, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ व्यक्ति हैं। हनुमान की विद्वतापूर्ण बातों से राम बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने अनुमान लगाया कि जब हनुमान इतने योग्य है, तो सुग्रीव तो और भी विद्वान और योग्य होंगे। लक्ष्मण ने हनुमान को राम का परिचय देते हुए कहा कि ये कोसल-नरेश दशरथ के बड़े पुत्र हैं, इनका नाम राम है, मैं इनका छोटा भाई लक्ष्मण हूँ। पिता की आज्ञा से हम दोनों भाई चौदह वर्षों के लिए वन में आए हैं। हमारे साथ श्रीराम की पत्नी सीता भी थी।

किसी राक्षस ने पंचवटी की पर्णकुटी से उनका अपहरण कर लिया है। हम उन्हें ढूंढते हुए इधर-उधर भटक रहे हैं। सीता की खोज में मदद हेतु कबंध ने हमें सुग्रीव से मिलने की सलाह दी थी इसीलिये हम यहाँ आए हैं। हनुमान ने सोचा कि राम और सुग्रीव में मित्रता होने से दोनों एक दूसरे की सहायता कर सकेंगे। अत: उन्होंने राम व लक्ष्मण को सुग्रीव से मिलाने का वादा किया और अपने असली रूप में आ गए। इसके बाद वे एक कंधे पर राम को और दूसरे कंधे पर लक्ष्मण को बिठाकर उन्हें ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव के पास ले गए। हनुमान ने दोनों को एक-दूसरे के कष्टों की जानकारी दी।

उसके बाद आग जलाकर उसके सामने राम और सुग्रीव की मित्रता कराई। राम ने कहा- “मैं अग्निदेवता के सामने प्रतिज्ञा करता हूँ कि आज से हम मित्र बन गए हैं। अब मैं तुम्हारे सुख-दुख को अपना सुख-दुख मानूँगा।” सुग्रीव ने भी राम-लक्ष्मण के प्रति यही प्रतिज्ञा की। सुग्रीव ने सीता को खोजने में पूरी सहायता देने का आश्वासन दिया। उसने राम को सीता द्वारा गिराए आभूषण भी दिखाए। राम उन आभूषणों को देखते ही पहचान गए। लक्ष्मण ने पैरों की पायजेबों को पहचान लिया। आभूषणों को देखने के बाद राम सीता के विषय में अधिक चिन्तित हो गए। सुग्रीव ने उन्हें दिलासा दी कि सीता अवश्य मिल जाएँगी। सच्चा मित्र वही है, जो मुसीबत में मित्र के काम आता है।

बालि का वध – Ramayan Chapter 10

राम ने सुग्रीव से उसके कष्टों के बारे में पूछा। सुग्रीव ने अपनी दुख भरी कथा सुनाते हुए कहा- “किष्किंधा नरेश बालि मेरा बड़ा भाई है। वह अत्यंत बलशाली है। उसने मुझे राज्य से निकालकर मेरी पत्नी को भी छीन लिया है।” राम ने कहा- “मैं उसे एक ही बाण से मार डालूंगा।” तब सुग्रीव ने कहा- “आप उसकी शक्ति का अनुमान नहीं लगा सकते। उसने दुंदुभी राक्षस तक को यूँ ही मार डाला था। बालि को केवल वही मार सकता है, जो सामने खड़े शाल के सात वृक्षों को एक ही बाण से गिरा देगा” यह सुनकर राम ने दिव्य बाण चलाकर उन वृक्षों को एक साथ काटकर गिरा दिया। यह देखकर सुग्रीव आश्चर्यचकित रह गया। राम की वीरता को देखकर वह उन के चरणों में गिर गया। राम ने सुग्रीव को उठाते हुए कहा कि जाकर बालि को युद्ध के लिए ललकारो। मैं पेड़ों के पीछे से बाण चलाकर उसे मार दूंगा। सुग्रीव उसी समय किष्किंधा गया और बालि को ललकारने लगा। बालि अत्यन्त क्रोधित होकर सुग्रीव पर टूट पड़ा। दोनों में मल्ल-युद्ध होने पर बालि ने सुग्रीव को बुरी तरह मारा। सुग्रीव किसी प्रकार प्राण बचाकर ऋष्यमूक पर्वत पर लौट आया। उसने क्रोधित स्वर में राम से कहा- “यदि आपको बालि को नहीं मारना था, तो मुझे पराजित करवाने के लिए क्यों भेजा था? यदि मैं किसी प्रकार प्राण बचाकर भाग न आता, तो बालि मुझे मार ही डालता।” राम के द्वारा हाथ फेरने पर सुग्रीव के शरीर की पीड़ाएँ जाती रहीं। राम उसे समझाने लगे- “आप दोनों भाइयों की शक्लें इतनी मिलती-जुलती हैं कि मुझे अंतर करना ही कठिन हो गया था। यदि भूलवश बाण आपको लग जाता तो अनर्थ हो जाता।” इसके बाद लक्ष्मण ने पहचान के लिए सुग्रीव के गले में नागपुष्पी की माला डाल दी। सुग्रीव फिर बालि के महल में पहुँचा जहाँ वह अपनी पत्नी तारा के पास बैठा था। सुग्रीव की ललकार सुनकर वह गुस्से से तिलमिलाकर उसे मारने के लिए जाने लगा। बालि की पत्नी तारा बहुत समझदार थी।

अत: उसने बालि से कहा कि सुग्रीव अभी-अभी तो मार खाकर गया है। फिर युद्ध के लिए ललकारने के पीछे कोई-न-कोई रहस्य अवश्य है। वह किसी अन्य योद्धा के बल पर लड़ने आया है। तारा ने यह भी बताया कि उसे अंगद से पता चला है कि अयोध्या के राजकुमार राम और लक्ष्मण इधर आए हुए हैं। राम धर्मनिष्ठ और अत्यन्त वीर योद्धा है। आप उनसे मित्रता कर सुग्रीव को युवराज बना दें या फिर सुग्रीव से लड़ने के लिए जाने से पहले आप अपने गुप्तचरों से राम और लक्ष्मण के बारे में पूरी जानकारी करा लें।

तारा के समझाने का बालि पर कोई प्रभाव नहीं हुआ और वह बोला- “यदि राम धर्म के मार्ग पर चलने वाले हैं तो मुझे क्यों मारेंगे? मैं सुग्रीव का वध नहीं करूंगा पर उसका अहंकार अवश्य चूर-चूर कर दूँगा।” कहकर बालि सुग्रीव से लड़ने चला गया। दोनों भाइयों में युद्ध होने पर सुग्रीव लगातार कमजोर पड़ता जा रहा था। उसके मुँह से खून बहने लगा। सुग्रीव की बुरी दशा देखकर राम ने पेड़ की आड़ से बालि पर बाण छोड़ा। बाण बालि की छाती में जा कर लगा और वह गिरकर छटपटाने लगा। बालि ने राम से पूछा- “आपने मुझ पर बाण क्यों चलाया ? हमारी शत्रुता भी नहीं थी। मैंने आपका अपमान भी नहीं किया था। आपके विरुद्ध कभी कोई कार्य भी नहीं किया था। आपने मुझे छलपूर्वक मारकर अधर्म और अनैतिक कार्य क्यों किया है? आपको अपनी शक्ति पर गर्व था, तो मुझे युद्ध की चुनौती देते कायर ही शत्रु पर छिपकर आक्रमण करते हैं। आप कायर हैं और छल- कपट से पूर्ण भी है। आपने सीता को लाने के लिए सुग्रीव से मित्रता की है। यदि मुझसे मित्रता की होती तो मैं एक केही दिन में सीता के साथ रावण और उसकी पत्नी मंदोदरी को आपके चरणों में ला देता।”

राम ने बालि की बात का उत्तर देते हुए कहा- “हे बालि ! धर्म और नीति की बातें तुम्हें शोभा नहीं देतीं। तुमने अपने छोटे भाई की पत्नी रुमा को अपनी पत्नी बना लिया। छोटे भाई की पत्नी पुत्री के समान होती है। मैंने सुग्रीव के साथ मित्रता निभाने के लिए तुम्हें मारा है।

मैंने तुम्हे वृक्ष की आड़ से इसलिए मारा है, क्योंकि तुम्हारा आचरण पशुओं के समान है और पशुओं का वध छिपकर ही किया जाता है।” राम की बातें सुनकर बालि लज्जित हुआ तथा सुग्रीव की पत्नी के हरण के लिए क्षमा माँगी। उसने राम से अपनी पत्नी तारा और पुत्र अंगद पर कृपा करने की प्रार्थना की। राम ने उसे वचन दिया। पति के घायल होने का समाचार सुनते ही तारा आई और पति से लिपटकर जोर-जोर से रोने लगी।

बालि ने उसे धैर्य रखने के लिए कहा तथा सुग्रीव को पास बुलाकर समझाया – “प्रिय सुग्रीव! तुम बीती बातों को भूलकर किष्किंधा का राज्य सँभालो तारा को सम्मानपूर्वक रखना। अंगद को पुत्र के समान रखना।” बालि ने अंगद को यह भी समझाया- “किसी से न अधिक प्रेम करना और न ही शत्रुता करना। बीच का मार्ग ही अपनाना।” इतना कहकर बालि ने शरीर त्याग दिया। सुग्रीव ने विधिपूर्वक बालि का दाह संस्कार किया। राम ने सुग्रीव को किष्किंधा जाकर राजा का पद संभालने और अंगद को युवराज पद देने की सलाह दी, साथ ही यह भी कहा कि वर्षा ऋतु आने के कारण मैं प्रस्रवण पर्वत की गुफा में रहूंगा। वर्षा काल के पश्चात् तुम सीता की खोज में मेरी सहायता करना। सुग्रीव ने वर्षा काल के बाद सीता को खोजने का वचन दिया। सुग्रीव ने किष्किंधा जाकर राजा का पद संभाला। राजा बनने के बाद सुग्रीव दिन-रात विलासिता में डूबा रहने लगा। वह राम को दिया वचन भी भूल गया। हनुमान ने सुग्रीव को उसका वचन याद दिलाया, तो उसने सेनापति नील को आदेश दिया कि वह पंद्रह दिनों में समस्त वानरों को किष्किंधा में एकत्रित करे। वह फिर सुरापान में लग गया।

वर्षा ऋतु के बीत जाने पर जब सुग्रीव नहीं आया, तो राम क्रोधित हो उठे। उन्होंने लक्ष्मण को कहा कि सुग्रीव राज्य पाकर सब कुछ भूल गया है। उसे स्मरण कराओ कि उसका अंत भी बालि के समान हो सकता है। लक्ष्मण को भी बहुत अधिक क्रोध आया। तब राम ने लक्ष्मण को समझाया कि सुग्रीव हमारा मित्र है, उसका अहित मत करना।

लक्ष्मण ने किष्किंधा पहुँचकर धनुष की टंकार की जिससे सुग्रीव भय से काँपने लगा। तब तारा ने लक्ष्मण को समझाकर शांत किया और सुग्रीव ने क्षमा माँगी। उसने हनुमान को दस दिनों में समस्त वानरों को एकत्र करने का आदेश दिया। फिर सुग्रीव ने राम के पास जाकर क्षमा माँगी।

वानरों द्वारा सीता की खोज – Ramayan Chapter 10

प्रस्रवण पर्वत पर हनुमान, अंगद, नल और नील के साथ लाखों वानर तथा जामवंत के साथ हजारों भालू इकट्ठे हो गए। यह देखकर राम सीता की खोज के प्रति आशावान हो उठे। सुग्रीव ने वानर सेना को व्यवस्थित किया। उसने चार वानरों को दल नायक बनाकर समस्त वानरों को चार दलों में बाँट दिया। वानरों को पूरे क्षेत्र का विस्तृत में परिचय दिया गया।

सीता को खोजने के लिए उसने अंगद के नेतृत्व में हनुमान, जामवंत, नल और नील को दक्षिण दिशा की ओर जाने का आदेश दिया। राम ने अपनी अँगूठी उतारकर हनुमान को दी और कहा – “जब आप सीता से मिलें तो उन्हें ये अंगूठी अवश्य दे देना, इसे देखकर वे पहचान जाएँगी कि मैंने तुम्हें भेजा है, तुम मेरे दूत हो।”सुग्रीव द्वारा समस्त दलों को चेतावनी भी दी गई कि निर्धारित समय तक सीता का पता न लगाने पर मृत्युदंड दिया जायेगा।

सभी दल विभिन्न दिशाओं की ओर चले गए। पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा में गए दल एक महीने बाद निराश लौट आए। दक्षिण दिशा को गया दल पर्वतों, गुफाओं और वनों में सीता की खोज करते-करते समुद्र के किनारे जा पहुँचा जहाँ से आगे जाने का कोई मार्ग न था। किष्किंधा से चलने के बाद कई महीने बीत गए थे। उनका लौटना भी असंभव था क्योंकि सुग्रीव द्वारा मार दिए जाने का भी भय था। अतः सभी समुद्र के किनारे चिन्तित होकर बैठ गये। अचानक उनकी दृष्टि विशाल आकार के गिद्ध पर जा पड़ी।

सभी भयभीत हो उठे परन्तु हनुमान ने समझदारी से काम लिया और गिद्धराज को संबोधित करते हुए कहा. कि आपसे अच्छा तो जटायु ही था जो राम के काम आकर मरा। जटायु का नाम सुनकर गिद्धराज संपाति ने कहा- “जटायु मेरा छोटा भाई था। उसे किसने मार दिया?” तब अंगद ने उसे जटायु की मृत्यु और सीता हरण के विषय में विस्तार से बताया। संपाति ने कहा कि मैं बूढ़ा हो गया हूँ अन्यथा मैं अपने भाई के हत्यारे रावण से ‘बदला अवश्य लेता। “हे राम! हे लक्ष्मण!” कह रही एक स्त्री को रावण आकाश मार्ग से ले जा रहा था। मैंने उसे देखा था। सीता लंका में है। समुद्र को पार करके ही सीता का पता लगाया जा सकता है। सभी ने संपाति के प्रति आभार व उससे सहमति प्रकट की।

अब समस्या समुद्र पार करने की थी। विशाल समुद्र को कौन पार करता? तब जामवंत ने हनुमान से कहा – “हे पवनपुत्र हनुमान! केवल तुम्हीं इस समुद्र को पार कर सकते हो। उठो! सीता को खोज लाओ।” जामवंत के शब्दों ने हनुमान जी के हृदय में उत्साह भर दिया। हनुमान ने देखते-ही-देखते विशाल रूप धारण कर सबको प्रणाम किया। सबके मुख पर आशा की किरण चमक उठी। हनुमान समुद्र पार करने के लिए महेन्द्र नामक पर्वत की चोटी पर चढ़ गए।

रामायण प्रश्नावली – Ramayan Prashnavali

  1. सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर क्यों रहता था ?
  2. सुग्रीव और राम की मित्रता किस प्रकार हुई ?
  3. राम की वीरता पर सुग्रीव को कैसे विश्वास हुआ?
  4. बालि की हत्या को राम ने क्यों उचित बताया?
  5. राम ने सुग्रीव को क्या चेतावनी दी और क्यों ?

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Ramayan Chapter 10 – Slaying of Bali

Due to the spring season, there was greenery all around. Remembering Sita, Ram went towards Rishyamook mountain with Lakshman. Sugriva lived on this mountain because of the fear of his elder brother Bali. Bali did not come there because of the curse given by sage Matag. When Sugriva saw two youths coming towards him from the top of the mountain, who were holding bows, Sugriva was afraid that they might be spies of Vali. He sent Hanuman ji down from the mountain to get the introduction of those youths. Hanuman changed form and

Asked about his introduction in Sanskrit language. Hanuman ji also introduced himself that I am the servant of Sugriva, the younger brother of King Bali of Kishkindha. Sugriva has sent me to you. He is a very gentle, intelligent and pious person. Rama was greatly impressed by the learned words of Hanuman. He surmised that when Hanuman was so capable, Sugriva must be even more learned and capable. Lakshmana introduced Rama to Hanuman and said that he is the elder son of King Dasaratha of Kosala, his name is Rama, I am his younger brother Lakshmana. By the order of the father, both of us brothers have come to the forest for fourteen years. Shri Ram’s wife Sita was also with us.

Some demon has abducted him from Panchavati‘s Parnakuti. We are wandering here and there in search of them. Kabandha had advised us to meet Sugriva for help in the search for Sita, that is why we have come here. Hanuman thought that due to friendship between Ram and Sugriva, both would be able to help each other. So he promised to unite Rama and Lakshmana with Sugriva and came in his real form. After this, by placing Rama on one shoulder and Lakshmana on the other shoulder, he took them to Sugriva on Mount Rishyamook. Hanuman informed both of each other’s sufferings.

After that, by lighting a fire, Ram and Sugriva were made friends in front of him. Ram said- “I swear in front of the fire god that from today we have become friends. Now I will consider your happiness and sorrow as my happiness and sorrow.” Sugriva also made the same promise to Ram-Laxman. Sugriva assured all help in finding Sita. He also showed Ram the ornaments dropped by Sita. Ram recognized those ornaments as soon as he saw them. Laxman recognized the anklets of the feet. After seeing the ornaments, Rama became more worried about Sita. Sugriva consoled him that Sita would definitely be found. A true friend is the one who helps a friend in trouble.

Slaying of Bali

Rama asked Sugriva about his sufferings. Sugriva while narrating his sad story said- “Kishkindha King Bali is my elder brother. He is extremely powerful. He has taken me out of the kingdom and snatched away my wife as well.” Ram said- “I will kill him with a single arrow.” Then Sugriva said- “You cannot estimate his power. He had killed even the Dundubhi demon just like that. Only he can kill Bali, who can kill the seven trees standing in front of him with a single arrow”.

Sugriva was surprised to see this. Seeing the bravery of Rama, he fell at his feet. Ram picked up Sugriva and told him to go and challenge Vali for a fight. I will kill him by shooting an arrow from behind the trees. At the same time Sugriva went to Kishkindha and challenged Vali. Bali got very angry and broke down on Sugriva. When there was a wrestling match between the two, Vali killed Sugriva badly. Sugriva somehow returned to Rishyamook mountain after saving his life.

He said to Ram in an angry voice – “If you didn’t want to kill Bali, why did you send me to get him defeated? If I hadn’t somehow escaped after saving my life, Bali would have killed me.” Sugriva’s body’s pains went away when Ram turned his hand. Ram started explaining to him – “The faces of both of you brothers are so similar that it was difficult for me to differentiate.

If the arrow had hit you by mistake, it would have been a disaster.” After this, Laxman put a garland of Nagpushpi around Sugriva’s neck for identification. Sugriva then reached Bali’s palace where he was seated beside his wife Tara. Hearing Sugriva’s challenge, he started going to kill him, shaking with anger. Bali’s wife Tara was very intelligent.

So he told Bali that Sugriva had just been killed. There is some secret behind the call for war again. He has come to fight on the strength of another warrior. Tara also told that Angad came to know that Ayodhya’s prince Rama and Lakshmana have come here. Rama is a pious and extremely brave warrior. Either you go for war with Sugriva by making your friendship or go for a fight with Sugriva. First you get complete information about Ram and Laxman from your spies.

Tara’s pictures had no effect on Bali and he said- “If Rama is following the path of Dharma then why should I kill?” Do it. You are a coward and away from deceit. You come to Sita to get friendship with Sugriva. If it is a matter of friendship, I bring Ravana and his wife Mandodari with Sita at your feet in a single day.

Rama replied to Bali saying- “O Bali! The words of religion and policy are not strong. I have taken my younger brother’s wife Ruma as my wife. The younger brother’s wife is like a daughter. I have partnered with Sugriva for friendship.

Rama prayed to have mercy on his wife Tara and son Angad.

Bali told him that Sugriva should be kept close – “Dear Sugriva! Whatever you say, take over the kingdom of Kishkindha, keep Tara in your sight. Keep Angad like a son.” Bali also said to Angad- “Neither love nor have enmity with anyone. Adopt the middle path.” King Sugriva abdicated the post of Kishkindha king. Rama abdicated the post of Kishkindha king and gave the throne to Angad. He was immersed in luxury at night. The promise given to Ram was also forgotten.

When Sugriva did not turn up after the end of the rainy season, Rama became angry. He told Lakshmana that Sugriva state protection has forgotten everything. Remind him that he may end up like Bali. Laxman also got very angry. Then Ram explained to Laxman that Sugriva is our friend, don’t harm him.

Laxman went to the shelter of Kishkindha and took shelter of Dhanurdhar, due to which Sugriva started trembling with fear. Then Tara pacified Laxman by explaining and Sugriva apologized. He ordered Hanuman to bring all the vanaras together in ten days. Then Sugriva apologized to Rama.

Sita’s search by monkeys

Lakhs of monkeys along with Hanuman, Angad, Nal and Neel and thousands of bears gathered with Jamwant on Prasravana mountain. Seeing this, Ram became hopeful of finding Sita. Sugriva organized the monkey army. He divided all the monk



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