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Maa Ganga : कैसे हुई गंगा की उत्पत्ति , मां गंगा को महर्षि जहानु क्यों निगल गए

स्कंद पुराण जैसे हिंदू ग्रंथों के अनुसार देवी गंगा को कार्तिकेय की सौतेली माता कहा जाता है। कार्तिकेय वास्तव में शिव और पार्वती के पुत्र है। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार विष्णु की तीन पत्नियां थी, जो हमेशा आपस में झगड़ती रहती थी, इसलिए अंत में उन्होंने केवल लक्ष्मी को अपने साथ रखा और गंगा को शिव जी के पास तथा सरस्वती को ब्रह्मा जी के पास भेज दिया आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे की मां गंगा की उत्पत्ति कैसे हुई और महर्षि जहानु उन्हें क्यों निगल गए थे

हिन्दु धर्म में गंगा की उत्पत्ति को लेकर अनेक मान्यताएं हैं आपको बता दें कि ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मदेव के कमंडल का जल गंगा नामक युवती के रूप में प्रकट हुआ था  एक और  कथा के अनुसार विष्णुजी के चरणों को ब्रह्माजी ने आदर सहित धोया और उस जल को अपने कमंडल में इकट्ठा  कर लिया एक अन्य मान्यता के अनुसार मां गंगा पर्वतों के राजा हिमवान और उनकी पत्नी मीना की पुत्री हैं  इस तरह वो मां पार्वती की बहन भी हैं लेकिन हर मान्यता में यह अवश्य पाया जाता है कि उनका पालन-पोषण स्वर्ग में ब्रह्मा जी के संरक्षण में हुआ

जब सगर के एक वंशज भगीरथ ने इस दुर्भाग्य के बारे में सुना तो उन्होंने प्रतिज्ञा की कि, वे गंगा को पृथ्वी पर लायेंगे, ताकि उसके जल से सगर पुत्रों के पाप धुल जाएं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सके। भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की, जिससे भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए।  और ब्रह्मा जी ने गंगा को आदेश दिया कि, वह पृथ्वी पर जाये और वहां से पाताल लोक जाये ताकि भगीरथ के वंशजों को मोक्ष प्राप्त हो सके। गंगा को यह काफी अपमानजनक लगा और उन्होंने ये तय किया कि, वह पूरे वेग के साथ स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरेगी और उसे बहा ले जायेगी।

भगीरथ ने घबराकर शिवजी से प्रार्थना की कि, वे गंगा के वेग को कम कर दें। भगीरथ की प्रार्थना से प्रसन्न होकर शिव जी ने भगीरथ से कहा कि वे उसकी मदद जरूर करेंगी। गंगा पूरे अहंकार के साथ शिव के सिर पर गिरने लगीं।  लेकिन भगवान शिव ने शांतिपूर्वक उन्हें अपनी जटाओं में बांध लिया और केवल इसकी छोटी-छोटी धाराओं को ही बाहर आने दिया।। शिव जी का स्पर्श प्राप्त करने से गंगा और अधिक पवित्र हो गयी। जिसके बाद पाताल लोक की तरफ़ जाती हुई गंगा ने पृथ्वी पर बहने के लिए एक और धारा बनाई ताकि अभागे लोगों को बचाया जा सके।

गंगा एकमात्र ऐसी नदी है जो तीनों लोकों में बहती है- स्वर्ग, पृथ्वी, तथा पाताल इसलिए संस्कृत भाषा में उसे त्रिपथगा यानि तीनों लोकों में बहने वाली कहा जाता है भगीरथ के प्रयासों से गंगा के पृथ्वी पर आने के कारण उसे भगीरथी भी कहा जाता है और गंगा को जाह्नवी के नाम से भी जाना जाता है इसके पीछे भी एक कहानी है उसके मुताबिक ऐसा कहा जाता है कि, पृथ्वी पर आने के बाद गंगा जब भगीरथ की तरफ बढ़ रही थी तो उनके पानी के वेग ने काफी हलचल पैदा की जिससे जाह्नू नामक ऋषि की साधना और उनके खेतों को नष्ट हो गए  इससे क्रोधित होकर उन्होंने गंगा के समस्त जल को पी लिया तब देवताओं ने जाह्नु से प्रार्थना की कि वह गंगा को छोड़ दे ताकि वह अपना काम आगे बढ़ा सके। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर जाह्नु ने गंगा के जल को अपने कानों से प्रवाहित किया, इस प्रकार गंगा का नाम जाह्न्वी पड़ा यानी जाह्नु की पुत्री नाम पड़ा ऐसा माना जाता है कि कलियुग के अंत तक सरस्वती नदी की तरह गंगा भी पूरी तरह सूख जाएगी और इसके साथ ही यह युग भी समाप्त हो जाएगा, जिसके बाद सतयुग का उदय होगा।

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