Depression Related To Stomach Problems : अगर आपको भी डिप्रेशन जैसी गंभीर समस्या तो पेट से जुड़ा हो सकता है इसका इलाज़
Depression Related To Stomach Problems : आपने अपने बड़े बुजुर्गों को ये तो कई बार कहते सुना होगा कि दिल का रास्ता पेट से होकर गुज़रता है.
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लेकिन अगर हम आपसे ऐसा कहें कि सिर्फ दिल का ही नहीं बल्कि आपके दिमाग की अच्छी सेहत का रास्ता भी आपके पेट से होकर गुज़रता है तो क्या आप हमारी इस बात पर यकीन कर पाएंगे?
अब आप इस बात को मानें या ना मानें लेकिन हकीकत तो यही है कि हमारी दिमाग़ी सेहत का भी हमारे पेट से गहरा वास्ता है.
यही नहीं माना तो यहाँ तक जाता है कि अगर डिप्रेशन की जड़ तलाशने वाले अगर पेट खंगालें, तो शायद जवाब आपको इससे जुड़े सभी सवालों का जवाब वहां से मिल जाये.
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ऐसा हम नहीं ब्रिटिश मनोचिकित्सक डॉक्टर जॉर्ज पोर्टर फिलिप्स का मानना है जिन्होंने पिछली सदी की शुरुआत में इस बात का अहसास किया था.
अस्पताल के दौरे के दौरान डॉक्टर को पता चली ये बात :
एक दिन डॉक्टर फ़िलिप्स लंदन के बदनाम अस्पताल बेथलहम रॉयल अस्पताल में दौरे पर थे.
अपने इसी दौरे के दौरान डॉक्टर फ़िलिप्स ने महसूस किया कि दिमाग़ी ख़लल के शिकार उनके मरीज़ों को अक्सर क़ब्ज़, पेट में जलन और खाना न पचने जैसी शिकायत रहा करती थी.
उन सभी मरीजों के नाख़ून भी बड़े नाज़ुक होते थे और उनके बालों में कोई चमक भी नहीं होती थी. इसके अलावा डॉक्टर ने ये भी गौर किया कि उन मरीजों का चेहरा भी ज़र्द रहता था.
अमूमन तौर पर ऐसे मरीज़ों को देखकर मान लिया जाता है कि इन लोगों को ज़हनी सुकून नहीं है, इसलिए ही उनका हुलिया इस कदर बिगड़ा हुआ है.
लेकिन डॉक्टर फ़िलिप्स के दिमाग़ में उस दिन ये सवाल आया कि कहीं इन मरीज़ों की पेट की बीमारी तो उनको डिप्रेशन होने की वजह नहीं बन रही है? क्या उनकी पेट की बीमारी का इलाज कर के उनकी दिमाग़ी परेशानी दूर की जा सकती है?
अपने इन्ही सवालों का जवाब तलाशने के लिए डॉक्टर फ़िलिप्स ने तय किया कि वो इस अस्पताल के 18 मरीज़ों पर एक प्रयोग करेंगे.
इस प्रयोग के तहत उन मरीजों के खाने से मछली को छोड़कर हर तरह का मांस को हटा दिया गया और फिर उन्हें सिर्फ फर्मेंटेड दूध दिया गया.
क्या होता है फर्मेंटेड दूध: दरअसल ऐसे दूध में लैक्टोबैसिलस कीटाणु होते हैं, जो पेट के लिए फ़ायदेमंद माने जाते हैं. कहते हैं कि लैक्टोबैसिलस बैक्टीरिया खाना पचाने में सहायक होते हैं.
ये रहा शोध का नतीजा :
बताया जाता है कि जिन 18 मरीज़ों पर ये शोध किया गया था, उनमें से 11 मरीज शोध के पूरा होने तक पूरी तरह से ठीक हो गए.
सिर्फ इतना ही नहीं इसके अलावा दो और मरीज़ों की दिमाग़ी सेहत में काफ़ी सुधार देखा गया. बताया जाता है कि हमारे पेट का हमारी दिमाग़ी सेहत से गहरा ताल्लुक़ बताने वाला ये पहला तजुर्बा था.
हालाँकि हमारे पेट से हमारी दिमाग़ी सेहत का भी वास्ता है, इस बात को मानने में दुनिया ने एक सदी गुज़ार दी. डॉक्टर फ़िलिप्स के तजुर्बे को बाद की पीढ़ी ने कभी भी नहीं माना.
हालाँकि अब आंतों के कीटाणुओं पर रिसर्च करने वाले तमाम वैज्ञानिक खुद भी ऐसा मानते हैं कि हमारी दिमाग़ी सेहत का हमारी आंतों के बैक्टीरिया से सीधा ताल्लुक़ होता है.
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दिमाग और पेट में गहरे सबंध होने को सिद्ध करती हैं ये बातें :
- आंतों की दीवारों की रक्षा करने वाले कीटाणु मूड ख़राब होने और आलस की वजह बन सकते हैं. ये हालात लंबे वक़्त तक रहने पर बीमारी डिप्रेशन में तब्दील हो जाती है.
- आंत में मौजूद बैक्टीरिया हमें डोपामाइन और सेरोटोनिन जैसे हारमोन पचाने में भी मदद करते हैं.
- हमारी आंतों का सीधा ताल्लुक़ हमारे दिमाग़ से होता है वेगन नाम की तंत्रिका के ज़रिए दिमाग़, आंतों के काम-काज पर कंट्रोल रखता है.
- वैज्ञानिक मानते हैं कि इसके ज़रिए अगर दिमाग़ कोई संदेश आंतों को दे सकता है, तो आंतों के हालात का असर इससे होते हुए दिमाग़ तक भी पहुंचता है.
निष्कर्ष:
यहाँ ये भी जानना ज़रूरी है कि डिप्रेशन कम करने के लिए दी जाने वाली जो मौजूदा दवाएं हैं, वो हर इंसान के लिए उपयोगी साबित नहीं होती हैं.
केवल 10 में से 2 ही मरीज़ों को उनसे फ़ायदा मिलते देखा गया है. ऐसे में वैज्ञानिकों को लगता है कि दिमाग़ और आंतों के बैक्टीरिया के रिश्ते की बारीक़ी समझकर इससे डिप्रेशन जैसी बीमारियों का इलाज खोजा जा सकता है.
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