New Study On Milky Way : आकाशगंगा के इस समूह का नाम है हाइपीरियन
New Study On Milky Way : ये बात तो हम सभी मानते हैं कि आकाश में ऐसे अनगिनत तारे और ग्रह मौजूद हैं, जो काफी समय से अपने रहस्यों की वजह से वैज्ञानिकों के कौताहल का कारण बने हुए हैं और आगे भी बने रहेंगे.
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दुनियाभर के वैज्ञानिक लम्बे समय से एक-एक कर इनके रहस्यों पर से पर्दा उठाने की कोशिश कर रहे हैं.
ऐसे में वैज्ञानिकों की इसी कोशिश से हमें भी आए दिन अपने सौर-मंडल के बारे में कोई ना कोई नई बात पता चलती ही रहती है. इसी कड़ी में वैज्ञानिकों को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है.
दरअसल हाल ही में हुए एक अध्ययन में ये बात सामने आई है कि मिल्की वे जिसे पृथ्वी की आकाशगंगा भी कहते हैं उसका द्रव्यमान तकरीबन 1.5 लाख करोड़ सूर्य के द्रव्यमान के बराबर होता है.
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बताया जा रहा है कि वैज्ञानिकों ने इसे मापने के लिए नासा के हब्बल टेलीस्कोप और यूरोपीय स्पेस एजेंसी के गाइया सैटेलाइट के डेटा का इस्तेमाल किया है वैज्ञानिकों की मानें तो ये मिल्की वे का अब तक का सबसे सटीक माप (मेज़रमेंट) है.
ज्ञात रहे कि हमारी आकाशगंगा के आकार का अनुमान लगाने के वर्षों के संघर्ष के बाद, नासा और ईएसए के साथ खगोलविदों ने मिल्की वे को निर्धारित करने के लिए हबल स्पेस टेलीस्कोप और ईएसए के गैया मिशन (Gaia mission) के डेटा का इस्तेमाल किया, जो केंद्र से 129,000 प्रकाश वर्ष के दायरे में 1.5 ट्रिलियन सौर द्रव्यमान का वजन है.
वैज्ञानिकों ने की आकाशगंगाओं के अब तक के सबसे विशाल समूह की खोज
यहाँ हम आपको बताते चलें कि खगोलविदों को शुरुआती ब्रह्मांड की आकाशगंगाओं का इसे अब तक का सबसे बड़ा समूह माना जा रहा है. इसकी उत्पत्ति का समय बिग बैंग के मात्र दो अरब वर्षों बाद का बताया जा रहा है. इस बारे में वैज्ञानिकों का मानना है कि ये ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में हमें भविष्य में काफी कुछ बता सकता है.
आकाशगंगा के इस समूह का नाम है हाइपीरियन
अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, डेविस के शोधकर्ताओं से जब इस बारे में बात की गयी तो उन्होंने बताया कि, “आकाशगंगाओं के इस समूह को हमने हाइपीरियन नाम दिया है.”
शोधकर्ताओं के मुताबिक, हाइपीरियन का द्रव्यमान सूरज से तकरीबन 10 लाख अरब गुना अधिक है, जो इसे ब्रह्मांड के निर्माण के बाद से अब तक खोजी गई संरचनाओं में सबसे विशाल संरचना बनाता है.
इस बारे में अन्य लोगों की राय
इस बारे में बात करते हुए जर्मनी के यूरोपीय सदर्न ऑब्जर्वेटरी की लॉरा वाटकिंस ने एक बयान में कहा कि, “हम सीधे डार्क मैटर का पता नहीं लगा सकते हैं.
यही मिल्की वे के द्रव्यमान में मौजूद अनिश्चितता की ओर ले जाता है – जो आप नहीं देख सकते, उसे आप सही तरीके से माप सकते हैं क्योंकि डार्क मैटर की गणना करना बहुत मुश्किल है.
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वॉटकिंस और उनकी टीम ने घने स्टार समूहों के वेग को मापा, जिन्हें गोलाकार क्लस्टर कहा जाता है, जो आकाशगंगा के सर्पिल डिस्क की परिक्रमा करते हैं.
यू.एस. स्पेस टेलीस्कोप साइंस इंस्टीट्यूट के रोलांड पी वैन डेर मेरेल ने कहा कि, “हम डेटा के ऐसे बेहतरीन संयोजन के लिए भाग्यशाली थे.
वैन हिरेल ने कहा कि, “हबल से 12 अधिक दूर के समूहों के माप के साथ Gaia के 34 मापक समूहों को मिलाते हुए, हम मिल्की वे के द्रव्यमान को इस तरह से पिन कर सकते हैं, जो इन दो अंतरिक्ष दूरबीनों के बिना असंभव होगा.
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