National Education Day 2018 : मौलाना आजाद के शिक्षा मंत्री रहते हुए देश में कई संस्थानों की शुरूआत हुई थी
National Education Day 2018 : आज 11 नवंबर है यानि की राष्ट्रीय शिक्षा दिवस, हर साल मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती के मौके पर इसे मनाया जाता है.
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बता दें कि मौलाना आजाद एक स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए गांधी जी के साथ मिलकर काफी संघर्ष किया.
इसके साथ ही वो आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री भी थे जिनका कार्यकाल 1947 से 1958 तक था.
मौलाना आजाद का जीवन परिचय
मौलाना आजाद अफगानी उलेमाओं के खालदान से ताल्लुक रखते थे जो बाबर के समय हेरात से भारत आकर बस गए. उनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन एक फारसी थे जबकि उनकी माता अरबी मूल की थी.
आजाद की शुरआती शिक्षा इस्लामी तौर तरीकों से हुई जिसे घर पर या मस्ज़िद में उन्हें उनके पिता या उलेमाओं से मिली .हालांकी बाद में इस्लामी शिक्षा के अलावा उन्हें दर्शनशास्त्र, इतिहास तथा गणित की शिक्षा भी अन्य गुरुओं से मिली.
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उन्होंने उर्दू,फारसी,हिन्दी, अरबी तथा अंग्रेजी भाषाओं में महारथ हासिल कर ली थी, महज 16 साल की उम्र में वो सभी जरूरी शिक्षा हासिल कर चुके थे जो आमतौर पर छात्र 25 साल की उम्र में हासिल करते हैं.
11 साल की उम्र में मां की मृत्यु के बाद पढ़ाई के दौरान ही 13 वर्ष में उनका विवाह ज़ुलैखा बेग़म से हो गया था.
स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका
मौलाना आजाद शुरू से ही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ थे, उन्होंने अंग्रेजी सरकार को आम आदमी के शोषण का जिम्मेदार बनाया साथ ही उन मुस्लिम नेताओं की भी खूब लोचना करी जो देश की आजादी को छोड़ सांप्रदायिक हित को तरजीह दे रहे थे.
आजाद ने 1905 में बंगाल के विभाजन का विरोध किया और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अलगाववादी विचारधारा को खारिज़ कर दिया.
इस दौरान वो एक सफल पत्रकार भी बन गए जिनका उद्देश्य मुस्लिम नवयुवकों को क्रांतिकारी आंदोलनों के प्रति उत्साहित करना था. गांधी जी के असहयोग आंदोलन ने उन्होंने सक्रिय बूमिका निभाई थी.
शिक्षा क्षेत्र में उनका योगदान
मौलाना आजाद ने बतौर शिक्षा मंत्री 11वर्षों तक बारत का मार्गदर्शन किया. उन्होंने 14 साल की आयु तक सभी बच्चों के लिए निशुल्क प्राथमिक शिक्षा के अलावा व्यावसायिक प्रशिक्षण और तकनीकी शिक्षा की वकालत की.
महिलाओं की शिक्षा को लेकर देश भर में जोर देने वाले वो पहले नेता थे पर जोर दिया. इस मामले में उनका मानना था कि शिक्षा का कोई भी कार्यक्रम तब तक सफल नहीं बन सकता जब तक वो समाज की आधी से ज्यादा आबादी यानि महिलाओं तक नहीं पहुंचती.
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उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकिसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों जैसे की संगीत नाटक अकादमी (1953),साहित्य अकादमी (1954) और ललितकला अकादमी (1954) की स्थापना करी.
इसके अलावा पहला आईआईटी, आईआईएससी, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर और यूनिवर्सिटी अनुदान आयोग उनके कार्यकाल के तहत ही स्थापित किए गए थे.
देश के शिक्षा क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों को देखते हुए सन् 1992 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानिक किया गया.
देश के कई शिक्षण संस्थानों में आज के दिन विशेष समारोह का आयोजन किया जाता है, जिसनें आजाद के योगदानों को याद करते हुए भविष्य में शिक्षा के नए रूपों पर मंथन होता है.
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