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जानिए क्या है मालदीव का पूरा विवाद , आखिर वहां के विपक्षी दल क्यों लगा रहे भारत से मदद की गुहार

Maldives Emergency: मालदीव की बिगड़ती राजनीति पर भारत ने चिंता जताई है और भारतीयों को मालदीव की गैरू-जरूरी यात्रा ना करने की सलाह दी है.

Maldives Emergency : भारत के पड़ोसी देश मालदीव में राजनीतिक गतिरोध के चलते राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने 15 दिनों की इमरजेंसी का ऐलान किया है.

इसके पीछे का कारण मालदीव की सुप्रीम कोर्ट का वो आदेश माना जा रहा है जिसमें उसने पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद पर चल रहे मुकदमे को असंवैधानिक बताते हुए उनके साथ कैद किए गए विपक्ष के 9 सांसदों की रिहाई का फरमान जारी किया है.
लेकिन सरकार ने कोर्ट का यह आदेश मानने से इनकार कर दिया और उन सभी नेताओं की रिहाई पर रोक जारी रखी है. इसके बाद से ही मालदीव में सरकार और कोर्ट में तकरार का माहौल बना गया है जिसके विरोध में सड़कों पर वहां की आम जनता भी उतर आई हैं.
जजों की गिरफ्तारी ने बढ़ाया लोगों में आक्रोष
बता दें कि देर रात हुए इस घटनाक्रम के तहत रिहाई के आदेश देने वाली बेंच के दो जजों की गिरफ्तारी सरकार द्वारा कराई जा चुकी है जबकि बाकी शेष तीन जजों ने राष्ट्रपति द्वारा उठाई गई चिंताओं के मद्देनजर कैदियों की रिहाई के आदेश को वापस ले लिया.
इसके बाद से वहां विपक्ष के साथ साथ आम लोगों का गुस्सा भी फूट पड़ा और वो सड़कों पर सरकार के विरोध में जगह जगह प्रदर्शन करने लगे हैं जिससे अब मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति को तख्ता पलट की आशंका सताने लगी है.
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पूर्व राष्ट्रपति ने भारत से मांगी मदद
पड़ोसी देश में राजनीतिक गर्माहट और 15 दिन की इमरजेंसी को देखते हुए मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने इस मामले में भारत से दखल की मांग करते हुए दूत और सेना भेजने के लिए आग्रह किया है.
जिसके बाद मालदीव में लागू इमरजेंसी के बीच माना जा रहा है कि भारत इस मामले में दखल देने के लिए अपनी सेना को तैयार रख सकता है. हालांकि, सरकार की ओर से इस बारे में कोई पुष्टि नहीं की गई है.
बता दें कि भारत पहले ही मालदीव के हालातों पर चिंता जाहिर कर चुका है. इस बीच भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने भारतीय नागरिकों से मालदीव की गैर-जरूरी यात्राएं नहीं करने और वहां रह रहे भारतीयों को सुरक्षित रहने की सलाह दी है.
विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की गिरफ्तारी और राजनीतिक कलह चिंता का कारण हैं.
भारत और चीन आए आमने सामने
गौरतलब है कि भारत के मालदीव के साथ बहुत पुराने व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध हैं. साथ ही करीब सवा 4 लाख आबादी वाला यह छोटा सा देश भारत की भौगोलिक स्थिति की वजह और रणनीतिक लिहाज से भी काफी अहम है.
इससे पहले भी कई बार भारत ने मालदीव पर गहराए संकटों में बिना देर किए सैन्य मदद की है, जिसमें 1988 का ऑपरेशन कैक्टस और 2004 का ऑपरेशन नीर अभियान इतिहास के पन्नों पर दर्ज है.
हालांकि बीते कुछ सालों में मालदीव का झुकाव चीन की तरफ काफी बढ़ा है और यही वजह है कि वहां की राजनीति में चीन का दखल काफी हद तक देखने को अब मिल रहा है.
जानकारी के लिए आपको बता दें कि मालदीव पर जो अंतरराष्ट्रीय कर्ज है उसमें अकेले चीन की हिस्सेदारी ही करीब दो तिहाई है और चीन अपने इसी कर्ज के चलते मालदीव पर आए दिन आदिपत्य जताता रहता है.
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इसका एक कारण यह भी है कि मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को भी चीन का काफि करीबी माना जाता है.
बात यहीं खत्म नहीं होती पूर्व राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट द्वारा भारत से मदद की गुहार मांगे जाने पर यामीन ने बौखलाहट में अपने विशेष दूतों को चीन , पाकिस्तान और सउदी अरब में मदद मांगने के लिए भेजा है.
इसके अलावा चीन ने भी मालदीव के प्रति अपनी बेचैनी को जाहिर करते हुए है भारत को किसी तरह का दखल ना देने की बात कही है. चीन के मीडिया को दिए एक लेख के अनुसार उसने मालदीव को भी भारत के प्रति चौकन्ना रहने की सलाह दी है.
दरअसल, चीन की इस बौखलाहट का खास कारण यह है कि भारत दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों में अपनी मजबूत पकड़ बनाने में लगा है और दूसरी तरफ पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद और अब्दुल गयूम समेत मालदीव के सुप्रीम कोर्ट ने सीधे तौर पर भारत से मदद की गुहार की है.
ऐसे में चीन को खतरा है कि अगर भारत के हस्तक्षेप से यामीन की सरकार को खतरा पहुंचेगा और विपक्षी दल को सत्ता मिल जाएगी, तो इससे चीन की मालदीव पर मौजूदा पकड़ खतरे में आ सकती है.

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