Warzone Children : बच्चों को बनाया जा रहा आत्मघाती हमलावर
Warzone Children : दुनिया का हर देश अपने यहां के बच्चों में खुद का भविष्य देखता है क्योंकि ऐसा सभी मानते हैं कि इन्हीं बच्चों पर उसके देश का आने वाला कल टिका हुआ है.
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शायद यही वजह होती है कि हर देश अपने यहां के बच्चों को बड़े ही संभाल कर रखने का प्रयास करते हैं. मगर जरा सोचिए क्या आज के समय में सचमुच यह स्थिति कायम है ,शायद नहीं.
हम ऐसा इसलिए कह रह हैं क्योंकि युद्ध प्रभावित देशों में रहने वाले बच्चे अपने जीवनकाल की बद से बद्दतर जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं. वहां उनपर इंसानियत को भुलाकर किए जा रहे कठोर अपराधों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जिसपर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है.
यह बात हर कोई जान रहा है कि सीरिया, इराक, अफ्रीका में हो रहे संघर्ष युद्धों में किस तरह बच्चों को निशाना बनाया जा रहा है.
बच्चों के लिए काम करने वाली अंतराष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ ने इन देशों के ताजा हालात को देखते हुए बताया कि युद्ध के क्षेत्र में पकड़े गए बच्चे तेजी से वहां के विद्रोहियों के लिए एक घातक हथियारों के रूप में उपयोग किए जा रहे हैं.
इन बच्चों को कम उम्र में ही युद्ध के लिए भर्ती कर उन्हें आत्मघाती हमलावरों के रूप में कार्य कराने के लिए मजबूर किया जा रहा है.
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संस्था ने संघर्ष में पकड़े गए बच्चों के लिए 2017 को सबसे क्रूर साल मानते हुए कहा कि दो दल के बीच पनपे संघर्ष के दौरान अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी कानून का उलंघन पूरी तरह किया जा रहा. युद्ध में शामिल सभी दल बच्चों को हमले के वक्त अपनी ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं.
सीरिया ,यमन, नाइजीरिया, दक्षिण सूडान और म्यांमार के संघर्षों में इन बच्चों के साथ बलात्कार, जबरन विवाह, अपहरण जैसे अपराध तक आम हो चुके हैं.
यहीं नही जब कुछ बच्चों का उग्रवादी समूहों के अपहरण से रिहा कराया जाता है तो उनके साथ फिर से सुरक्षा बल दुर्व्यवहार करते हैं.
हर तरफ से जुल्म सहने के बाद यह बच्चे भोजन, पानी और स्वच्छता से वंचित रह जाते हैं और फिर कुपोषण और कई तरह कि बीमारियों से प्रभावित हो रहे हैं.
बात अगर इन बच्चों को मिलने वाली शिक्षा की करें तो रिपोर्ट के मुताबिक संघर्ष क्षेत्र के करीब 2 करोड़ 70 लाख बच्चे स्कूल से बाहर निकल गए हैं.
यूनिसेफ के आपातकालीन कार्यक्रमों के निदेशक मैनुअल फ़ॉंटन ने बताया कि लगातार बच्चों के स्कूल और उनके खेल के मैदानों को हमलों में लक्ष्य बनाया जा रहा है.और ये हमलें इतनी जल्दी रुकने वाले नहीं .
अफ्रीका में लंबे समय से चलने वाले इन संघर्षों में सबसे ज्यादा बच्चों को ही निशाना बनाया जाता रहा है.
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साल 2017 तक के आंकड़े
बोको हरम, नाइजीरिया, चाड, नाइजर और कैमरून में सक्रिय आतंकवादी जिहादी संगठनों ने आत्मघाति हमलावरों के रूप में काम करने के लिए कम से कम 135 बच्चों को मजबूर किया,जबकि 2016 में यह संख्या पांच गुना हो गई.
वहीं 2013 में केंद्रीय अफ्रीकी गणराज्य में तख्तापलट के बाद से शुरू हुए सांप्रदायिक संघर्षों में वृद्धि के बाद से ही वहां के बच्चों के साथ जुर्म बढ़ गए.
सोमालिया में 2017 के पहले 10 महीनों में लगभग 1,800 बच्चों को लड़ने के लिए भर्ती किया गया था, जबकि दक्षिण सूडान में 1900 से 19000 से अधिक बच्चों को सशस्त्र समूहों में भर्ती किया गया है.
इसके अलावा यमन में तीन साल की लड़ाई में कम से कम 5000 बच्चे मृत या घायल हुए हैं और 1.8 मिलियन कुपोषण से पीड़ित हैं.
वहीं इराक और सीरिया में आईएसआईएस समर्थित लड़ाके घेराबंदी में फंसने के बाद बच्चों को ढाल की तरह इस्तमाल करते थे. अफगानिस्तान में 2017 के पहले नौ महीनों में लड़ाई में लगभग 700 बच्चे मारे गए थे.
ईसाई धर्मगुरू पोप फ्रांसिस ने भी अपने इस बार के पारंपरिक क्रिसमस संदेश में युद्ध क्षेत्रों में बच्चों की दुर्दशा पर ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की थी.
उन्होंने सीरिया, इराक, यमन और कई अफ्रीकी राज्यों का हवाला देते हुए कहा था कि हम दुनिया भर में बच्चों में यीशु को देखते हैं जहां शांति और सुरक्षा के लिए तनाव और नए संघर्षों के लिए खतरा पनप रहा है .
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