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राहुल गांधीजी ने कहा था कि आतंकवाद चलते रहेगा


राहुल गांधीजी ने कहा था कि आतंकवाद की घटनाएँ भारत में लगातार चलती ही रहेंगी

राहुल गांधीजी ने कहा था कि आतंकवाद की घटनाएँ भारत में लगातार चलती ही रहेंगीऔर ये रुकने वाली नहीं हैं मोदीजी ने जल्दबाज़ी की तो हैदराबाद में मेट्रो लाइन चल पड़ी नहीं तो केटीआर केसीआर इस काम को पाँच साल तक लटकाकर ही रख देते थे, क्योंकि मेट्रोरेल पर हैदराबाद के कई गुडंबा मास्टर काम कर रहे थे, जो ज़मीन की खुदाई कर रहे थे, जो स्टेशन बना रहे थे, इसलिए यह राजशेखर रेड़ी के ज़माने से ही यह काम लटका हुआ है। गुडंबा मास्टर हैं तो पाँच साल लगने ही थे, वैसे भी हैदराबाद दुनिया का महाआलसी शहर है, यहाँ कोई काम जल्दी नहीं होता, क्योंकि बात हुई थी कि २०१६ में ही ये लाइन चलेगी लेकिन इसको रोका गया, मोदीजी तो ठहरे काम के नशेड़ी वे काम रुकते ही उसको छेड़कर काम को आगे बढ़ा देते हैं। हैदराबाद तो इतना आलसी शहर है कि यहाँ दुकानें ही दिन के ग्यारह बजे खुलना शुरू होती हैं। सो, धन्यवाद मोदीजी आपने मेट्रो हैदराबाद में चला दी। उधर पत्रकार रवीश कुमार कह रहे हैं कि ग़रीब देश में बुलेट ट्रेन की क्या ज़रूरत है, ऐसा है तो भारत से हवाईजहाज़ भी हटा दीजिए, क्योंकि हवाईजहाज़ तो बुलेट ट्रेन से भी तेज़ चलते हैं। क्यारवीशजी ने हवाई जहाज़ से समय पर ख़बर पहुँचाने के लिए हवाई यात्रा नहीं की होगी, ज़रूर की होगी, और तब उनको यह ग़रीब देश दिखाई नहीं देता होगा, जब भी मोदीजी कुछ नया सोचते हैं रवीशजी उसको रोकने पर तुल जाते हैं, ठीक है कि पत्रकार को प्रधानमंत्री से वैचारिक लड़ाई लड़नी चाहिए लेकिन उसमें कुतर्क नहीं, अच्छा तर्क होना चाहिए, लोगों को पचना भी चाहिए। उधर राज ठाकरेजी कह रहे हैं कि क्या लोग बुलेट ट्रेन से अहमदाबाद ढोकला खाने जाएँगे, हाँ, जी क्या बुराई है बुलेट ट्रेन में जाकर ढोकला खाने या मुंबई आकर वड़ा पाव खाने में। भारत में लोगों के पास बहुत पैसा है, लोगों को साठ हज़ार तो पेंशन आती है, अब उनके पेट में आंत नहीं मुँह में दाँत नहीं, उनकी पतंग उडती नहीं तो वे लोग बुलेट ट्रेन पर ही पैसा ख़र्च करेंगेना। अब यही लोग विदेशी यात्रा साल के छह महीने लगातार कर रहे हैं क्योंकि उनसे पैसा ख़र्च ही नहीं हो पा रहा है। अगर वह आदमी बुलेट ट्रेन का मज़ा ले ले, सरकार को पैसे की कमाई हो तो बुराई क्या है। सो, ये टाइमपास के लिए रिटायर्ड लोग वड़ा पाव या ढोकला खाने आ जा सकते हैं। भारत में इस समय २० से ४० करोड़ लोग नयी नयी चीज़ भारत में देखकर मरना चाहते हैं, उनकी इच्छा पूरी होती है तो बुराई क्या है, अब तक हैदराबाद में मेट्रो ट्रेन नहीं थी, बहुत ही ज़्यादा मज़ा आता है इसमें सफ़र करने का, बहुत तेज़ भागती है, आप उनसे पूछिये जो ट्राफिक में खड़े-खड़े धुआँ खा रहे हैं, जिनके फेफडे ख़राब हो रहे हैं, अगर वे तीस किलोमीटर का सफ़र बिना प्रदूषण के, पूरा रोज़ाना करेंगे तो उनकी तबीयत ठीक रहेगी। शुगर की बीमारी के लोग प्रदूषण में जाते हैं तो उनको फेफडों में साँस लेने की तकलीफ़ हो जाती है, जिसके ऑपरेशन का आजकल एक लाख रुपया लग रहा है, अब एक लाख का ब्याज सात सौ रुपया मेट्रोरेल पर लगाएँ तो तबीयत भी ठीक रहती है और अपना जीवन भी बिना बीमारी के चलते रहता है। हमने एक बार नोएडा ये लाल किले तक मेट्रो का सफ़र किया, बहुत मज़ा आया। क्योंकि नोएडा से लाल किला यानी हरियाणा से लेकर दिल्ली यानी एक राज्य से दूसरे राज्य में आप केवल पचास मिनट में पहुँच जाते हैं। अब हैदराबाद में तो पाँच किलोमीटर जाना है तो कम से कम आधा घंटा ट्राफिक में लग जा रहा है। हर चौराहे पर ट्राफिक सिग्नल हो गया है। जबकि मेट्रो रेल तो मियापुर से नागोल तक केवल चालीस मिनट में आपको पहुँचा देगी। हम तो अच्छी तरह से जानते हैं कि जो व्यापारी बहुत ही होशियार होता है उसके लिए टाइम इज मनी यानी समय ही पैसा हो जाता है, अच्छे व्यापारी के लिए तो २४ घंटे भी कम दिखाई देने लगते हैं। बिल गेट्स और बाबा राम रहीम का दिमाग तो इतना तेज़ होता है कि उनके लिए तो रॉकेट का समय भी बहुत ज़्यादा लगता है। बाबा राम रहीम का नाम इसलिए ले रहा हूँकि उनका कारों का काफिला ही सौ कारों का कम से कम हुआ करता था, वे तब आराम से एक मेट्रोरेल या रॉकेट ख़रीद सकते थे, लेकिन अब वो भी दिन उनके जा चुके हैं। वैसों के लिए मेट्रो-बुलेट ट्रेन बहुत ज़रूरी होती है। हम तो चाहते हैं कि मेट्रो लाइन में एकाध वीवीआईपी डिब्बा भी होना चाहिए, उसका स्टेशन से बाहर जाने का रास्ता भी अलग होना चाहिए, तो वहाँ पर अमिताभ, सलमान, शाहरुख़ अपना समय बचा सकते हैं। अब सड़कों के दिन गये, सड़कों पर दुनिया भर का प्रदूषण हो गया है, अब तो मुंबई की लोकल ट्रेन एक घंटे में साठ किलोमीटर का सफ़र तय करती है, जबकि कार उसी सफ़र को ढाई घंटे में पूरा करती है, शाहरुख़-अमिताभ ने तो अपनी वैनिटी वैन जो सड़कों पर चलती है उसी में पेशाबघर और संडासघर बना लिया है, और उसी में भोजन भी करते हुए काम पर जाते हैं, सो, अब सड़कों के दिन लद चुके हैं, अब हवा की बात कीजिए। अब दूसरी बात, दो वर्ष पहले राहुल गांधीजी ने कहा था कि आतंकवाद की घटनाएँ भारत में लगातार चलती ही रहेंगी और ये रुकने वाली नहीं है, आप लाख कोशिश कर लीजिए। मोदीजी ने उसी ढीठ आतंकवाद पर ऐसी लगाम कसी कि एक भी आतंकवाद की घटना नहीं हो रही है। दूसरी महत्वपूर्ण बात मोदीजी के समय में किसी भी क्रांति को ज़बरदस्ती रोका नहीं जा रहा है, हरेक को सबकुछ कहने का हक़ दिया जा रहा है। कन्हैया कुमार को बहुत मौक़ा दिया जा रहा है, वे भी बहुत ही प्रभावशाली व्यक्ति बन गये हैं, रोहित वेमुला के नाम पर वे जातिवाद को समाप्त करना चाहते हैं यह बात अच्छी है। दूसरी ओर ऊँची जाति के लोग अपनी बुद्धि के बल पर बहुत कुछ हासिल कर रहे हैं यह भी एक स्वस्थ प्रतियोगिता की निशानी है। लेकिन जीत तो मोदीजी के विचारों की हो रही है। कन्हैया कुमार ने भारत को एकजुट बनाने में बहुत मदद की है और कर रहे हैं और मोदीजी भी यही चाहते हैं, सो क्रांतिकारी और प्रधानमंत्री का अंतिम लक्ष्य देश की प्रगति हो और अलग अलग रास्तों और स्वरों में सभी लोग एक दूसरे के पूरक बनकर देश की भलाई करते हैं तो उसमें बुराई क्या है। लोग भले ही कन्हैयाजी-मोदीजी को अलग अलग या दुश्मन मानते होंगे लेकिन मैं बहुत सोच विचार के बाद यही पाता हूँकि दोनों देश के लिए ही काम करना चाहते हैं। गांधीजी के पुजारी मोदीजी जो बात संघ के बारे में नहीं कह रहे हैं उसका दस प्रतिशत अंश तो कन्हैया कुमार कह रहे हैं। जबकि दूसरी ओर आरएसएस बहुत ही शांति और संयम से जो काम कर रहा है, वह बधाई का पात्र बन जाता है। जबकि इतिहास में ऐसा भी हुआ है कि इमरजेंसी के समय कई सारे नेताओं को जेल में डालने की कारगुजारियाँ चलीं। लेकिन मोदीजी के राज में किसी को भी जबरन जेल में डाला नहीं जा रहा है। क्रांतियाँ अपने स्तर पर चल रही हैं उनको मोदीजी ने खुली छूट दे रखी है, अगर उनको मोदीजी रोकते तो मीडिया रोके जाने वालों को प्रकाश में लाकर मोदीजी की बुराई करता, सो, मोदीजी मीडिया को इस समय पूरी तरह से पस्त कर चुके हैं, इतना पस्त कर चुके हैं कि मीडिया तिलमिला रहा है, छटपटा रहा है कि हम न्यूज कहाँ से लेकर आएँ। अब तो मीडिया की दुकानें बंद होने लगी हैं, एक पत्रकार विवेक गजेंद्र सिन्हा ने दो साल पहले एक बात कही थी कि इस समय सभी लोग पैसा कमाने में लगे हुए हैं। सभी लोग सोलह से अट्ठारह घंटे काम कर रहे हैं सो, किसी को मीडिया के लिए समय निकालने का समय ही नहीं रह गया है। सच बात है आज आप अख़बार पाँच से आधा घंटे तक ही पढ़ पाते हैं, स्वतंत्र वार्ता के संपादक धीरेंद्र प्रतापसिंह ने भी कहा है कि चाय की पहली चुस्की से अंतिम चुस्की तक ही दैनिक अख़बार का जीवन रह गया है, केवल उतना ही समय होता है, चाय ख़त्म होते ही लोग काम पर चले जाया करते हैं। मीडिया को इस मोदीजी के दौर में दरअसल कोई मौत-मसाला नहीं मिल रहा है, जब भी किसी की राजनीतिक हत्या होती है तो टीवी चैनल उसको चार से पंद्रह दिन चला लेते हैं, लेकिन १४० करोड़ की आबादी में अभी भी एक भी मौत ऐसी नहीं है जिन पर मीडिया को मौत का मसाला मिल सके। मौत का मसाला मिलना मीडिया के लिए उत्सव के समान होता है। लेकिन मीडिया को प्रद्युम्न के अलावा किसी का मसाला नहीं मिल रहा है। गौरी लंकेश का अति गंभीर मामला मिला था, लेकिन उस बात को राजनीतिक पार्टियों तक ने तूल नहीं दिया। यह तो लोकतंत्र के लिए भयंकर ख़तरा है। आज आप देखिये विपक्ष या किसी भी पार्टी ने सड़कों पर आंदोलन करना ही बंद कर दिया है, सारे लोगों को यही लगता है कि टीवी पर बहस हो गयी तो काम पूरा हो गया है, पहले दुनिया भर के हस्ताक्षर अभियान चला करते थे, अब तो सबकुछ वॉट्सऐप पर ही पूरा हो जाता है, जिसमें आधा सच और आधा झूठ होता है, इससे स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो रही है, बल्कि लोकतंत्र तो मरता ही चला जा रहा है। जो बग़ावत वॉट्सऐप पर चल रही है वह किसी को भी नज़र नहीं आ रही है। इससे सत्ताएँ बदल रही हैं मगर सारी सत्ताएँ भाजपा के खाते में ही जा रही हैं, क्या यह लोकतंत्र के लिए स्वस्थ होने का परिचय है। सिक्के का दूसरा पहलू यही बतलाता है कि देश कितने सुख शांति से चल रहा है, लोग कहते हैं कि अंबानी और अडानी के एजेंट हैं मोदीजी, अगर इसे सच भी मान लिया जाय तो क्या वी.पी. सिंह के साथ नुस्ली वाडिया नहीं थे, कांग्रेस का राज था तो अंबानी कांग्रेस के साथ थे, उद्योगपतियों का तो यह हाल होता है कि वे जिसके पास लाठी होती है उसकी भैंस बन जाते हैं, सत्ता कांग्रेस की रही तो उनकी चापलूसी और भाजपा की रही तो उद्योगपति उनके गुलाम बन जाया करते हैं। जिधर हरी उधर चरी, सावन के अँधे को हरा हरा ही नज़र आता है, सभी को सत्ताधारियों में ही हरा हरा नज़र आता है। लेकिन मैं कन्हैय कुमारजी की एक बात से सहमत नहीं हूँ वे चाहते हैं कि कॉलेज के स्तर पर ही विद्यार्थियों को राजनीति में आने का मार्ग शुरू करना चाहिए। मेरा कहना है कि जो विद्यार्थी होता है उसका १७ से लेकर ३० साल की उम्र तक खून बहुत ही गरम होता है, जिसके कारण वह हिंसा पर भी उतारू हो जाता है, हिंसा अच्छे काम के लिए भी होती है, लेकिन हिंसा से अपना या दूसरों का नुकसान हो जाया करता है, इसलिए विद्यार्थियों को जयप्रकाश नारायण, अन्ना हज़ारे, मेघा पाटकर की लाईन पर चलकर अहिंसक आंदोलन करना चाहिए। अपने गरम खून को पसीना बनाकर बहाना चाहिए और संघर्ष पर संघर्ष करना चाहिए। सत्रह साल से तीस साल तक युवाओं को पत्रकार, गीतकार, रंगकर्मी, लेखक, बनकर उसमें अपना रौद्र रुप दिखाना चाहिए। नारेबाज़ी लगानी चाहिए लेकिन वह नारे बाज़ी बहुत ही संयमित भाषा में होनी चाहिए। कन्हैया कुमार संघ पर जो बोलते हैं वह गंभीरता कम लिये होता है व्यंग्य या कटाक्ष लिये होता उनसे निवेदन है वे अपने तेवरों को बहुत ही सावधानी से सामने लाएँ। वे यह मानकर चलें कि उनके साथ एक पूरी पीढ़ी बढ़ रही है वे जितना संयमित होकर बोलेंगे देश का दूरगामी भविष्य उतना ही संयमी होगा। उनका धन्यवाद की वे वॉट्सएप वाली भाषा में क़तई बात नहीं करते हैं। अगर कन्हैयाजी गांधीजी सरीखी, या अन्य मज़हबी-धार्मिक बाबाओं सरीखी सुंदर, सुशील, कोमल भाषा में अपनी बात रखते हैं तो देश का कल्याण अवश्य होगा। बाबा अंदर से जैसे भी रहें ऊपर से प्रवचन तो बहुत ही सुशील, सुसभ्य देते हैं।


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