हर शहर का चेहरा बदलने के लिए ओला, ऊबर कार आ गयी है, रिलायंस भी टैक्सी चलायेगा, शहरों का नवाबीपन और चैन इससे उजड गया है, लोगों को और भी बीमारियाँ लगने का अंदेशा हो गया है
ऑटो से पहले 150 रुपया किराया लगता था, अब वहीं पर अब केवल पचास रुपये ओलाकार टैक्सी से लग रहे हैं। सो, लोग अब ऑटो में न जाकर ओला, उबर कार में जा रहे हैं, एक तो कार में जाते हैं तो बारिश से पूरी तरह से बचा जा सकता है, गर्मी से भी बचा जा सकता है, क्योंकि कार में एयरकंडीशन होता है। ओलाकार आने से लोग फ़ोन करके कार को अपने क़दमों के पास, अपने घर के ठीक सामने बुला लेते हैं। ओला कार आने से दो फ़ायदे हो गये हैं। एक तो कार का कम किराया होने से लोग मेहनत ज़्यादा कर रहे हैं, दूर-दूर कार में जाकर व्यापार बढ़ा रहे हैं। क्योंकि एसी कार होती है, और जिस गली के अंदर तक, कोने तक जाना है, ओला कार में जा सकते हैं। दूसरी बात, कार में बैठे रहने से आप बाहर के प्रदूषण से पूरी तरह से बच पा रहे हैं। आज सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि स्कूटर-ऑटो से आपके मुँह में गाड़ियों का धुआँ ज़बरदस्ती फेफडों में घुस जाता है जिससे बाद में जाकर साँस लेने में तकलीफ़ होती है, कार से उतरते हैं तो आप मार्केट में ज़्यादा पैदल चल सकते हैं मगर बाइक या ऑटो से जाते हैं तो जाते-जाते ही थक जाया करते हैं। इसमें यह भी बहुत पड़ा फ़ायदा यह है कि यानी आपके साथ आपकी पत्नी, बच्चा, दोस्त जा रहे होते हैं तो उसका किराया केवल दस या बीस रुपये लगता है, भले ही आपका सौ रुपये लग रहा हो, पहले क्या था कि पच्चीस किलोमीटर की यात्रा करनी होती थी तो पहले ऑटो में जाते थे तो दो सौ रुपये तीन सौ रुपये लग जाया करते थे, लेकिन अब तो आप सौ रुपये में या एक सौ दस रुपये में उसी जगह तक जा सकते हैं। बीच में हैदराबाद के ऑटो वालों का ओला कार आने से पहले इतना ज़्यादा रौब बढ़ गया था कि सभी हैदराबाद के ऑटो वालों ने अपना मीटर ही बंद कर दिया था, मीटर से चलो कहते थे तो मीटर में गड़बड़ी करके बहुत पैसा लूट रहे थे, इस समय हैदराबाद में ईमानदारी से किसी भी ऑटो का मीटर चल ही नहीं रहा है, उनकी भी बहुत सारी मुसीबतें हो गयी हैं, बच्चों की स्कूल की फीस दो हज़ार महीना हो गयी है, अजीब बात देखिये कि एलकेजी के बच्चे की फीस साल की बीस से चालीस हज़ार हो गयी है, जबकि कॉलेज में जाएँ तो नारायणा कॉलेज जैसे प्रतिष्ठित कॉलेज की फीस भी केवल साल भर की चालीस हज़ार रुपया ही चल रही है, यानी एलकेजी और कॉलेज की फीस बराबर कैसे हो गयी है। वाह रे वाह क्या ज़माना आ गया है, इस तरह से देखिये कि पढ़ाई में खुलेआम लूट ही लूट मची हुई है। और बेचारे नौजवान पत्नी पति इस खुली लूट में लुटते ही चले जा रहे हैं। अब फिर आते हैं ओला कार पर, याद रहे सुबह नौ बजे से ग्यारह बजे तक एवं शाम को भी दफ्तर छूटने पर ओला कार का किराया सौ रुपये के बजाय डेढ़ सौ रुपया भी लग सकता है, ऑफिस के समय पर किराया ज़्यादा लगा करता है। ओला कार आने से हर शहर का नवाबीपन पूरी तरह से समाप्त होता चला जा रहा है, पहले हर छोटा शहर सुबह ग्यारह बजे खुला करता था, लेकिन अब ओला कार की सहूलियत की वजह से लोग सुबह पाँच बजे भी कहीं जाना हो तो ओलाकार मैंगवा लेते हैं। पहले क्या था कि डायगोनोस्टिक के लिए लोग सात बजे घर से जाते हुए नज़र आते थे, क्योंकि शुगर, बीपी के लिए पेशाब का इंतेहान सुबह ही कराना पड़ता था, और लोग एयरपोर्ट के लिए जाना होता था तो सुबह चार बजे एयरपोर्ट के लिए रवाना हो जाया करते थे। ओलाकार आने के पहले, हर शहर के ऑटो वाले बहुत ही नवाबों की तरह जीवन जिया करते थे, केवल चार घंटे ऑटो चला लेते थे तो सत्तर साल के ऑटो चलाने वाले भी चार घंटे ऑटो चलाकर जीवन बसर कर लेते थे, लेकिन अब उन्हें ओलाकार आने के बाद उनका नवाबीपन पूरी तरह से छिन गया है, लोग ऑटो में कम से कम जा रहे हैं। अब ओलाकार चार किलोमीटर का २९ रुपया ले रही है लेकिन ऑटो वाले पहले साठ रुपया लिया करते थे। सो, उनकी नज़दीक की सारी सवारियाँ छिन गयी हैं। सो, उनको अब दुगनी मेहनत करनी पड़ रही है, जिससे वे अब चार घंटे के बजाय छह से सात घंटे तक ऑटो चला रहे हैं, इससे हर छोटे शहर का इत्मिनान पूरी तरह से छिन गया है, अब दो लाख ऑटो वाले, और पचास से सत्तर हज़ार ओला कार सभी मिलकर अपनी गाड़ी दौड़ा रहे हैं। बेचारे ये ऑटो और कार वाले जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं तो लोगों के हरेक घर में लोगों का एक हज़ार से लेकर दो हज़ार रुपये का किराया हर महीने बचा पाने में कामयाब हो रहे हैं। अब तो फकाट, फटीचर लोग भी कार में घूम रहे हैं। पैदल आदमी भी कार में बैठ रहा है। अब ओलाकार की डिक्की में भी आप सूटकेस बिना किसी लगेज के अतिरिक्त ख़र्च के रख सकते हैं, नहीं तो ऑटो वाले एक या दो सूटकेस देखते ही उनके मुँह से लार टपका करती थी जिसका वे बीस से पचास रुपया ज़्यादा ले लिया करते थे। ओलाकार में तो पूरी नयी पीढ़ी सफ़र कर रही है। वे एसीकार का पूरा का पूरा मज़ा ले रही है। पहले क्या था कि हैदराबाद में नलगोंडा, महाराष्ट्र के गाँवों से बच्चे आकर ऑटो चलाया करते थे, क्योंकि उसमें तो केवल जान पहचान के आधार पर केवल ढाई सौ रुपये प्रतिदिन का किराया का ऑटो मिल जाया करता था। ढाई सौ रुपये कमाने के बाद आगे का सारा पैसा उसी की जेब में जाया करता था। लेकिन अब ऑटो में बेरोज़गारी कार की वजह से तेज़ी से बढ़ती ही चली जा रही है। लोग अब ऑटो लाइन से तंग आकर इस लाइन को ही छोड़ रहे हैं। पहले तो इनके बहुत मज़े थे,चार घंटे ऑटो चलाकर तीन सौ रुपये कमा लेते थे, एक पौव्वा, यानी शराब का क्वार्टर, और बूंदी-चुडवा लेकर घर जाते थे, ऑटो का एक्सीलेटर चला-चलाकर हाथ दुखता था तो उसका दर्द बीवी को दो चार थप्पड़ मारकर दूर किया करते थे। और पीकर सो जाया करते थे, सुबह से लेकर तीन चार बजे दोपहर तक गणेबाज़ी मारा करते थे, इसको उसको ताका करते थे, औरतों से अदब से बात करके उनको शराफ़त से पटाया करते थे, इसमें चार पाँच साल लग जाते थे, लेकिन सिलसिला जारी रहता था, अब सारा कुछ चला गया है, अब ऑटो का कल्चर ही समाप्त होता चला जा रहा है। ऑटो वाले सुबह से तीन चार बजे दोपहर तक घर पर ही रहते थे तो उनके ही बुजुर्गों की सेवा करते थे, किसी को पट्टी बंधाने ले जाना है, या रोज़ाना ज़रें से मालिश करवाना हो तो ले जाया करते थे। बूढ़े लोगों का इलाज तो लगातार तीन महीने तक चला करता था, वहाँ ले जाया करते थे। वह सारा कुछ सेवा भाव अब छिन गया है, अब उन्हें आठ घंटे तक मेहनत ही मेहनत करनी पड़ रही है। इधर ओला वालों के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है। पहले क्या हुआ था कि हर कार वाला ओला कार से पचास हज़ार रुपया कमा रहा था, तब उन सभी को लगा कि यह तो कम मेहनत में जन्नत ही जन्त्रत है, क्योंकि पचास हज़ार रुपया तो इंजीनियर को भी नहीं मिलता है। इंजीनियर को तीस से पैंतीस हज़ार रुपया ही मिल रहा था, और इंजीनियर को सोलह या बारह घंटे की नौकरी होती है, यहाँ तो १२ घंटे की नौकरी में ही पचास हज़ार रुपया मिल रहे थे, क्योंकि इनसेनटिव यानी कंपनी ऊपर की कमाई दे रही थी, यह देखकर हज़ारों लोग अपनी परमनेंट नौकरी छोड़ कर ओलाकार ख़ुद ही ख़रीद कर चलाने लगे। रोज़ दो हज़ार रुपये कमा रहे थे तो इनकी बल्ले-बल्ले हो रही थी, लेकिन उनको क्या पता था कि यह तो एक मकडी का जाल बुना जा रहा है, फिर उस जाल में जैसे ही हर शहर के तीस से पचास हज़ार नौजवान लोग घुस गये इस धंधे में तो मौक़ा देखते ही कंपनी ने धड़ाम से सारे इनसेनटिव छीन लिये। उनसे इनसेनटिव छीनते ही उनकी कमाई जो पचास हज़ार थी वह सीधे आकर बीस हज़ार या बहुत हुआ तीस हज़ार पर आकर रुक गयी, या नहीं तो उनको पहले जितना पैसा कमाना है तो कंपनी ने कह दिया कि अगर आप बारह नहीं सोलह घंटे तक लगातार कार चलाते हैं तो आपको पहले जितना मिलेगा, यानी कंपनी बैठकर खा रही है, और इनको बुरी तरह से गधा मज़दूरी करने के लिए कोल्हू के बैल की तरह लगा चुकी है, कंपनी को कार की पल पल की ख़बर रखती है, वह मोबाइल पर कार की हरेक लोकेशन पर नज़र रखती है, कोई छोटी सी ग़लती करता है तो उसको डाँटा जाता है। उसको फाइव स्टार के बजाय श्री स्टार ही दिया जाता है, फिर उसकी मज़दूरी भी काटी जाती है। अब तो ओलाकार के ड्राइवरों या फिर उनकार मालिकों के लिए ओलाकार जी का जंजाल बन गयी है जो सेठ लोग छह से आठ कारें ख़रीदकर रखे हुए थे, वे पहले अट्ठारह हज़ार रुपये के ड्राइवर लगाने के बावजूद तीस हज़ार रुपया कमा रहे थे। अब तो जो लोग सुबह आठ बजे से लेकर रात बारह बजे तक लगातार कार चला रहे हैं उन्हें पीठ का भयंकर दर्द केवल ३० साल की छोटी सी उम्र में हो गया है। जो लोग ओलाकार की पहले की पचास हज़ार की कमाई देखकर अपने घर का सोना, ज़मीन बेचकर कार ख़रीदे थे, उनके लिए तो ओला कार गले की हड़ी बन गयी है, अब न निगलते बन रहा है, न उगलते बन रहा है, कार की १६ हज़ार की महीने वारी क्रिस्त उनके सिर पर नाच रही है, कई सारे नौजवान बहुत ही बुरी तरह से फैंस गये हैं इस धंधे में। अब हर इंसान की जान ख़तरे में चल रही है, हर कंपनी उनसे तगड़ा काम लिया करती है, फिर वही कंपनी शेयर बाज़ार में उतरकर पैसा बना लेती है, और उस नौजवान से खून चूसने जैसा काम लेती है, और शेयर बाज़ार से पैसा बनाकर पाँच छह साल में ही कंपनी बंद कर देती है, आज हर तीसरी कंपनी का यही हाल चल रहा है, हर नौजवान इसी तरह के रैकेट में बुरी तरह से फैंस चुका है। अब तो ऐसा हाल हो चुका है कि न ओला वाले चैन से जी पा रहे हैं। या नहीं तो ऑटो वाले चैन से जी पा रहे हैं। बीच में लोगों को तो बहुत मज़ा आ रहा है, लेकिन पब्लिक भी बेचारे इन सभी पर कब तक रहम खा सकती है। अब आने वाले एक या दो साल तक क्या होगा कुछ कहा नहीं जा सकता है, कारों की कंपनियाँ नयी कारें बेचकर पैसा बना रही है, अब ये लोग बीमार पड़ेंगे तो दवाख़ानों की बल्ले बल्ले हो जायेगी। कार में सोलह घंटे एक ही जगह बैठे रहेंगे तो मर्दानगी चली जायेगी तो बीवी का बुरा हाल हो जायेगा। बहुत जल्दी ही इनको भी डिप्रेशन, शुगर, बीपी, माइग्रेन हो जायेगा। नयी पीढ़ी पूरी तरह से बर्बाद हो जायेगी। ओला वाला मज़े लूट रहा है, पब्लिक भी मज़े लूट रही है, मगर बेचारे ओला के ड्राइवर, ऑटो के ड्राइवर मर मरकर जी रहे हैं। भगवान इनको सदबुद्धि दे, क्योंकि अब दूसरा कोई कारोबार या नौकरी भी नहीं रही जिसे पाकर चैन से जिया जा सके। ईश्वर इन सबका प्लीज़ भला कीजिए।