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नौजवानों में जलन कुंठा बहुत बढ गयी है

नौजवानों में कोई महीने के 8 हज़ार कमा रहा है तो कोई महीने के 1 लाख, इससे उनके बीच जलन-बेचैनी-कुंठा बहुत बढ गयी है 

पहले बिरादरी के 500 नौजवानों में कोई एक डॉक्‌टर-इंजीनियर बना करता था। लेकिन अब तो हर दूसरे परिवार में आईटी वाला बच्चा भी पैदा हो रहा है। यहाँ अपने देश में पैसा नहीं मिल रहा है तो ये लोग विदेश भाग रहे हैं। हाल ही में एक पिता मिल गये उन्होंने अपने लडके पर 20 लाख रुपया खर्च किया वह भी कर्ज़ा लेकर। तब भी वह नौकरी ढूँढ रहा है। बेचारे पिता इसी आस में कर्ज़ का ब्याज भरते जा रहे हैं कि बच्चा आज नहीं तो कल एक लाख की नौकरी पा लेगा। लोग दोक्टोरी, इंजीनियरिंग,एम.बी.ए. बच्चे से करवा रहे हैं तो एम.बी.ए. भारत में 2 लाख में भी हो रहा है तो विदेश में यही पढाई 20 लाख रुपये में भी हो रही है। लोग ज्यादा पैसा खर्च करके बच्चे को बहुत ही ऊँचा मुकाम दिलवाना चाह रहे हैं।



सबसे ज्यादा मुशि्कल तो व्यापार करने वाले परिवारों की हो चुकी है। बच्चे को व्यापार में डालते हैं तो वहाँ पर बहुत ही ज्‌यादा मुकाबला हो चुका है। रिलायंस कंपनी ज्‌वेलरी भी बना रही है, चप्‌पल भी, सब्‌ज़ी भी, फाइनांस भी, फिल्‌म भी, कपडे भी, इलेक्‌टॉनिक भी, सबकुछ। तो फिर व्यापार करने के लिए बचा ही क्या रह गया है? जो नौजवान व्यापार कर रहे हैं वे भी पछता रहे हैं कि क्या किया जाए? हर व्यापारी आज महीने के कम से कम एक लाख रुपया तो कमाना ही चाह रहा है। एक नौजवानों की पीढी तैयार हो रही है जो शहर के बीचों बीच अपना किराये का ही सही, मकान लेना चाहती है। नयी पीढी उस मकान का किराया 30-40 हज़ार रुपया देने को तैयार है, लेकिन वह ठाठ से जीना चाहती है। क्‌योंकि उसको अचानक पता चलता है कि मेरा चचेरा भाई आई-दोक्टोरी में कम से कम एक लाख रुपया महीने के कमा ही रहा है। तो मैं क्‌यों पीछे रहूँ।



एक लडका मिल गया। उम्र 22 साल, माता-पिता भी बेरोज़गार। वह एक अस्पताल में वॉड© बॉय है। बहुत सुंदर है, गठीला है। लेकिन लोगों की टट्टी-पेशाब उठा रहा है। वह क्या सोचता होगा जब वह देखता है कि मेरे जैसा सुंदर मर्द 1 लाख रुपया कमा लेता है, मैं तो केवल पाँच हज़ार रुपया ही कमा पा रहा हूँ। जबकि उसका ममेरा भाई इस समय अमेरिका जाकर वापस आया है। वहाँ वह महीने में डेढ लाख रुपया कमा रहा है। उसका ममेरा भाई जब भारत आया तो उसने खटाखट एक कार ली 8 लाख रुपये की। एक घर बुक कराया 45 लाख रुपये का। उसके माँ-बाप भी बहुत ही गरीब थे, उनको तो वह घर महल से भी ब{ढया लगा। लेकिन इस बेचारे भाई पर क्या गुज़रती होगी, जो पाँच हज़ार की नौकरी कर रहा है।
एक बात हम बहुत qज़दगी जीने वालों से पूछते हैं कि जो जहाँ रह जाता है वह वहीं रह जाता है। क्या यह बात गलत है?अगर वह होशियार होकर सही समय पर सही निण©य ले लेता है तो उसकी qज़दगी बन जाती है। नहीं तो जहाँ का वहीं रह जाता है। सारा जीवन कï से गुज़र जाता है। आज हम भारत के नहीं रहे। आज हमारा परिवार विश्व भर में फैल गया है। जो लडका एक छोटे से कमरे में रहता था। पेशाब पायखाना भी उसी कमरे के भीतर ही था। वही लडका जब पढ-लिख जाता है तो उसका दफ्‌तर सपनों जैसा होता है। ज़मीन पर फिलसते माब©ल-टाइल्‌स। उसका 30 हज़ार का सूट-बूट, शरीर से आती इत्र की बहुत ही मोहक खुशबू। बहुत ही सलीके से उसके मुँह से निकलते शब्‌द। होंठ लाल, चेहरा फेशियल किया हुआ, करीब 3 हज़ार रुपये का चश्मा। करीब 10 हज़ार गज़ का बडा सा हॉल वाला दफ्‌तर उसका हो जाता है। देखते-देखते बच्चे कहाँ से कहाँ पहुँच रहे हैं। लेकिन उसका रिश्तेदार आज भी माल ढोता है। कोई माल गोदाम में रखना होता है तो नौकर नहीं होने पर खुद ही थैला उठा लेता है। वही पसीना, वही संघष©। वही राम कहानी।
आज शादी करते समय खानदान की बात कोई करता है तो लोग हँस रहे हैं कि आप कौनसे ज़माने में जी रहे हैं। आपका खानदान तो सारा विश्व ही हो चुका है। एक शादी तय हुई, केवल चार दिन में। लडकी थी हैदराबाद की। लडका था बनारस का। दोनों आ°स्ट्रेलिया के सिडनी में ही नौकरी कर रहे थे। खास बात देखिए कि दोनों का घर सिडनी की एक ही कॉलोनी में था। दोनों की चैqटग चली। पता चला कि दोनों के विचार मिल रहे हैं। दोनों एक ही जाति के निकले। वो दोनों इतने खुश हो गये कि पता ही नहीं चला कि इतना तेज़ी से यह सब कैसे हो रहा है।

दोनों ने अपने-अपने माता-पिता को फोन लगाया, दोनों के माता-पिता सिडनी पहुँच गये। चार दिन के भीतर शादी हो गयी और दोनों हनीमून पर भी जम©नी चले गये। दादा-दादी ने  पूछा कि शादी करने के पहले क्या दोनों की जन्मपत्री मिलाई थी तो दोनों के माता-पिता ज़ोर-ज़ोर से हँसने लग गये, मन ही मन में सोचा कि जन्मपत्री नहीं मिलने से माता-पिता की तो दो शादियाँ टूट गयी थीं, आजकल तो जन्मपत्री पुरानी बात हो गयी, अब तो पैसा ही सबकुछ हो चुका है, दोनों कमाते हैं इंजॉय करते हैं तो इसमें हमें तो किसी तरह की बुराई नहीं दिखती है। माता-पिता यह कहानी बहुत शान से कहते फिर रहे हैं, अरे भाई शादी सिडनी में हुई, हनीमून जम©नी  में, कभी देखा था राजकपूर की संगम फिल्‌म में विदेश को। आजकल तो बहुत ही मामूली बात हो चुकी है। सारी दुनिया घूमी जा सकती है। सारा कुछ स्वग© जैसा ही दिखता है। कितना प्‌यारा-प्‌यारा सा लगता है।


पढने में हर कोई अच्‌छा नहीं होता है। वैसे लोग सोच रहे हैं कि मेरा बच्चा तो एकदम कचरा साबित हो रहा है। मैं ऐसा क्या करूँ कि उनको लॉटरी लग जाए। इसमें माता-पिता को बहुत ही समझदारी से काम लेना होगा। कम से कम उन्हें अपने बच्चों को मरने नहीं देना चाहिए। बच्चा कमज़ोर हो तो माता-पिता को ही पैसा ऐसी जगह पर लगाना चाहिए कि कल को बच्चा समाज में बेरोज़गार कहलाता न फिरे। हम क्या करें? धीरे-धीरे ज़मीन में पैसा डालिए, जो प्‌लॉट 3 लाख में बिक रहे हैं उन्हें खरीदिये। उस प्‌लॉट को किस्त पर लीजिए। फिर दूसरा प्‌लॉट दो साल बाद ही ले लीजिए।  उस पहले वाले प्‌लॉट को 8 साल के बाद 8 लाख में बेचिये। उससे 5 लाख कमाइये। फिर उस पाँच लाख में से तीन लाख एफ.डी. कराइये, उसका ब्याज खाइये। शाम में दूध पीजिए, मलाई खाइये, खुलकर डकार मारिये। सुबह बादाम खाइये। केवल दो लाख ही अगली यानी तीसरी ज़मीन में डालिए। ज़मीन 2 लाख की मिलेगी, ज़रा दूर मिलेगी। फिर दूसरा वाला बेचिए। ऐसे करते-करते कम से कम दस छोटी-छोटी ज़मीनों के मालिक बनिए। इस तरह दस साल के भीतर आप कम से कम 15 लाख रुपया कमा सकते हैं। ज़मीन के दाम पाँच साल तक के लिए गिर सकते हैं, उसके बाद ज़मीन में जान आ जाती है, क्‌योंकि जनसंख्‌या बढती ही चली जा रही है, लोग जहाँ चाहो वहाँ बसते ही चले जा रहे हैं। सो, भरोसा रखिए कुछ लंबा काम सोचकर चलते रहिए। ज़मीन किसी पुराने और मशहूर बिल्‌डर से ही लीजिए। वरना धोखा खा सकते हैं। एक स‚ान मिल गये कहने लगे कि आज से 9 साल पहले मैंने अलवाल के इलाके की ज़मीन 8 लाख में 500 गज़ ली होती तो उसका आज मुझे कम से कम 45 लाख रुपया आ सकता था। सो शहर के 40 किलोमीटर के भीतर की ज़मीन बेकार नहीं जाती है, उससे 8-10 साल बाद कम से कम 10-20 लाख रुपया ज़रूर कमाया जा सकता है।
नहीं तो शेयर बाज़ार में डालिये। लंबे समय के लिए। वहाँ से हर दूसरे साल कुछ न कुछ लाभ तो मिलता ही रहेगा। यहाँ पर भी आप लंबे समय का काय©क्रम बनाकर कुछ हासिल कर सकते हैं। एक स‚ान मिल गये, कहने लगे कि आप एक साथ छह मनी बैक इंश्योरेंस पॉलिसी लीजिए। हरेक साल एक-एक करके छह पॉलिसियों में शरीक होईए। पाँच साल के बाद जो पैसा मनी बैक में हर साल आता रहेगा। उसी से आप सभी पॉलिसियों का प्रीमियम भर सकते हैं। बस शुरू के पाँच साल में परेशानी होगी। इससे होगा यह कि परिवार को सुरक्षा मिलेगी। पैसा हाथ में रहेगा तो पैसे से आप बच्चे की फीस भर सकते हैं। एक समय ऐसा आता है कि पैसा हाथ में खेलते रहना चाहिए। पैसा हाथ पर खेलता है तो इतना सुख मिलता है कि रात हो या दिन पत्नी भी खुश आप भी बेहद खुश। दोनों मिलकर यह गीत गा सकते हैं {झलमिल सितारों का आँगन होगा रिम{झम बरसता सावन होगा ऐसा सुंदर सपना  अपना जीवन होगा.....। कभी व्यापार में स्लैक (धीमा) पीरिड़ भी आ जाता है वैसे में मनी बैक पॉलिसी एक ठंडी हवा के झोंके की तरह बनकर आती है।
बच्चों की ज़िंदगी को ऐसे सँवारना चाहिए, जिससे कि उनको भी परेशानी न हो, और अपना जीवन भी आराम से चलता रहे। वरना वह बेचैन हो रहा है, आप भी परेशान हो रहे हैं कि मेरे बच्चे का क्या होगा, तो ऐसे तो बच्चे का जीवन अँधकारमय हो सकता है।  अगर आपकी 8-10 ज़मीनें हो जाती हैं तो बच्चा ही आगे चलकर ज़मीनों के व्यापार में लग सकता है। कई लोग इसी तरह से करोडपति तो क्या अरबपति भी बन चुके हैं। ज़मीन का ऐसा होता है कि उसके दाम तो बैठे-बैठे बढते ही रहते हैं। आपको वहाँ कुछ नहीं करना होता है। आपको कौनसा वहाँ जाकर पत्थर फोडना या ग–ा खोदना है। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि पाँच साल ज़मीन सुस्त रहती है, लेकिन जब ज़मीन पैसा देती है तो छप्‌पर फाडकर पैसा देती है। भरोसा नहीं होता, तो सुनिये, बंजारा हिल्‌स की ज़मीन1975 में 400 रुपये गज़, और बाद में 1990 में 40 हज़ार रुपये गज़। लोग बोमडियाँ  (पुकारते रह गये) मारते-मारते रह जाते थे कि अरे भाई ले लो भाई, ले लो भाई, बंजारा हिल्‌स की ज़मीन 400 रुपये में ले लो भाई। लोग कहते थे अरे जाने दो यारे, क्या फालतू की बात करते हो, कौन लेगा वो पहाडों पर जाकर। क्या उल्लु समझा है क्या हमको। हमारे चारमीनार के घासी बाज़ार में देखो, कितना अच्‌छा रेट आ रहा है, सुबह-सुबह मैं ही मिला क्या बेवकूफ बनाने को, आज देखिए, बंजारा हिल्‌स कहाँ है और घासी बाज़ार का क्या रेट चल रहा है। समय बदलते देर नहीं लगती, बस संयम से काम लेना चाहिए। पंद्रह साल में ज़िन्दगी ही बदल जाती है ज़मीन में पैसा डालने से। जो ज़मीन आज फालतू लग रही है उसपर पैसा लगाइये। लोग कहते हैं कि पहले मुशीराबाद, चिक्कडपल्ली यह सब जंगल हुआ करते थे। आज देखिये जन्नत है जन्नत।
अब, बच्चों पर अलग तरीके से सोचने का भी समय आ चुका है। छोडिये, इंजीनियर-डॉक्‌टर-आईटी, बेचारा बच्चा वहाँ जाएगा तो उसे 24 में से 18 घंटे तो काम ही करते रहना पडेगा। मर-मरकर जिएगा। विदेश जाएगा तो बच्चे का एहसास चला जाएगा। बच्चे का नाम पुकारकर, उसका स्पश© पाकर न जाने कितने महीने हो जाएँगे। हमारे साथ रहेगा, पास रहेगा तो कितना अच्‌छा रहेगा। कुछ हटकर ज़रूर सोचिए। बच्चे को अपने विश्वास में लीजिए। एक बात से हम बात खत्म करते हैं कि आज आप बच्चे को डॉक्‌टर बनाने में 40 लाख खर्च करते हैं। उसके बाद बच्चा उसी 40 लाख को वसूलने में पेशेंट का शोषण करता है। वह जल्‌द से जल्‌द 40 के 80 लाख कमाना चाहता है। इससे पूरा तंत्र ही खराब हो जाता है। दुनिया से इसी तरह इंसानियत खत्म होती चली जा रही है। जो है उसी में मस्त रहिए, धीरे-धीरे आगे ब{ढए।  

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