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हिंदुस्तान को बेहतर कर रहे है मोदी

पिछले चार साल से मैं हिंदी मिलाप में छप रहे रेड एलर्ट कॉलम को रोज़ाना पढ़ता रहा हूँ, इसमें आत्महत्याएँ और हत्याओं के बारे में ख़बरें आया करती हैं। नोटबंदी के पहले हरदिन कम से कम दो लोग या चार लोग आत्महत्या करते थे, वह भी पैसे की तंगी के कारण आत्महत्या करते थे, इसमें अधिकतर लोग कर्जदेनेवालों के सताये जाने के कारण आत्महत्या करते थे। कर्ज देने वाले इनको दस प्रतिशत ब्याज पर पैसा दिया करते थे और रोज़ाना पैसे लेने छाती पर बैठ जाया करते थे, पैसे न दो तो हलक में हाथ डालकर पैसे निकालने जितनी गंदीगालियाँ दिया करते थे।

हमारी आत्मा भी तड़प जाये इस तरह से सताया करते थे। मोहल्ले के बीचोंबीच ठहराकर चप्पलों से मारा करते थे, हर सप्ताह इस तरह की ख़बरों के माध्यम से कम से कम हर सप्ताह अट्ठारह लोगों के आत्महत्या करने की ख़बर छपाकरती थी। मगर अब नोटबंदी के बाद सप्ताह में केवल दो या तीन आत्महत्याएँ ही पैसे की तंगी के कारण हो रही हैं। मोदीजी ने इन बेसहारा ग़रीब लोगों को जो भारी ब्याज पर पैसा उधार लेकर आत्महत्या करते थे, उन लोगों को बिना सेक्यूरिटी के एक लाख रुपये लोन देना शुरू किया जिससे उन्होंने सबसे पहले यह क़र्ज फेड दिया। और अब ये लोग इस एक लाख से अपने जीवन को दोबारा पटरी पर ला रहे हैं। सो, नोटबंदी के बाद यह आत्महत्याएँ बहुत ही कम हो गयी है, पैसे की तंगी के चलते मरने वाले बहुत ही कम हो गये हैं, पहले अट्ठारह मरते थे, अब केवल पाँच लोग मर रहे हैं। यानी हर सप्ताह पंद्रह लोग आत्महत्या करने बंद कर चुके हैं, यह सिर्फ़ मोदीजी की नोटबंदी के कारण ही हो पाया है। गरीब कम से कम आत्महत्या तो न करें यह प्रधानमंत्रीजी की बहुत बड़ी जीत है। हम बधाई देते हैं कि मोदीजी ने नोटबंदी करके लोगों की जान बचाई है। नोटबंदी के बाद में अब हर दूसरा व्यक्ति ज़मीन पर उतर चुका है, वरना बाज़ारवाद के कारण वह औकात से कम था, लेकिन उसकी इच्छाएँ आसमान छू रही थीं, अब लोग पैसे की कमी से जीवन की असलियत से वाकिफ हो गये हैं और जो है उसी में गुजारा कर रहे हैं। नोटबंदी के बाद से इंसान का बहुत अच्छा चरित्र सामने आ रहा है, हरेक
इंसान अपनी जड़ों की ओर लौट रहा है। पैसे का वहशीपन, पैसे की अथाह भूख कम हो रही है, लोग अब इन्टेंट मनी की असलियत को मानकर मेहनत कर रहे हैं। और सादा जीवन जीने का बहुत अच्छा प्रयास कर रहे हैं। अब उधार पर पैसा देनेवाले, भारीब्याज पर पैसे देनेवाले कारैकेट जोसारेदेश के हर गली मोहल्ले में फैलाहुआ है, वह कम हो रहा है, लोगों को अब कम से कम प्रताड़ित किया जा रहा है, क्योंकि नोटबंदी से सूदखोर भी समझ चुके हैंधन को जमा करना बेकार है क्योंकि किसी भी समय दो हज़ारया पाँच सौ या सौके नोट बंद हो सकते हैं। पहले लोग नोटों के बंडल थपियाँ बनाकर अलमारियों में रखा करते थे, लेकिन अब ज़्यादा धन कमाने की चेष्टा भी नहीं कर रहे हैं। कलयुग में सतयुग आ रहा है यूँ समझ लीजिए। हैदराबाद में ही एक सप्ताह के भीतर एक खेप में चार करोड़ रुपये के पुराने नोटों के बंडल बरामद हुए, दूसरी खेप में साठ करोड़ रुपये पुराने नोटों के बरामद हुए। मैंने तो पूरे जीवन एक साथ इतने पैसे एक साथ नहीं देखे हैं, आप बताइये क्या साठ लाख देखकर जीभ लपलपाती है, मुँह से लार टपकती है, सो, आप ही देखिये कि लोगों के पास अभी भी कितना सारा काला धन पड़ा हुआ है। और यह धन निश्चित रूप से गरीबों का खून चूसकर ही कमाया गया था, रिश्तेदारों को मरने के लिएछोड़कर कमाया गया है, गरीबों के अवसरों का गला दबाकर, उनकीप्रतिभा के कमसे कम पैसे देकर, उनको मुख्यधारा में आने से बुरी तरह से रोकने के कारण यह काला धन इकट्ठा हुआ था। कबीर और गांधी का देश कितनी दरिंदगी पर उतारू हो गया था, आप ही देखिये। नोटबंदी के बाद लोगों के बात करने की धौंस भी ज़रा सा कम हो गयी है, अब लोग जो है उसी में शांति से जीने की बात कर रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि मोदीजी ने नोटबंदी करके हमें बर्बाद कर दिया, एक शताब्दी वे हमें और हमारे देश को पीछे लेकर चले गये, एक शताब्दि वे लोग पीछे चले गये जो पैसे को ईश्वर मान रहे थे, पैसा क्या रुक गया लोगों को लगा कि जैसे जीवनही ख़त्म हो गया, पैसा तो हाथ का मैल हुआ करता है, आप हाथ के मैल को सतलड़े काहार बना लेंगे, आप हाथ के मैल को बंगलों में तब्दील कर लेंगे, आप उन सिद्धांतों को लात मारेंगे जिसमें लिखा गया है कि साई इतना दीजिए जा में कुटुंब समाय मैं भूखान रहूँसाधु भी भूखान जाये, बस जीवन में इतने ही तो धन की ज़रूरत थी, इससे आगेनिकल गये तो आप ही पछताएँगे, और जो पैसे के दरिंदे थे तो वह तो पछताए ही, पहले जो अमीर थावह अमीर बनता जा रहा था, जो गरीब थावह गरीबी की गर्त में चला जाता जा रहा था, यह बात आज से नहीं इंदिरा गांधीजी के ज़माने सेअमल में आ रही थी, लेकिन रुक नहीं रही थी, बेतहाशा बढ़ती ही जा रही थी, उस पर इस नोटबंदी से पूरी तरह से नहीं लेकिन ८० प्रतिशत लगाम लग गयी है। जो गरीब था, उसे तो नोटबंदी से फ़र्क ही नहीं पड़ा, जबकि जो चरित्रवान अरविंद केजरीवाल रहे पता नहीं कैसे नोटबंदी के खिलाफ़ बोले तो हाथ आनेवाली पंजाब की सत्ता भी जाती रही, कांग्रेस ने नोटबंदी के खिलाफ़ कहा तो उत्तरप्रदेश से सत्ता उनकी जाती रही, लोगों ने जो धमाकेदार तरीके से नोटबंदी का साथ दिया वह उसी रूप में अंकित होगा जैसे कि भगवान राम ने राज्याभिषेक को त्यागकर पिता के वचन को मानवनप्रस्थान करके निभाया, जय श्रीराम, उन्हीं मर्यादा पुरुषोत्तम की राह पर चलते हुए यूपी के लोग वहाँ रामराज्य ले आये। अब देखिये कि योगीजी कितनी तेज़ी से यूपी को बदल रहे हैं, हम जब यूपी पहले जाते थे, तब वहाँ पर हरेक कारेट तय था, सरकारी चपरासी को ३ लाख दहेज़ में मिलना तय था, डॉक्टर को पचास लाख से लेकर एक करोड़ मिलना तय था, यह दहेज़ का पैसा आता कहाँ से था, बेचारे भ्रष्टाचार करके ही लाया करते थे, यह चक्रव्यूह यूपी बिहार से लेकर भारत भर में फैला हुआ था, उससे हुआ यह कि लोग रिश्वत देकर डॉक्टर बनते थे, इंजीनियर बनते थे, और वही रिश्वत का पैसा ससुराल पक्ष से वसूलते थे, वह ससुराल वाला भी कमचालक नहीं था, वह कहीं दूसरे रास्ते से भ्रष्टाचार करके पैसा लाता था, सो, पूरी तरह से भ्रष्टाचार चरम पर था, और सभी भ्रष्टाचारी बहुत ही मुस्कुराते हुए दिन भर भोजन करके टूथपीक से मुँह साफ़ करते जीवन पूरे मज़े से गुजार रहे थे, अब नोटबंदी के बाद अब यह भी कम होगा, एक बहुत ही कर्मठता से भरा एक नया वर्क कल्चर तैयार होगा, जिससे देश का सही विकास होना शुरू हो जायेगा। योगीजी हरेक मामले की तह तक जा रहे हैं और हरेक की हड़ी पसलीएक कर रहे हैं। उससे हुआ यह कि हम ज़मीदोज़ कर दिये गये समाजवादी लोग अब गर्व से अपना सिर उठा पा रहे हैं, वरना हम १९९२ के बाज़ारवाद के बाद शर्म से झुकाये अपने सिर २४ साल से लगभग भूमिगत हो गये थे, कि वो सतयुग कब आयेगा और इंसान द्वारा इंसान को भोगने का यह घोर कलयुग कब यहाँ से दफ़ा हो जायेगा। वो ईमानदार लोग जो करोड़ों, करोड़ों, करोड़ों की संख्या में है, उनको दोबारा सुनने के लिए लोग, अब जाकर तैयार हो रहे हैं, ईमानदार लोग बार-बार स्थानांतरित कर दिये जाते थे, क्योंकि जो रिश्वत आती थी, वह पूरे दफ्तर में बँटाकरती थी, आज़ादी के बाद से जो भी ईमानदारी से जिए उन्हें हम सैल्यूट करते हैं कि उन्होंने कभी अपने चरित्र को गंदा नहीं किया। मोदीजी शायद देश के पहले प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने इस पद पर आने के बाद सबसे ज़्यादा जनसभाएँ कीं, गांधीजी ने भी देश को समझने के लिए पहले यहाँ के लोगों को समझने की कोशिश की थी, वातानुकूलित कमरों में बैठने के बजाय मोदीजी ने देश के लिए पसीना बहाना ठीक समझा और देश के लिए यही सबसे अच्छी बात रही, हमें ऐसे भरोसेमंदप्रधानमंत्री मिले हैं जो गरीबों का भला कर सकते हैं और २०२२ तक सभी को घर दे सकते हैं हम सत्तर साल से यही गीत गा रहे हैं, आज भी हम १९५० के दशक का ही गीत गा रहे हैं, चीनों अरब हमारा हिन्दोस्ताँ हमारा, रहने को घर नहीं है, सारा जहान हमारा, वोली भी छिन गयी है, बेचे भी छिन गयी है, सड़कों ये घूमता है अब कारवाँहमारा, जितनी भी बिल्डिगेंथी सेठोंने बाँट ली हैं, फुटपाथ बंबई के है आशियाँहमारा, सोनेकोहम कलंदर आतेहैंबोरीबंदरहर एक कुली यहाँका है राज़दा हमारा..। आज भी ग़रीब फुटपाथ पर सोता है तो पुलिसवाला पीट पीटकर हमें उठाता है, आज़ादी के सत्तर साल बाद वही राजकपूर आज फुटपाथ पर सो रहा है, जो ईमानदारी का मेडल बेच देता है। नोटबंदी के बाद पहली बार आशा जागी है, क्या यह आशा सच में बदलेगी, या फिर से ग़रीब को छला जायेगा, मोदीजी के क़दम जिस तरह से मज़बूती से आगे बढ़ रहे हैं उससे तो लगता है, एक नये भारत के निर्माण के हम भी साक्षी होंगे, हम पत्रकारों के लिए सारे भारत के वासी एक समान होते हैं, हम हरेक को एक ही नज़र से देखते हैं, क्योंकि हम अमीरों की गोद में जाकर बैठ जाएँगे तो फिर देश का ख़ैरख्वाह कौन होगा, तो फिर तो हम अपनीहीप्रगति कर लेंगे, जिस तरह रॉबर्टवाडा ने किया था, दामाद की वजह से सत्ता गयी तोमोदीजी ने दिल्लीकोन अपने भाई को साथ लाया न ही माता को ही साथ लाया, झोला लेकर आएँगे, झोला लेकर चले जाएँगे, और जाएँगे तो ज़रूर गरीबों को बसाकर जाना, हाल ही में तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआरनैपत्रकारों का महत्व देश के सैनिकों जितना बताया है, चलिए हमारा प्रमोशन हुआ हम सैनिक की श्रेणी में आ गये हैं। इसलिए हम पत्रकारों को समझना होगा कि हिंसा तभी ख़त्म होगी जब हरेक न्याय मिलेगा, हरेक को अवसर मिलेगा, यह समय मोदीजी की आलोचना का नहीं, मोदीजी का साथ देने का समय है, इसलिए हम मोदीजी को हौसला देते हैं कि वे आगे बढ़कर गरीबों की मदद करें।




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