हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ED की गिरफ्तारी पर अपना बयान दे दिया गया है! सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में स्पष्ट किया कि मनी लॉन्ड्रिंग केस में कोई आरोपी अगर कोर्ट के समन पर हाजिर हुआ है तो उसे प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट की धारा-45 के तहत जमानत की दोहरी शर्त पूरी नहीं करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट के सामने दो कानूनी सवाल थे कि क्या स्पेशल कोर्ट अगर पीएमएलए एक्ट के तहत बनाए गए आरोपी को समन जारी करता है तो क्या वह बेल के लिए आवेदन देगा? अगर हां तो क्या बेल के लिए पीएमएलए की धारा-45 के तहत दोहरी शर्त लागू होगी? दरअसल, पीएमएलए एक्ट की धारा-45 के तहत प्रावधान है कि मनी लॉन्ड्रिंग केस में आरोपी को तभी जमानत दी जा सकती है जब वह दोहरी शर्त को पूरा करे। यानी पहली नजर में यह दिख रहा हो कि आरोपी ने अपराध नहीं किया है और दूसरा यह कि जमानत के दौरान अपराध होने की आशंका न बची हो। यह कंडिशन काफी सख्त है और इसी कारण पीएमएलए केस में गिरफ्तारी के बाद जमानत मिलना आसान नहीं होता।
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सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए. एस. ओका की अगुआई वाली बेंच ने अपने अहम फैसले में कहा है कि पीएमएलए केस में अगर कोई आरोपी है और उसे स्पेशल कोर्ट ने समन जारी किया है। बता दें कि कई बार सुप्रीम कोर्ट पिछले कई फैसलों में ईडी पर सख्त रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों 20 मार्च 2024 को कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग केस के ट्रायल में अगर देरी हो तो जमानत दिए जाने पर रोक नहीं है।मनी लॉन्ड्रिंग केस में आरोपी को तभी जमानत दी जा सकती है जब वह दोहरी शर्त को पूरा करे। यानी पहली नजर में यह दिख रहा हो कि आरोपी ने अपराध नहीं किया है 4 अक्टूबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ईडी के समन के बावजूद सहयोग न करना गिरफ्तारी का आधार नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ईडी को आरोपी की गिरफ्तारी के समय लिखित में गिरफ्तारी का आधार बताना चाहिए। वह स्पेशल कोर्ट में पेश होता है तो जब उसकी पेशी होती है तो यह माना नहीं जाएगा कि वह कस्टडी में है। ऐसे में आरोपी के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह जमानत के लिए दोहरी शर्त को पूरा करे। बल्कि स्पेशल कोर्ट उसे यह कह सकता है कि आरोपी बेल बॉन्ड भरे।
सीआरपीसी की धारा-88 के तहत जब अदालत किसी मामले में आरोपी को समन जारी करता है तो आरोपी की पेशी के बाद कोर्ट इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कि आरोपी आगे भी कोर्ट में पेश होता रहेगा उससे बेल बॉन्ड भरवाता है। यह उन मामलों में होता है जिनमें आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई होती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले में बेल बॉण्ड स्वीकार करते समय पीएमएलए एक्ट की धारा-45 के तहत दोहरी बेल शर्त का जो सख्त प्रावधान है वह लागू करना अनिवार्य नहीं है। मामला तारसेम बनाम ईडी का है। पंजाब के जालंधर जोन स्थित ईडी ने आरोपी के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया था। आरोपी के खिलाफ कोर्ट ने समन जारी किया था। समन के बाद उसने अदालत के सामने बेल बॉन्ड भरा और कहा कि पीएमएलए एक्ट की धारा-45 के तहत उस पर दोहरी शर्त लागू नहीं होती है। ईडी ने कहा कि जब मामला पीएमएलए का है तो धारा-45 के तहत दोहरी शर्त लागू होगी। अग्रिम जमानत के लिए आरोपी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन वहां से राहत नहीं मिलने पर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की।
पीएमएलए कानून बेहद सख्त है और इस मामले में आरोपी को आसानी से जमानत नहीं मिलती है। हालांकि कई बार सुप्रीम कोर्ट पिछले कई फैसलों में ईडी पर सख्त रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों 20 मार्च 2024 को कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग केस के ट्रायल में अगर देरी हो तो जमानत दिए जाने पर रोक नहीं है। 4 अक्टूबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ईडी के समन के बावजूद सहयोग न करना गिरफ्तारी का आधार नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ईडी को आरोपी की गिरफ्तारी के समय लिखित में गिरफ्तारी का आधार बताना चाहिए। अब जमानत की दोहरी शर्त के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम व्यवस्था दी है। इन फैसलों का आने वाले दिनों में इससे संबंधित केसों में नजीर साबित होगा और स्थिति ज्यादा साफ हो पाएगी।
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