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आखिर सौर तूफान के आगे कैसे खड़ा हुआ भारतीय इसरो?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर भारतीय इसरो सौर तूफान के आगे कैसे खड़ा हो गया! सौरमंडल में हाल ही में कुछ सोलर तूफान देखने को मिले हालांकि इन तूफान से भारतीय सैटेलाइट को कुछ भी नुकसान नहीं हुआ। बता दें इस तूफान को लेकर इसरो पहले ही अलर्ट मोड में था। दरअसल 8 और 9 मई को जो शक्तिशाली सौर तूफान पृथ्वी से टकराया वो पिछले बीस सालों में सबसे ज्यादा शक्तिशाली तूफानों में से एक था। इस सौर तूफान से न केवल पृथ्वी बल्कि ग्रह के आस-पास के बुनियादी ढांचे और यहां तक कि चंद्रमा पर भी असर पड़ने की आशंका थी। इस तूफान के दौरान सूर्य से निकले प्लाज्मा के कारण पृथ्वी और चंद्रमा के आसपास के अंतरिक्ष यानों को भी काफी प्रभावित होना पड़ा। इन प्लाज्मा विस्फोटों को कोरोनल मास इजेक्शन (CME) कहा जाता है और ये पूरे आंतरिक सौर मंडल में फैल गए। भारत के करीब 50 उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में काम कर रहे थे और इनकी सुरक्षा खतरे में थी। बता दें कि दो साल पहले फरवरी 2022 में सूर्य से आए एक भू-चुंबकीय तूफान की चपेट में आने के कारण 35 से अधिक स्टारलिंक उपग्रह कुछ ही दिनों पहले लॉन्च होने के बाद पृथ्वी पर वापस गिरने लगे थे। सूर्य पर होने वाली गतिविधियों के कारण वहां से प्लाज्मा और अन्य पदार्थ पूरे सौर मंडल में फैल जाते हैं, जिससे सौर तूफान बनता है। यह तूफान सूर्य ज्वाला, कोरोनल मास इजेक्शन सीएमई या सौर हवा के रूप में ऊर्जा छोड़ता है।जब ये आवेशित कण पृथ्वी के वायुमंडल से टकराते हैं, तो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ ये परस्पर क्रिया करते हैं। इस वजह से भू-चुंबकीय तूफान पैदा हो सकते हैं।ये तूफान पृथ्वी पर कई चीजों को प्रभावित कर सकते हैं, जिनमें उपग्रह संचार, बिजली ग्रिड और जीपीएस नेविगेशन सिस्टम शामिल हैं। साथ ही, बढ़े हुए विकिरण के कारण अंतरिक्ष यात्रियों और हवाई जहाज के यात्रियों के लिए भी खतरा पैदा हो सकता है।

कर्नाटक के हसन और मध्य प्रदेश के भोपाल में इसरो की मास्टर कंट्रोल फैसिलिटी एमसीएफ ने चौबीसों घंटे निगरानी कर हमारे ग्रह की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों की रक्षा की।एमसीएफ उपग्रहों को उनकी कक्षा में स्थापित करने, अंतरिक्ष में उपकरणों के परीक्षण और उपग्रहों के पूरे जीवनकाल में उनके संचालन से संबंधित कार्यों को पूरा करता है। इन कार्यों में निरंतर ट्रैकिंग, डाटा प्राप्त करना और उपग्रहों को निर्देश देना शामिल है।भू-चुंबकीय तूफान के संकेतों पर नजर रखते हुए एमसीएफ की टीम सतर्क रही और सूर्य से निकलने वाले पदार्थ पृथ्वी की ओर बढ़ने पर उपग्रहों की रक्षा के लिए तेजी से काम करने के लिए तैयार थी।जब सौर तूफान पृथ्वी के नजदीक आया, तो अंतरिक्ष यानों के व्यवहार में कुछ बदलाव देखे गए, जिनसे चिंता बढ़ गई। खासकर जिन उपग्रहों में एक तरफ ही पैनल लगे थे, उनमें गति बनाए रखने वाले पहियों की गति और विद्युत धाराओं में बदलाव देखा गया। इस वजह से एमसीएफ की टीम ने उपग्रहों को निर्देश दिए कि वे अपने आप को दुरुस्त करें।

जैसे-जैसे ऊर्जा बढ़ती गई, जिससे उपग्रहों को नुकसान पहुंचने का खतरा था, इसरो के पहले से किए गए बचाव के उपाय काम में आए। सटीकता और दूरदर्शिता के साथ, एहतियात के तौर पर कुछ सेंसरों को निष्क्रिय कर दिया गया ताकि महत्वपूर्ण प्रणालियां चलती रहें। हालांकि, इसरो के 30 भूस्थिर उपग्रह तूफान से पूरी तरह अछूते रहे और अपने काम में लगे रहे। गौरतलब है कि पृथ्वी की निगरानी करने वाले उपग्रह भी बिना किसी बाधा के चलते रहे।यह तूफान सूर्य ज्वाला, कोरोनल मास इजेक्शन सीएमई या सौर हवा के रूप में ऊर्जा छोड़ता है।जब ये आवेशित कण पृथ्वी के वायुमंडल से टकराते हैं, तो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ ये परस्पर क्रिया करते हैं। इस वजह से भू-चुंबकीय तूफान पैदा हो सकते हैं।ये तूफान पृथ्वी पर कई चीजों को प्रभावित कर सकते हैं, जिनमें उपग्रह संचार, बिजली ग्रिड और जीपीएस नेविगेशन सिस्टम शामिल हैं।लेकिन, सौर तूफान का असर पूरी तरह से नकारात्मक नहीं था। सूर्य की गतिविधि के कारण वातावरण में घनत्व बढ़ने से उपग्रहों का पृथ्वी की ओर खिंचाव थोड़ा बढ़ सकता था, जिससे जल्दी दखल की जरूरत पड़ सकती थी। इसरो ने पुष्टि की है किअभी तक नेविगेशन केंद्र को नेविक सेवाओं में किसी खास गिरावट का पता नहीं चला है, जो बताता है कि भू-चुंबकीय तूफान का असर न के बराबर है।

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