यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या नागरिकता संशोधन कानून से बीजेपी को फायदा होगा या नहीं! पिछले लोकसभा चुनाव को जीतने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने सबसे पहले जो दो बड़े फैसले किए वे थे आर्टिकल 370 को बेअसर करना और नागरिकता संशोधन कानून बनाना। दिसंबर 2019 में ही संसद के दोनों सदनों से नागरिकता संशोधन विधेयक पास हुआ। राजधानी दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में उसके खिलाफ हिंसक और उग्र प्रदर्शन हुए। शायद उन हिंसक विरोध प्रदर्शनों का असर था या मोदी सरकार की कोई खास रणनीति, संसद से कानून बनने के 4 साल तक इसे लेकर चुप्पी बनी रही। कब से लागू होगा? क्या नियम होंगे? कहीं हमेशा के लिए तो ठंडे बस्ते में नहीं चला गया? इन तमाम सवालों का जवाब लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तब मिला जब 11 मार्च 2014 को आखिरकार मोदी सरकार ने देशभर में सीएए को लागू कर दिया। इसकी टाइमिंग से साफ है कि बीजेपी की हसरत इस मुद्दे को चुनाव में भुनाने की थी। अब जब लोकसभा चुनाव के कुल 7 में से 4 चरणों की वोटिंग हो चुकी है, तब एक दिन अचानक सीएए के तहत नागरिकता के सर्टिफिकेट भी बंटने लगे। 15 मई को केंद्रीय गृह सचिव ने 14 शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता का सर्टिफिकेट दिया। देशभर में कुल 300 आवेदकों को नागरिकता के सर्टिफिकेट दिए गए। चुनाव के बीच इस कवायद का क्या बीजेपी को लाभ मिलेगा? आइए समझते हैं। सीएए इस बार बड़ा चुनावी मुद्दा है। इस मुद्दे की सबसे ज्यादा तपिश पश्चिम बंगाल में महसूस हो रही है। वहां की सीएम और टीएमसी चीफ ममता बनर्जी अपनी चुनावी रैलियों में लगातार सीएए के खिलाफ आक्रामक बयानबाजियां कर रही हैं। वह तो कई बार ये भी कह चुकी हैं कि पश्चिम बंगाल में वह सीएए को हरगिज लागू नहीं होने देंगी। अब सीएए के तहत नागरिकता देने की शुरुआत के साथ ये मुद्दा और गरमाएगा। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दो टूक कह रहे कि कोई कुछ भी कर ले, सीएए को नहीं हटा पाएगा।
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पीएम मोदी ने गुरुवार को विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह सीएए को लेकर झूठ फैला रहा है और वोट बैंक पॉलिटिक्स करके इसे हिंदू-मुस्लिम का रंग दे रहा। यूपी के आजमगढ़ की चुनावी रैली में मोदी ने कहा, ‘देश की जनता अब ये जान चुकी है कि आपने वोट बैंक की राजनीति और हिंदू-मुस्लिम में टकराव करके देश को 60 वर्षों से अधिक समय तक सांप्रदायिकता की आग में जलने दिया है। आपने सेक्युलरिज्म का चोला पहन रखा है लेकिन मोदी ने आपक सच सामने ला दिया है। जो करना है कर लो लेकिन आप कभी भी सीएए को नहीं हटा पाओगे।’ वैसे, सरकार को बार-बार सीएए के मुद्दे पर सफाई देनी पड़ी है कि ये नागरिकता देने का कानून है, छीनने का नहीं। इससे पड़ोसी देशों के सताए हुए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिलेगी, इससे किसी भारतीय की नागरिकता नहीं जाएगी। देश की राजधानी दिल्ली में 2020 में हुए दंगे के केंद्र में भी सीएए ही था। तभी से मोदी सरकार बार-बार सीएए को लेकर अल्पसंख्यकों को आगाह करती रही है कि वह किसी की बातों में न आए, इससे किसी भी भारतीय की नागरिकता पर कोई खतरा नहीं होगा।
सिटिजनशिप अमेंडमेंट ऐक्ट यानी CAA के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में अत्याचार और प्रताड़ना का शिकार होकर आए 6 धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलेगी। ये नागरिकता उन शरणार्थियों को मिलेगी जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ चुके थे। सीएए के विरोधी इसके खिलाफ तर्क देते हैं कि ये धार्मिक आधार पर भेदभाव करने वाला है क्योंकि इसके दायरे में मुस्लिमों को नहीं रखा गया है। वहीं, मोदी सरकार ये दलील देती आई है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान मुस्लिम देश हैं लिहाजा वहां मुस्लिम धार्मिक प्रताड़ना का शिकार हो ही नहीं सकते। यही तर्क दिसंबर 2019 में संसद में हुई बहस में भी सरकार की तरफ से दिया गया था।
सीएए का जिस तरह से उसके विरोधी मुखालफत कर रहे हैं, उससे बीजेपी को फायदा हो सकता है। सीएए का जितना तेज विरोध होगा, ध्रुवीकरण की संभावना भी बढ़ेगी। इसके अलावा, बीजेपी इसके जरिए अपने कोर वोटर्स में ये संदेश देने की भी कोशिश कर रही है कि वह पड़ोसी देशों में अत्याचार का शिकार होकर आए उन हिंदुओं को नागरिकता दे रही है, जो वर्षों से या फिर दशकों से इसका इंतजार कर रहे थे। दिसंबर 2019 में संसद के दोनों सदनों से नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद से ही इसके लागू होने का इंतजार हो रहा था। करीब साढ़े 4 साल बाद ये लागू भी हुआ तो ठीक चुनाव से पहले। और इसके तहत नागरिकता देने की शुरुआत हुई बीच चुनाव में। जाहिर है बीजेपी इससे फायदे की उम्मीद कर रही है।
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