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आखिर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों निरस्त की न्यूजक्लिक के फाउंडर की गिरफ्तारी?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने न्यूजक्लिक के फाउंडर की गिरफ्तारी निरस्त करती है! सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यूजक्लिक के फाउंडर प्रबीर पुरकायस्थ की यूएपीए मामले में गिरफ्तारी और रिमांड को कानून की नजर में अमान्य और निरस्त है। कोर्ट ने कहा कि रिमांड अर्जी में गिरफ्तारी के आधार लिखित तौर पर देने होते हैं और मौजूदा मामले में रिमांड ऑर्डर से पहले रिमांड की कॉपी आरोपी प्रबीर और उनके वकील को मुहैया नहीं कराई गई। कोर्ट ने कहा कि 4 अक्टूबर 2023 को रिमांड के आदेश से पहले रिमांड अर्जी की कॉपी आरोपी को मुहैया नहीं कराए जाने से उसकी गिरफ्तारी और रिमांड निरस्त हो जाते हैं। ऐसे में आरोपी रिहाई का हकदार है। कोर्ट ने शीर्ष अदालत द्वारा पंकज बंसल केस में दिए गए फैसले का हवाला दिया और कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट का आदेश कानून की नजर में मान्य नहीं है और वह आदेश खारिज किया जाता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि हम बिना बेल बॉन्ड और स्योरिटी के रिहाई के लिए कह सकते थे। लेकिन चूंकि मामले में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है, ऐसे में आरोपी को ट्रायल कोर्ट के सामने बेल बॉन्ड भरना होगा। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली बेंच ने सुनवाई के बाद 30 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया था। दिल्ली पुलिस की ओर से अडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू पेश हुए थे, जबकि याचिकाकर्ता प्रबीर की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल पेश हुए। अदालत के फैसले के बाद अडिशनल सॉलिसिटर जनरल राजू ने कहा कि चूंकि गिरफ्तारी को अमान्य करार दिया गया है, ऐसे में पुलिस को गिरफ्तारी की शक्ति से रोकना नहीं चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। आपके पास जो भी कानून के दायरे में शक्ति है, उसे कानून इजाजत देता है।

पिछले साल 18 अक्टूबर को न्यूज़क्लिक के चीफ एडिटर प्रबीर पुरकायस्थ ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। इनके खिलाफ दिल्ली पुलिस ने यूएपीए के तहत केस दर्ज कर गिरफ्तार किया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने गिरफ्तारी को वैलिड करार दिया था, जिसके बाद मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुनवाई में सिब्बल ने कहा था कि यह मामला जर्नलिस्ट से जुड़ा हुआ है और वह पुलिस कस्टडी में हैं। सिब्बल ने कहा था कि आरोपी को गिरफ्तारी का आधार नहीं बताया गया और यह संविधान के स्कीम का उल्लंघन है। एफआईआर की कॉपी नहीं दी गई। गिरफ्तारी और रिमांड आदेश से पहले रिमांड की कॉपी नहीं दी गई। यह अनुच्छेद-20,21 और 22 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। रात में याची को पकड़ा गया और गिरफ्तारी का आधार नहीं बताया गया। सुबह छह बजे उन्हें मैजिस्ट्रेट के घर पर पेश कर रिमांड पर लिया या और सुबह 7 बजकर पांच मिनट पर उनके वकील को वट्सऐप पर जानकारी दी गई।

वहीं दिल्ली पुलिस की ओर से पेश अडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि आरोपी को मौखिक तौर पर गिरफ्तारी का आधार बताया गया, साथ ही अरेस्ट मेमो दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून कहता है कि एफआईआर कोई इनसाइक्लोपीडिया नहीं। जांच अधिकारी को अधिकार है कि वह छानबीन करे और चार्जशीट दाखिल करे। सिब्बल की दलील है कि यूएपीए लगाया गया, लेकिन कैसे कनेक्ट है यह नहीं बताया गया।

यह सवाल उठा था कि क्या गिरफ्तारी का आधार बताया गया? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने अरेस्ट मेमो को देखा है और उसमें कहीं भी गिरफ्तारी का आधार नहीं लिखा है। अरेस्ट मेमो में साधारण तौर पर जो परफर्मा होता है, उसमें गिरफ्तारी का औपचारिक कारण दर्ज है। गिरफ्तारी का कारण और गिरफ्तारी के आधार में फर्क होता है। इसमें डिटेल में आधार गिनाए जाते हैं कि क्यों गिरफ्तारी जरूरी थी और आरोपी को मुहैया कराना जरूरी है, क्योंकि उसके आधार पर आरोपी रिमांड के दौरान अपना बचाव कर सके और जमानत के दौरान दलील पेश कर सके।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें संदेह नहीं है कि रिमांड अर्जी में गिरफ्तारी का आधार होता है और रिमांड दिए जाने से पहले वह कॉपी ना तो याची को दी गई और ना ही उनके वकील को मुहैया कराई गई। ऐसे में आरोपी रिलीज के हकदार हैं। आरोपी की गिरफ्तारी, रिमांड आदेश और हाई कोर्ट का आदेश कानून की नजर में अमान्य करार दिया जाता है।

मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उसके दूरगामी परिणाम होंगे। दरअसल इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने पंकज बंसल केस में शीर्ष अदालत के फैसले को रेफर किया है। पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने पंकज बंसल केस में कहा था कि आरोपी को गिरफ्तारी के बारे में बताया जाए कि उसकी गिरफ्तारी का आधार क्या है और यह उसे लिखित में बताना जरूरी है। इसके लिए कोई अपवाद नहीं हो सकता। अब मौजूदा मामले में आरोपी प्रबीर की गिरफ्तारी और रिमांड को इसी आधार पर अमान्य करार दिया गया कि उन्हें रिमांड के दौरान लिखित में नहीं बताया गया कि गिरफ्तारी का आधार क्या है। अब सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है वह फैसला आने वाले केसों के लिए नजीर बनेगा।

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