वर्तमान में मुफ्त राशन वाली राजनीति को बहुत बढ़ावा मिल रहा है! कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बुधवार को कहा कि चुनाव जीतने पर उनकी सरकार गरीबों को हर महीने 10 किलो अनाज देगी। चुनाव के चार चरण बीत जाने के बाद कांग्रेस की इस योजना की घोषणा के मायने समझने के लिए दो साल पहले उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव को याद करना जरूरी है। उस चुनाव में बीजेपी की जीत के पीछे इस योजना को एक बड़ी वजह माना जाता रहा है। इसलिए कहा जाता है कि मोदी सरकार की ओर से पिछले साल दिसंबर में ही खत्म होने वाली इस योजना को पांच और सालों के लिए बढ़ाने की घोषणा के पीछे भी वजहें चुनावी फायदे से जुड़ी थी। पिछले साल नवंबर में पांच राज्यों के चुनावों के बीचो बीच पीएम मोदी ने छत्तीसगढ़ की एक रैली में इस योजना को बढ़ाने की घोषणा की थी। ये योजना कोविड के दौरान जून 2020 में शुरू गई थी, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत गरीब नागरिकों को पांच किलो गेहूं या चावल मुफ्त मिलता है। अब ये योजना दिसंबर 2028 तक कायम रहेगी। पीएम अपनी चुनावी रैलियों में लगातार इस योजना का जिक्र करते रहे हैं, लेकिन कांग्रेस इसे अपने अपनी नीतियों से निकली रीब्राडिंग वाली योजना ही कहती है।
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कांग्रेस ने कई बार कहा है कि कि ये योजना यूपीए-2 के वक्त पारित किए गए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की ही रीब्रांडिंग है। बता दें कि 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आ गए हैं, तो 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज क्यों दिया जा रहा है। इसे लेकर पीएम ने संसद में ही कहा था कि हम अनाज देते हैं और देते रहेंगे, क्योंकि 25 करोड़ लोग निम्न मध्यम वर्ग बन गए हैं, और हमें उनकी जरूरतों और महत्व के बारे में बेहतर समझ है। हाल ही में कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स में पोस्ट कर कहा था कि 7 अगस्त 2013 को लिखी एक चिट्ठी में बतौर गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का विरोध किया था। कांग्रेस कहती है कि 2013 में यूपीए द्वारा पारित एनएफएसए, भारत के इतिहास का सबसे ऐतिहासिक और अहम कानून में से एक था। इसके तहत 75% ग्रामीण और 50% शहरी भारतीयों को कानूनी अधिकार के रूप में सब्सिडी वाले राशन की गारंटी मिली थी। ऐसे में जब आबादी 141 करोड़ है, तो इसके तहत 95 करोड़ लोगों को सब्सिडी वाला राशन मिलना चाहिए। कांग्रेस का कहना है कि देश में 2021 की जनगणना कराने में मोदी सरकार विफल रही है, ऐसे में सिर्फ 81 करोड़ लोगों को ही राशन मिल रहा है और 14 करोड़ भारतीय इस अधिकार से वंचित हैं।
राजनीतिक विश्लेषक यशवंत देशमुख कहते हैं कि योजनाओं की घोषणा अपनी जगह है, लेकिन वोट करने में दूसरे फैक्टर भी काम करते हैं। वो कहते हैं, ‘राजनीतिक दल अपनी ओर से घोषणाओं और स्कीम की घोषणा करते रहते हैं लेकिन इसमें विश्वसनीयता एक अहम फैक्टर होता है। लोगों को जिस की बात पर ज्यादा यकीन होता है, वो उसी दल की घोषणा पर वोट करते हैं।’ ऐसे में सवाल ये भी उठते रहे हैं कि अगर सरकार के मुताबिक 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आ गए हैं, तो 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज क्यों दिया जा रहा है। इसे लेकर पीएम ने संसद में ही कहा था कि हम अनाज देते हैं और देते रहेंगे, क्योंकि 25 करोड़ लोग निम्न मध्यम वर्ग बन गए हैं, और हमें उनकी जरूरतों और महत्व के बारे में बेहतर समझ है।
पिछले साल 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के बीच पीएम की ओर से मुफ्त राशन की योजना को लेकर विपक्ष की ओर से कई सवाल उठाए गए थे। टीएमसी जैसी पार्टियों ने पीएम की ओर से इस की घोषणा की टाइमिंग को लेकर मोदी सरकार को कठघरे में लिया था। जानकारों का मानना है कि जिन राज्यों में मध्यम निम्न वर्ग और गरीबों की तादाद ज्यादा होती है, वहां ये इस तरह की घोषणाएं ज्यादा फायदा पहुंचाती हैं। मोदी सरकार की ओर से पिछले साल दिसंबर में ही खत्म होने वाली इस योजना को पांच और सालों के लिए बढ़ाने की घोषणा के पीछे भी वजहें चुनावी फायदे से जुड़ी थी। पिछले साल नवंबर में पांच राज्यों के चुनावों के बीचो बीच पीएम मोदी ने छत्तीसगढ़ की एक रैली में इस योजना को बढ़ाने की घोषणा की थी।खासतौर से यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत में इसे अहम बताया जाता है। ऐसे में चुनावों के बीच मुफ्त राशन की घोषणा का जिक्र होना अस्वाभाविक नहीं, जबकि कांग्रेस इसे अपनी ही योजना बताती रही है।
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