Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

आखिर क्या है चाबहार बंदरगाह विवाद?

आज हम आपको चाबहार बंदरगाह विवाद के बारे में जानकारी देने वाले हैं! भारत, ईरान के साथ गठजोड़ करके चीन और पाकिस्तान का मुकाबला करने के लिए तैयार हो रहा है। भारत ने लंबी बातचीत के बाद दक्षिणपूर्वी ईरान में चाबहार बंदरगाह के प्रबंधन के लिए तेहरान के साथ एक समझौता किया है। इस समझौते के तहत भारत को ईरान का चाबहार बंदरगाह 10 साल की लीज पर मिल गया है। इस समझौते पर भारतीय शिपिंग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने हस्ताक्षर किया है। यह पहली बार है जब भारत विदेश में किसी बंदरगाह का प्रबंधन करेगा। उधर, भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह को लेकर समझौता होते ही अमेरिका भड़क गया है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इस समझौते को लेकर संभावित प्रतिबंधों की धमकी दी है। हालांकि, भारत अब अमेरिकी धमकियों से डरने वाला नहीं है और अपने देश के हित में काम करना जारी रखे हुए है। अमेरिका को भारत और ईरान दोनों से गंभीर परेशानी है। अमेरिका नहीं चाहता है कि कोई भी देश ईरान के साथ व्यापार करे, क्योंकि अमेरिका का ईरान के साथ अच्छे संबंध नहीं है। अमेरिका ने अपने निजी हितों को साधने के लिए ईरान पर प्रतिबंधों की बौछार की हुई है। अब वह दबाव बना रहा है कि बाकी दुनिया भी इन प्रतिबंधों का सम्मान करे और ईरान के साथ कोई भी व्यापार न करे। उधर भारत का शुरू से एक रुख रहा है कि वह संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को छोड़कर किसी भी दूसरे प्रतिबंधों को नहीं मानता है। अमेरिका यह भी नहीं चाहता है कि भारत को ईरान के साथ दोस्ती करके कोई फायदा हो। इससे भारत की निर्भरता अमेरिका से कम हो सकती है और वह अमेरिका के दुश्मन गुटों के और ज्यादा करीब जा सकता है।

चाबहार बंदरगाह ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है। इसे भारत को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और बड़े यूरेशियन क्षेत्र से जोड़ने में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में देखा जाता है। भारत चाहता है कि यह बंदरगाह अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे आईएनएसटीसी में एक प्रमुख केंद्र बने। INSTC ईरान के माध्यम से भारत और रूस को जोड़ता है। यह भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए 7,200 किलोमीटर की मल्टी-मोड परिवहन परियोजना है। यूक्रेन में संघर्ष के बीच INSTC को महत्व मिला है। भारत क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए आईएनएसटीसी और चाबहार बंदरगाह दोनों पर जोर दे रही है।

भारत और ईरान ने पहली बार 2003 में बंदरगाह पर चर्चा शुरू की थी। इस बंदरगाह में 100 मिलियन डॉलर का निवेश करने में भारत को एक और दशक लग गया। इस बंदरगाह को लेकर समझौके पर दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण कदम अंततः 2016 में उठाया गया। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा के दौरान हुआ। भारत ने उस समय शाहिद बेहेश्टी टर्मिनल के विकास के लिए 85 मिलियन डॉलर का वित्तपोषण करने की भी प्रतिबद्धता जताई थी। 2018 में ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति हसन रूहानी ने बंदरगाह में भारत की भागीदारी बढ़ाने की बात कही थी। इसके बाद से ही भारत और ईरान ने अक्सर उच्च स्तरीय आदान-प्रदान में बंदरगाह पर चर्चा की है।

चाबहार बंदरगाह होर्मुज जलडमरूमध्य के मुहाने पर ओमान की खाड़ी में स्थित है। इसकी इसी स्थिति के कारण यह बंदरगाह इतना महत्वपूर्ण है। द डिप्लोमैट के अनुसार, चाबहार बंदरगाह ईरान का एकमात्र गहरे समुद्र वाला बंदरगाह है जिसकी समुद्र तक सीधी पहुंच है। दिलचस्प बात यह है कि इसे अमेरिकी प्रतिबंधों से भी छूट प्राप्त है – जो इसे न केवल भारत के लिए बल्कि अन्य देशों के लिए भी एक आकर्षक संभावना बनाता है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे मध्य एशियाई देशों ने हिंद महासागर क्षेत्र और भारतीय बाजार में अपना सामान लाने के लिए चाबहार का उपयोग करने की इच्छा व्यक्त की है। इससे भारतीय व्यापारियों और निवेशकों को मध्य एशिया तक पहुंच बनाने में भी मदद मिलेगी।

चाबहार बंदरगाह की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह और चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के लिए भारत के काउंटर के रूप में काम करना है। इंडिया टुडे के अनुसार, बंदरगाह का उपयोग करने से भारत अपना माल सीधे अफगानिस्तान भेजते हुए पाकिस्तान को लूप से बाहर कर सकता है। द डिप्लोमैट के लेख के अनुसार, भारत को अपने पश्चिम के देशों के साथ भूमि-आधारित व्यापार स्थापित करने में गंभीर रूप से बाधा उत्पन्न हुई है, क्योंकि वस्तुतः उन सभी मार्गों को भारत के प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान से होकर गुजरना होगा। चाबहार बंदरगाह के माध्यम से पश्चिमी और मध्य एशिया के लिए समुद्र आधारित व्यापार मार्ग स्थापित करने से भारत को पाकिस्तान को बायपास करने और इन क्षेत्रों के देशों के साथ व्यापार नेटवर्क स्थापित करने की अनुमति मिल जाएगी।

चीन द्वारा ग्वादर बंदरगाह को अपने BRI के हिस्से के रूप में शामिल करने के बाद यह बंदरगाह भारत के लिए और भी महत्वपूर्ण हो गया। यह बंदरगाह भारत के लिए भी उपयोगी हो सकता है यदि चीन ग्वादर बंदरगाह में अपने जहाज तैनात करता है – जो सड़क मार्ग से 400 किलोमीटर से कम और समुद्र द्वारा 100 किलोमीटर से कम दूर है। चाबहार बंदरगाह हिंद महासागर में अपने प्रभाव का विस्तार करने के चीन के प्रयासों का मुकाबला करने के भारत के लक्ष्य को भी पूरा करता है।

The post आखिर क्या है चाबहार बंदरगाह विवाद? appeared first on MojoPatrakar.

Share the post

आखिर क्या है चाबहार बंदरगाह विवाद?

×

Subscribe to नोटों पर तस्वीर के मामले में क्या होगा फैसला?

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×