आज हम आपको बताएंगे कि आखिर यहूदी देश इजराइल का जन्म कब हुआ था! इजरायल बीते सात महीने से दुनियाभर में चर्चा में है, इसकी वजह गाजा की लड़ाई है। बीते साल अक्टूबर में हमास ने इजरायल पर हमला किया था। इसमें इजरायल के 1200 लोग मारे गए थे और 250 को हमास के लड़ाके बंधक बनाकर गाजा ले गए थे। इस हमले पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए इजरायल की सेना ने गाजा पर हमला बोल दिया था। इसके बाद से लगातार इजरायल के हमले जारी हैं, जिससे ये इलाका बुरी तरह से तबाह हुआ है। इजरायल के हमलों में गाजा में 33 हजार से ज्यादा फिलिस्तीनी मारे गए हैं। गाजा में जंग से एक बड़ा मानवीय संकट खड़ा हो गया है, जिसकी दुनियाभर में आलोचना भी हो रही है। दोनों पक्षों के बीच कई बार युद्ध विराम पर बात हुई लेकिन मामला अटक गया। दोनों पक्षों में क्यों मामला अटक जाता है। ऐसे में सवाल ये है कि आखिर कैसे मुस्लिम मुल्कों की दुनिया के बीच ये यहूदी देश अस्तित्व में आया। क्यों आज भी कई देश इजरायल को मान्यता नहीं देते और ये विवाद क्या है। बता दें कि इजरायल हाल ही की तारीख यानी 14 मई को अस्तित्व में आया था, यानी इजरायल को बने 76 साल हो गए हैं। 14 मई, 1948 को यहूदी एजेंसी के प्रमुख डेविड बेन-गुरियन ने इजरायल की स्थापना की घोषणा की। उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन ने उसी दिन नए राष्ट्र के तौर पर इजरायल को मान्यता दे दी थी। दुनिया के जिस हिस्से को आज ज्यादातर देश इजरायल के तौर पर मान्यता देते हैं, 1948 से पहले वह ब्रिटेन के नियंत्रण में था। प्रथम विश्व युद्ध से पहले पश्चिम एशिया के इस हिस्से यानी फिलीस्तीन पर ओटोमन साम्राज्य का राज था। ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर नियंत्रण कर लिया। यहां यहूदी और अरबों की आबादी रहती थी। अल्पसंख्यक यहूदियों और बहुसंख्यक अरबों के अलावा कुछ दूसरे जातीय समूह भी यहां पर रहते थे।
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दुनिया के कई हिस्सों में उत्पीड़न का शिकार हो रहे यहूदियों को साल 1917 में ब्रिटेन के विदेश सचिव आर्थर बाल्फोर की ओर से एक देश देने की बात कही गई थी। ब्रिटेन के फिलिस्तीन में यहूदी लोगों के लिए एक देश बनाने का विचार दिया और फिलीस्तीन में इसकी कोशिश शुरू हो गई। 1920 के बाद से 1940 तक यहां लगातार यूरोप और जर्मनी से भागकर यहूदी फिलीस्तीन पहुंचे। इससे इलाके में यहूदियों की संख्या बढ़ गई। दूसरे विश्व युद्ध के बाद इजरायल की स्थापना पर तेजी से काम शुरू हुआ। इस पर आगे बढ़ते हुए 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को अलग-अलग यहूदी और अरब देश में बांटने करने के लिए मतदान कराया और यरुशलम को एक अंतरराष्ट्रीय शहर बना दिया। इसे यहूदी नेताओं ने स्वीकार किया लेकिन अरब पक्ष ने अस्वीकार कर दिया।
इसके एक साल बाद 1948 में यहूदी नेताओं ने यहूदियों के लिए एक सुरक्षित देश और मातृभूमि होने की बात कहते हुए इजरायल की स्थापना की घोषणा कर दी। इजरायल को अमेरिका का साथ मिला लेकिन पड़ोसी अरब देश इससे भड़क गए और दूसरे ही दिन पांच देशों की सेनाओं ने नए बने देश पर हमला कर दिया। एक साल तक लड़ाई चली इसमें इजरायल ने अधिकांश क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया। बड़ी तादाद में फिलिस्तिनियों को अपने घरों को छोड़कर जाना पड़ा।
1967 में एक बार फिर अरब देशों और इजरायल के बीच लड़ाई छिड़ी। ये लड़ाई सिर्फ छह दिन चली लेकिन इजरायल के लिए काफी फायदेमंद रही। इस दौरान इजरायल ने पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक, सीरियाई गोलान हाइट्स, गाजा और मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया। दुनिया के जिस हिस्से को आज ज्यादातर देश इजरायल के तौर पर मान्यता देते हैं, 1948 से पहले वह ब्रिटेन के नियंत्रण में था। प्रथम विश्व युद्ध से पहले पश्चिम एशिया के इस हिस्से यानी फिलीस्तीन पर ओटोमन साम्राज्य का राज था।इसके बाद से इजरायल ने वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम में बस्तियां बनाकर यहूदियों को बसाया है।
इजरायल और फिलीस्तीन के बीच आज भी कई मुद्दे उलझे हुए हैं। इसमें फिलिस्तीनी शरणार्थियों की वापसी, वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियां, यरुशलम पर दावा और फिलिस्तीनी को आजाद देश का दर्जा दिया जाना। इन सब मुद्दों पर कई अरब देशों के साथ आज इजरायल की तनातनी चल रही है। सऊदी अरब समेत कई इस्लामिक देशों ने आजतक इजरायल को मान्यता नहीं दी है। अमेरिका लगातार कोशिश कर रहा है कि इजरायल और सऊदी के बीच संबंध स्थापित हो जाएं लेकिन अलग फलस्तीन देश का पेच फंसा हुआ है।
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