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जब आर्मी नहीं उड़ा पाई ड्रोन!

हाल ही में ट्रेनिंग के दौरान आर्मी ड्रोन नहीं उड़ा पाई! ड्रोन वॉरफेयर में भारतीय सेना को मजबूत करने के लिए भारतीय सेना ने यूनिट स्तर पर भी ड्रोन लेकर उनकी ट्रेनिंग शुरू की थी। कुछ जगह इसके लिए ट्रेनिंग स्कूल भी बने और कॉडकॉप्टर या हेक्साकॉप्टर जैसे ड्रोन लेकर उन पर सैनिकों को ट्रेनिंग दी गई। लेकिन रक्षा मंत्रालय के वित्त विभाग से इस पर आपत्ति जताई गई है। सूत्रों के मुताबिक करीब दो महीने पहले रक्षा मंत्रालय की तरफ से कहा गया कि सेना की अलग अलग यूनिट अपने स्तर पर ड्रोन की खरीद नहीं कर सकती और इसके लिए एक विस्तृत पॉलिसी होनी चाहिए। पॉलिसी बनाने का काम डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स यानी डीएमए को दिया गया है। जिसके प्रमुख चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) हैं। ड्रोन के इस्तेमाल को लेकर साथ ही ड्रोन के हमले से बचने के लिए पिछले कुछ सालों से काफी फोकस हुआ है। भारत में भी कई स्टार्ट्अप ड्रोन बनाने के काम में लगे हैं। ड्रोन वॉरफेयर आज के दौर की हकीकत है। भारतीय सेना ने भी ड्रोन पर फोकस शुरू किया। बेसिक ट्रेनिंग सिमुलेटर से दी जा रही है, जिससे ड्रोन की बेसिक जानकारी हो जाए। इंटरमीडिएट ट्रेनिंग में कॉडकॉप्टर को फ्लाई करना और इस्तेमाल करना बताया जा रहा है। अडवांस ट्रेनिंग में सिखा रहे हैं कि कैसे उसका रूट प्लान बनाना है और कैसे उसे जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल करना है।सर्विलांस से लेकर लॉजिस्टिक ड्रोन तक भारतीय सेना ले रही है। भारतीय सेना ने आइडिया फोर्ज से SWITCH ड्रोन लिए हैं जो फिक्स्ड विंग ड्रोन हैं और हाई एल्टीट्यूट में कारगर हैं। इसकी खरीद इमरजेंसी प्रॉक्योरमेंट के तहत की गई थी और ज्यादातर ड्रोन नॉर्दर्न बॉर्डर (चीन बॉर्डर) पर भेजे गए हैं। ये खरीद सेना हेडक्वॉर्टर ने की। लेकिन सेना की अलग अलग डिविजन और यूनिट स्तर पर भी छोटे ड्रोन की खरीद की जा रही थी। ताकि सैनिकों को उसमें ट्रेंड किया जा सके साथ ही सर्विलांस और दूसरी जरूरतों के लिए उसका इस्तेमाल किया जा सके।

सूत्रों के मुताबिक सेना की तरफ से पॉलिसी थी कि ट्रेनिंग के लिए यूनिट स्तर पर ड्रोन लिए जा सकते हैं। इसके लिए ट्रेनिंग फंड में एक्स्ट्रा फंड भी दिया जा रहा था। लेकिन करीब दो महीने पहले मंत्रालय ने इस पर आपत्ति जताई। जिसके बाद यूनिट या डिविजन स्तर पर ड्रोन की खरीद को मंजूरी देना बंद कर दिया गया। सूत्रों के मुताबिक सेना की कुछ यूनिट ने पिछले वित्त वर्ष में ड्रोन लेने के लिए प्रस्ताव भेजा था लेकिन अचानक हुए पॉलिसी चेंज की वजह से उन्हें खरीद की मंजूरी नहीं मिल पाई, जिसकी वजह से वे निराश हैं। ट्रेनिंग के लिए भी कितने ड्रोन लिए जाएंगे उस पर भी लिमिट तय की गई है।

भारतीय सेना की अलग अलग यूनिट अपने स्तर पर सैनिकों को ट्रेंड भी कर रही है। एक अधिकारी ने बताया कि सैनिकों को तीन तरह से ट्रेनिंग दी जा रही है। बेसिक, इंटरमीडिएट और अडवांस। बेसिक ट्रेनिंग सिमुलेटर से दी जा रही है, जिससे ड्रोन की बेसिक जानकारी हो जाए। इंटरमीडिएट ट्रेनिंग में कॉडकॉप्टर को फ्लाई करना और इस्तेमाल करना बताया जा रहा है। अडवांस ट्रेनिंग में सिखा रहे हैं कि कैसे उसका रूट प्लान बनाना है और कैसे उसे जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल करना है।

यूनिट स्तर पर भारतीय सेना ड्रोन वॉरफेयर की तैयारी कर रही थी। पिछले महीने ही सेना की वेस्टर्न कमांड ने अपने ऑफिशियल हैंडल से एक्स पर एक विडियो पोस्ट किया। जिसमें बताया गया कि ड्रोन वॉरफेयर में तकनीक, टेक्टिस और प्रक्रिया को शार्प करने के लिए पैंथर डिविजन में ड्रोन ट्रेनिंग लैब बनाई गई है। बता दें कि यूनिट अपने स्तर पर ड्रोन की खरीद नहीं कर सकती और इसके लिए एक विस्तृत पॉलिसी होनी चाहिए। पॉलिसी बनाने का काम डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स यानी डीएमए को दिया गया है। जिसके प्रमुख चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) हैं। ड्रोन के इस्तेमाल को लेकर साथ ही ड्रोन के हमले से बचने के लिए पिछले कुछ सालों से काफी फोकस हुआ है। भारत में भी कई स्टार्ट्अप ड्रोन बनाने के काम में लगे हैं। ड्रोन वॉरफेयर आज के दौर की हकीकत है। इसमें कहा गया कि ये ट्रेनिंग भविष्य के ऑपरेशंस के लिए अहम होगी। लेकिन अब जब तक डीएमए पॉलिसी नहीं बना देता तब तक यूनिट स्तर पर ड्रोन नहीं लिए जा सकेंगे। जिससे ट्रेनिंग में भी देरी होगी और इसका असर तैयारियों पर भी दिखेगा।

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