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आखिर क्यों छिड़ी है अल्पसंख्यकों की जनसंख्या में वृद्धि की बहस?

आज हम आपको बताएंगे कि आखिर अल्पसंख्यकों की जनसंख्या में वृद्धि की बहस वर्तमान में क्यों छिड़ी हुई है! भारत में अल्पसंख्यकों की जनसंख्या में वृद्धि पर चल रही बहस के बीच गैर सरकारी संगठन पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने रिएक्ट किया है। एनजीओ ने कहा है कि जनसंख्या वृद्धि दर का धर्म से कोई संबंध नहीं है। सभी धार्मिक ग्रुप्स में कुल प्रजनन दर टोटल फर्टिलिटी रेट में गिरावट आ रही है। इसमें सबसे ज्यादा कमी मुसलमानों में देखी गई है। दरअसल, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ईएसी-पीएम की ओर से हाल ही में एक रिसर्च आई है। इसके अनुसार, भारत में 1950 से 2015 के बीच हिंदू आबादी की हिस्सेदारी में 7.82 फीसदी की कमी आई है। वहीं मुसलमानों की संख्या में 43.15 फीसदी की वृद्धि हुई है। ये दर्शाता है कि देश में विविधता को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल वातावरण है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के इस अध्ययन को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया। राजनीतिक पार्टियों में जमकर बयानबाजी हुई, जिसमें सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस की ‘तुष्टीकरण की राजनीति’ के कारण देश में मुसलमानों की जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, एनजीओ पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने इस रिपोर्ट पर सवाल खड़े किए। प्रजनन दर को कम करने में महिलाओं की शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण कारक है। इसलिए, धर्म की परवाह किए बिना शिक्षा और परिवार नियोजन जैसे जरूरी कदमों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने आग्रह किया कि वह जनसंख्या से जुड़े रिसर्च का इस्तेमाल डर और विभाजन पैदा करने के लिए न करें।एनजीओ ने बयान में कहा कि वह हाल की मीडिया रिपोर्टों से बहुत चिंतित हैं। जिस तरह से देश की मुस्लिम जनसंख्या की बढ़ोतरी के बारे में रिसर्च के निष्कर्षों को ‘गलत तरीके से पेश किया गया है वो परेशान करने वाला है।

एनजीओ ने इस बात पर जोर दिया कि पिछले तीन दशकों में मुसलमानों की वृद्धि दर में उल्लेखनीय गिरावट आई है। ये 1981-1991 में 32.9 फीसदी से घटकर 2001-2011 में 24.6 फीसदी हो गई है, जो हिंदुओं की तुलना में अधिक है। 1951 से 2011 तक के जनगणना आंकड़े रिसर्च के निष्कर्षों के अनुरूप हैं, जो यह दर्शाते हैं कि ये संख्याएं नई नहीं हैं। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने इस बात पर फोकस किया कि सभी धार्मिक ग्रुप्स में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में कमी आ रही है।पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि प्रजनन क्षमता में गिरावट धार्मिक संबद्धता के बजाय विकास कारकों से प्रभावित है। इसमें सबसे अधिक कमी मुसलमानों में और फिर हिंदुओं में देखी गई है। एनजीओ ने आंकड़ों की गलत व्याख्या के प्रति आगाह करते हुए कहा कि प्रजनन दर का सीधा संबंध शिक्षा और इनकम के स्तर से है, न कि धर्म से है। जिन राज्यों में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक-आर्थिक विकास तक बेहतर पहुंच है, वहां सभी धार्मिक समूहों में कुल प्रजनन दर कम है। इससे यह पता चलता है कि विभिन्न समुदायों में प्रजनन दर एक समान है।

बांग्लादेश और इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम बहुल देशों में सफल परिवार नियोजन कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप भारत की तुलना में जन्म दर कम हुई है। इन देशों ने महिला शिक्षा को बढ़ावा देकर, रोजगार के अधिक अवसर और गर्भनिरोधक विकल्पों की बेहतर पहुंच के माध्यम से यह मुकाम हासिल किया है। बता दें कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ईएसी-पीएम की ओर से हाल ही में एक रिसर्च आई है। इसके अनुसार, भारत में 1950 से 2015 के बीच हिंदू आबादी की हिस्सेदारी में 7.82 फीसदी की कमी आई है। वहीं मुसलमानों की संख्या में 43.15 फीसदी की वृद्धि हुई है। ये दर्शाता है कि देश में विविधता को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल वातावरण है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के इस अध्ययन को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि प्रजनन क्षमता में गिरावट धार्मिक संबद्धता के बजाय विकास कारकों से प्रभावित है।

जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी तरीका शिक्षा, आर्थिक विकास और लैंगिक समानता में फोकस करना है। हमारा विश्लेषण बताता है कि प्रजनन दर को कम करने में महिलाओं की शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण कारक है। इसलिए, धर्म की परवाह किए बिना शिक्षा और परिवार नियोजन जैसे जरूरी कदमों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने आग्रह किया कि वह जनसंख्या से जुड़े रिसर्च का इस्तेमाल डर और विभाजन पैदा करने के लिए न करें।

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