वर्तमान में हार्ट पेशेंट के साथ लापरवाही होती जा रही है! राम मनोहर लोहिया अस्पताल में कार्यरत दो वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञों सहित लगभग एक दर्जन लोगों की गिरफ्तारी ने फिर इस गंभीर समस्या को चर्चा के केंद्र में ला दिया है कि कैसे ‘धरती का भगवान’ कहे जाने वाले डॉक्टर भी चंद सिक्कों के लिए हैवान का रूप धारण कर लेते हैं। एक खास कंपनी के स्टेंट और अन्य चिकित्सा उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने के मामले ने मेडिकल फ्रैटर्निटी पर आम लोगों का भरोसा तार-तार कर दिया है। यह साफ हो गया है कि हृदय रोगियों के इलाज में स्टेंट का जानबूझकर ज्यादा उपयोग किया जाता है ताकि डॉक्टर, कंपनी और विक्रेता को फायदा हो सके। इन सबके गठजोड़ में बीमारी से पूरी तरह परेशान मरीजों और उनके परिजनों का क्या हो रहा है, इसका अंदाजा लगाकर ही दिल बैठ जाता है। आरएमएल स्कैंडल में पुलिस जांच चल रही है। दूसरी तरफ, दुनियाभर के अध्ययनों से संकेत मिलता है कि बड़ी संख्या में डॉक्टर बेवजह स्टेंटिंग रेकमेंड कर रहे हैं। अमेरिका में हुए एक अध्ययन में पता चला है कि हृदय को खून पहुंचाने वाली नसों के जाम होने की बीमारी (स्टेबल कोरोनरी आर्टरी डिजीज) वाले 20% मरीजों में पांच स्टेंट डाले गए। 2019 से 2021 के बीच किए गए इस अध्ययन से पता चला है कि मरीजों में 2,29,000 अनावश्यक स्टेंट लगाए गए। हालांकि भारत में ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया गया है, लेकिन कई डॉक्टर मानते हैं कि देश में भी इसी तरह का गोरखधंधा चल रहा है। ज्यादातर मामलों में इसका उद्देश्य मरीजों के अस्पताल और इलाज के बिलों को बढ़ाकर पैसे कमाना होता है। डॉक्टरों के अनुसार, कार्डियक स्टेंट बहुत जरूरी हैं, लेकिन इनकी जरूरत तभी पड़ती है जब हृदय की मांसपेशियों को रक्त की आपूर्ति करने वाली कोरोनरी धमनियों में 80% से ज्यादा रुकावट हो। रुकावट की वजह से सीने में दर्द (एनजाइना) जैसे लक्षण हो सकते हैं या दिल का दौरा पड़ सकता है।
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यदि हृदय संबंधी स्थिति को इलाज से ठीक किया जा सकता है, तो स्टेंट का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘स्टेंट केवल तभी उपयोग किए जाते हैं, जब रोगी को दवाओं से राहत नहीं मिलती। यदि आप स्टेंट का उपयोग तब करते हैं, जब रुकावट बहुत बड़ी नहीं होती या यह किसी सामान्य धमनी में होती है, तो यह दुरुपयोग और अनैतिक है।’ उन्होंने कहा कि स्टेंट का उपयोग जोरदार हर्ट अटैक के मामलों में किया जाना चाहिए क्योंकि यह जीवन रक्षक और बीमारी के लक्षणों को कम करने में प्रभावी माना जाता है। बैलून एंजियोप्लास्टी के 99% मामलों में धमनी को फिर से संकीर्ण होने से रोकने के लिए स्टेंट लगाया जाता है। हालांकि, दिल के दौरे के अलावा कुछ मामलों में एंजियोप्लास्टी में देरी की जा सकती है और दवाओं से इसे ठीक किया जा सकता है।’
स्टेंट के विभिन्न प्रकारों में बेयर-मेटल स्टेंट (बीएमएस) और ड्रग-एल्यूटिंग स्टेंट (डीईएस) शामिल हैं। बीएमएस में धातु की जाली होती है और धमनी को खुला रखने के लिए संरचनात्मक सहायता प्रदान करती है। धर्मशिला नारायण अस्पताल में इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी के निदेशक डॉ. प्रदीप कुमार नायक ने कहा, ‘अपने अस्पताल में हम बीएमएस का उपयोग नहीं करते हैं। लेकिन डीईएस, जो दवा के साथ लेपित होते हैं, स्टेंट लगाए जाने के बाद धमनी को फिर से अवरुद्ध होने से रोकने में मदद करते हैं।’ उन्होंने बताया कि स्टेंट किस प्रकार और ब्रैंड का है, साथ ही हमारी सुविधाओं की आवश्यकता क्या है, इन सबके आधार पर स्टेंट की कीमत तय होती है।
दवा-लेपित गुब्बारे या लेजर-सहायता प्राप्त एंजियोप्लास्टी उपलब्ध हैं। ये विकल्प विशेष रूप से लंबे (25 मिमी से अधिक) और फैले हुए अवरोधों, पतली धमनियों (जो भारत में डाइबिटीज के रोगियों में आम है) और स्टेंट विफलता (जब स्टेंट वाली रक्त वाहिका अवरुद्ध हो जाती है) के मामलों में उपयुक्त हैं। चंद्रा ने कहा, ‘ऐसे विकल्प युवा रोगियों के लिए बेहतर हैं क्योंकि अगर कम उम्र में स्टेंट लगाया जाता है तो यह रोगी के पूरे जीवन के लिए शरीर के अंदर रहेगा और इसके अपने प्रभाव हो सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि स्टेंट शरीर में जितना अधिक समय तक रहेगा, फिर से अवरोध होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी।
इस बारे में विस्तार से बताते हुए चंद्रा ने कहा, ‘ड्रग-कोटेड बैलून स्टेंटलेस एंजियोप्लास्टी की एक नई अवधारणा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहां धमनियां प्राकृतिक रहती हैं और डबल ब्लड थिनर का उपयोग करने की कम जरूरत होती है। यह अप्रोच धमनियों को भविष्य में जरूरत पड़ने पर बाईपास के लिए तैयार रखता है। लेजर-सहायता प्राप्त एंजियोप्लास्टी भी स्टेंटलेस होती है और दोबारा ब्लॉकेज को रोकती है।’
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