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आखिर क्यों है अमेठी कांग्रेस के लिए असमंजस्य की सीट ?

वर्तमान में अमेठी कांग्रेस के लिए असमंजस्य की सीट बन चुकी है! 2024 के चुनावी रण में बीते कई दिनों से बस यही चर्चा चल रही थी कि क्या राहुल गांधी अमेठी से दावेदारी करेंगे? 2019 में मिली शिकस्त को भूल दिग्गज कांग्रेस नेता फिर इस सीट पर वापसी करने की सोच रहे या नहीं। काफी सस्पेंस के बाद, कांग्रेस नेतृत्व ने आखिरकार शुक्रवार को उत्तर प्रदेश में नेहरू-गांधी की परंपरागत सीटों अमेठी और रायबरेली के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि ये नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख भी थी। ऐसी चर्चा थी कि राहुल गांधी अमेठी और प्रियंका गांधी इस बार रायबरेली सीट से दावेदारी कर सकते हैं। हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व ने आखिरकार राहुल गांधी को रायबरेली से उम्मीदवार बनाया। प्रियंका गांधी ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। वहीं अमेठी में कांग्रेस ने 63 वर्षीय किशोरी लाल शर्मा को मैदान में उतारा है, जो राजीव गांधी के समय से गांधी परिवार के करीबी सहयोगी रहे हैं। इस तरह किशोरी लाल शर्मा अमेठी सीट पर दावेदारी करने वाले गांधी परिवार से बाहर के पांचवें उम्मीदवार बन गए हैं। आइये जानते हैं अमेठी सीट पर अब तक की सबसे बड़ी जीत और सबसे बड़ी हार कौन सी रही। अमेठी को अब तक नेहरू-गांधी परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती थी। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ने तत्कालीन अमेठी सांसद राहुल गांधी को हरा दिया। इस तरह 1967 से अस्तित्व में आई लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाली स्मृति ईरानी तीसरी गैर-कांग्रेसी सांसद बन गईं। इससे पहले, बीजेपी ने सिर्फ एक बार 1998 में यह सीट जीती थी, जब उसके उम्मीदवार और पूर्व कांग्रेस नेता संजय सिंह ने चुनाव जीता था। अमेठी से निर्वाचित होने वाले अन्य गैर-कांग्रेसी सांसद जनता पार्टी के रवींद्र प्रताप सिंह थे, जिन्होंने आपातकाल के बाद 1977 के चुनावों में जीत हासिल की थी।

कांग्रेस की बात करें तो अब तक अमेठी सीट पर हुए 14 लोकसभा चुनावों में पार्टी ने 11 बार जीत दर्ज की है। अमेठी से जीतने वाले पहले कांग्रेस उम्मीदवार वीडी बाजपेयी थे। जिन्होंने 1967 और फिर 1971 में दोबारा जीत दर्ज की थी। 1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने पहली बार इस सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। हालांकि 1980 में संजय गांधी ने इस सीट से अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता। कुछ महीने बाद उनकी मृत्यु हो जाने पर उनके बड़े भाई राजीव गांधी ने उपचुनाव में दावेदारी और इस सीट पर जीत दर्ज की।

राजीव गांधी लगातार तीन बार अमेठी सीट से सांसद बने। 1991 में उनकी हत्या के बाद गांधी परिवार के वफादार सतीश शर्मा ने इस सीट पर कब्जा जमाया। उन्होंने 1991 के उपचुनाव और 1996 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की, लेकिन 1998 के चुनावों में वे अपनी जीत को बरकरार नहीं रख सके। 1999 में अमेठी से चुनाव लड़ते हुए सोनिया गांधी ने यह सीट जीती थी। 2004 में उन्होंने रायबरेली से पर्चा भरा। उन्होंने अमेठी सीट अपने बेटे राहुल गांधी के लिए छोड़ दी।

राहुल गांधी ने 2004, 2009 और 2014 में तीन बार अमेठी सीट पर जीत दर्ज की। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी के हाथों उन्हें करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। वोट शेयर के मामले में कांग्रेस अमेठी में सबसे आगे रही है। आठ चुनावों में पार्टी ने 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए हैं। राजीव गांधी ने 1981 के उपचुनाव में अमेठी से सबसे बड़ी जीत दर्ज की। उन्हें उस चुनाव में 84.18 फीसदी वोट शेयर हासिल हुआ। कांग्रेस पार्टी का सबसे खराब प्रदर्शन 1998 में रहा था, जब उसे अमेठी में महज 31.1 फीसदी मत मिले। 1967 में अमेठी का पहला लोकसभा चुनाव भी वोटों के मामले में काफी करीबी मुकाबला था। इस चुनाव में कांग्रेस भले ही विजयी रही हो लेकिन दूसरे नंबर पर आई भारतीय जनसंघ (बीजेएस) के बीच जीत का अंतर महज 2.07 फीसदी का था। यह कांग्रेस की ओर से जीत के बावजूद हासिल किया गया सबसे कम वोट शेयर था।

1977 में, जब कांग्रेस पहली बार अमेठी सीट हारी थी, तो उसे सिर्फ 34.47 फीसदी मत मिले थे। ये वोट शेयर जनता पार्टी के 60.47 फीसदी वोटों से काफी कम था। वहीं 1998 में जब कांग्रेस को बीजेपी ने हराया तो उस समय जीत का अंतर 3.98 फीसदी रहा था। 2019 में जब राहुल गांधी को स्मृति ईरानी ने हराया तो भी मुकाबला बहुत नजदीकी था। उस चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच जीत का अंतर महज 5.87 फीसदी था। हालांकि, 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अमेठी में बीजेपी काफी पिछड़ती नजर आई।

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