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आखिर क्या है इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन? इसके अंदर क्या-क्या होता है?

आज हम आपको बताएंगे कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन के अंदर क्या-क्या होता है और इसे कौन सी कंपनी बनाती है! लोकसभा चुनाव की शुरुआत हो चुकी है,19 अप्रैल 2024 को पहला चरण संपन्न हो चुका है… और अब 26 अप्रैल की बारी है… लेकिन इसी बीच आज हम आपको इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के इतिहास, वर्तमान और इसके टेक्निकल terms के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं! आपको बता दें कि देश में 19 अप्रैल से आम चुनाव की शुरुआत हो चुकी है.. चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का बहुत ही महत्वपूर्ण रोल होता है, बता दे कि यह सिस्टम अभी पूरी तरह से लागू नहीं है, साल 2014 में इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया था… बता दे कि साल 1980 में , एम. बी. हनीफा ने पहली वोटिंग मशीन को बनाया था. उस वक्त इसे इलेक्ट्रॉनिक्ली ऑपरेटेड वोट काउंटिंग मशीन नाम दिया गया था. इसका ओरिजनल डिजाइन आम लोगों को तमिलनाडु के छह शहरों में हुए सरकारी एग्जीबिशन में दिखाया गया था वैसे तो EVM हर बार राजनीति का शिकार होती रही है, सभी आरोपी के बाद भी EVM देश को नई सरकार देने में मदद करती आई है… आज हम आपको EVM के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं… जानकारी के लिए बता दे की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल लोकसभा और विधानसभा चुनाव में शुरू हुआ था…. EVM ने भारत में बैलेट पेपर के इस्तेमाल को रिप्लेस किया है… 

बता दें कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर कई बार आप लगे हैं, लेकिन आज तक कोई इसे सिद्ध नहीं कर पाया है… इन आरोपों के बाद इलेक्शन कमीशन ने वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रायल यानी VVAPT सिस्टम को इंट्रोड्यूस किया… हालांकि यह सिस्टम अभी पूरी तरह से लागू नहीं है, साल 2014 में इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया था…बता दें कंट्रोल यूनिट मतदान अधिकारी के पास होती है, जबकि बैलेट यूनिट को दूसरी तरफ रखा जाता है, जहां से लोग वोट डाल पाते हैं… दबाया हुआ बटन कहीं गलती से ना दब जाए इसके लिए दो सेफगार्ड भी होते हैं… इस बटन को तब तक इस्तेमाल नहीं किया जा सकता जब तक क्लोज बटन ना दबाया जाए और वोटिंग प्रक्रिया पूरी तरह से खत्म ना हो जाए बता दे कि साल 1980 में , एम. बी. हनीफा ने पहली वोटिंग मशीन को बनाया था. उस वक्त इसे इलेक्ट्रॉनिक्ली ऑपरेटेड वोट काउंटिंग मशीन नाम दिया गया था. इसका ओरिजनल डिजाइन आम लोगों को तमिलनाडु के छह शहरों में हुए सरकारी एग्जीबिशन में दिखाया गया था… 

बता दें कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का पहली बार इस्तेमाल 1982 में केरल के उत्तर परबुर में हुए उप चुनाव में हुआ था…. शुरुआती दिनों में चुनाव आयोग को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के इस्तेमाल को लेकर बहुत से विरोध का सामना करना पड़ा…. साल 1998 में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल 16 विधानसभा में हुए चुनावो में हुआ था, इसके बाद 1999 में इसका विस्तार हुआ और 46 लोकसभा सीट पर इन्हें इस्तेमाल किया गया…. साल 2004 में लोकसभा चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल सभी सीट पर हुआ…. बता दें कि EVM में दो यूनिट्स- कंट्रोल और बैलेट होती है. यानी एक यूनिट जिस पर बटन दबा कर आप अपना वोट देते हैं और दूसरी यूनिट जिसमें आपके वोट को स्टोर किया जाता है…

कंट्रोल यूनिट मतदान अधिकारी के पास होती है, जबकि बैलेट यूनिट को दूसरी तरफ रखा जाता है, जहां से लोग वोट डाल पाते हैं… दबाया हुआ बटन कहीं गलती से ना दब जाए इसके लिए दो सेफगार्ड भी होते हैं… इस बटन को तब तक इस्तेमाल नहीं किया जा सकता जब तक क्लोज बटन ना दबाया जाए और वोटिंग प्रक्रिया पूरी तरह से खत्म ना हो जाए… यह बटन छुपी हुई होती है और इसे सुरक्षा टर्म से सील रखा जाता है, इस सील को सिर्फ काउंटिंग सेंटर पर ही तोड़ा जाता है…. बता दे कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को दो कंपनियां मिलकर बनती है… इसे इलेक्शन कमीशन, भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड बेंगलुरु, मिनिस्ट्री ऑफ़ डिफेंस और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन आफ इंडिया लिमिटेड हैदराबाद के साथ मिलकर तैयार किया जाता है.. अतः इसे 46 लोकसभा सीट पर इन्हें इस्तेमाल किया गया…. साल 2004 में लोकसभा चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल सभी सीट पर हुआ…. बता दें कि EVM में दो यूनिट्स- कंट्रोल और बैलेट होती है. यानी एक यूनिट जिस पर बटन दबा कर आप अपना वोट देते हैं और दूसरी यूनिट जिसमें आपके वोट को स्टोर किया जाता है… … तो यह है इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का पूरा इतिहास, वर्तमान और इसके टेक्निकल टर्म्स!

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